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बिहार के चित्तौड़गढ़ की राजपूतानी लवली आनंद' शिवहर से ठोकेंगी ताल, जानिए

बिहार का चित्तौड़गढ़ कहे जानेवाले शिवहर संसदीय क्षेत्र से इसबार कांग्रेस के टिकट से बाहुबली पूर्व सांसद अानंद मोहन की पत्नी लवली आनंद चुनाव लड़ सकती हैं। जानिए लवली आनंद को...

By Kajal KumariEdited By: Published: Fri, 25 Jan 2019 06:31 PM (IST)Updated: Sat, 26 Jan 2019 08:36 PM (IST)
बिहार के चित्तौड़गढ़ की राजपूतानी लवली आनंद' शिवहर से ठोकेंगी ताल, जानिए
बिहार के चित्तौड़गढ़ की राजपूतानी लवली आनंद' शिवहर से ठोकेंगी ताल, जानिए

पटना [काजल]।राजपूती आन-बान और शान वाले राजस्थान के चितौड़गढ़ को तो सभी जानते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बिहार में भी एक चित्तौड़गढ़ है जिसका नाम है शिवहर जिला। इस जिले से बिहार में आनंद मोहन को एक जमाने में राजपूतों का सबसे बड़ा नेता माना जाता था और कभी पीएम मोदी के लिए वोट मांग चुकीं पूर्व सांसद लवली आनंद इस संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ सकती हैं।

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इस बार बिहार के चितौड़ को कौन फतह करेगा? वैश्य वर्ग से आनेवालीं सांसद रमा देवी तीसरी बार यहां से सांसद बनना चाहती हैं तो राजपूती शान की रथ पर सवार राजपूतानी लवली आनंद भी अपना दम-खम ठोंक रही हैं। यह सही है कि लवली पिछले कुछ चुनावों से यहां हार रही हैं, लेकिन आज भी लोग उनके पति आनंद मोहन के करिश्मे को नहीं भूले हैं।

लवली, 2014 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के टिकट पर मैदान में उतरी थीं। पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। उससे पहले भी 2009 के लोकसभा चुनाव के वक्त लवली शिवहर से ही कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ीं थीं लेकिन उस वक्त भी हार गई थी। इसबार कांग्रेस पार्टी उनपर उम्मीद कर सकती है। 

1994 में लवली आनंद ने वैशाली लोकसभा का उपचुनाव जीतकर राजनीति में एंट्री की थी तो वहीं आनंद मोहन ने जेल से ही 1996 का लोकसभा चुनाव समता पार्टी के टिकट पर लड़ा और जीत हासिल की थी। दोनों का कार्यकाल अलग-अलग रहा। आनंद मोहन शिवहर से निर्वाचित हुए थे, जबकि लवली आंनद वैशाली से चुनी गई थीं। आनंद मोहन जहां दो बार सांसद बने तो वहीं लवली एक बार सांसद और एक बार विधायक बन पाईं। 

दल बदल का रिकॉर्ड बना चुकी लवली आनंद इन दिनों अपने बेटे के साथ मिलकर फ्रेंडस ऑफ आनंद के बैनर तले समर्थकों को गोलबंद कर रही हैं। शुक्रवार को उन्होंने घर वापसी करते हुए कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली है। कभी शिवहर लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर उन्होंने चुनाव लड़ा था तो कभी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा का दामन थामकर पीएम मोदी के लिए वोट मांगा था।

 

साल1994 में मुजफ्फरपुर में गोपालगंज के डीएम की हत्या के केस में आनंद मोहन को 2007 में फांसी की सजा मिली हुई थी। बाद में ऊपरी अदालत ने फांसी की सजा उम्र कैद में बदल दी थी। मैथिली को अष्टम अनुसूची में शामिल करने के पीछे आनंद मोहन ने काफी मेहनत की थी और उनकी कड़ी मेहनत रंग लाई। 

आनंद मोहन ने 1993 में बिहार पीपुल्स पार्टी की स्थापना की। 1995 में युवा आनंद मोहन में भावी मुख्यमंत्री देख रहा था। 1995 में उनकी बिहार पीपुल्स पार्टी ने नीतीश कुमार की समता पार्टी से बेहतर प्रदर्शन किया था।अब यह पार्टी अस्तिव में नहीं है। 

आनंद मोहन ने 'कैद में आजाद कलम' इस कविता संग्रह की कविताएं जेल में लिखीं। सहरसा जेल में रहकर आनंद मोहन आज गांधी और बौद्ध दर्शन का ब्यापक अध्ययन कर चार खंडों में अपनी जेल डायरी को सहेजने में भी लगे हुए हैं। वे अपनी आत्मकथा ‘”बचपन से पचपन” तक’ भी लिख रहे हैं। उनकी लिखी कहानी 'पर्वत पुरुष दशरथ' को सीबीएसई के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।

पूर्व सांसद आनंद मोहन ने सहरसा मंडल कारा में अपनी हत्या की आशंका जताई है। इस संबंध में उन्होंने नीतीश कुमार को लेटर लिखा है। उन्होंने लिखा है कि जेल अधीक्षक संजीव कुमार कभी भी मेरी हत्या करवा सकते हैं।


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