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बॉलीवुड के दोस्त, भाजपा के 'शत्रु': फिल्मों से सियासत तक दोस्ती-दुश्मनी के बीच खड़े शॉटगन

बॉलीवुड के बेहतरीन कलाकार और राजनीति के भी मंझे हुए खिलाड़ी कहे जाने वाले शत्रुघ्न सिन्हा आजकल भाजपा को छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने को लेकर चर्चा में हैं। जानिए क्यों...

By Kajal KumariEdited By: Published: Wed, 27 Mar 2019 10:53 AM (IST)Updated: Wed, 27 Mar 2019 04:36 PM (IST)
बॉलीवुड के दोस्त, भाजपा के 'शत्रु': फिल्मों से सियासत तक दोस्ती-दुश्मनी के बीच खड़े शॉटगन
बॉलीवुड के दोस्त, भाजपा के 'शत्रु': फिल्मों से सियासत तक दोस्ती-दुश्मनी के बीच खड़े शॉटगन

पटना [कुमार रजत]। दोस्ती और दुश्मनी के बीच की जो कश्मकश अभी शत्रुघ्न सिन्हा की राजनीति में दिख रही है, वह उनकी फिल्मों में भी रही है। उनके फिल्मी सफर को खंगालें तो पाएंगे कि दोस्ती-दुश्मनी पर उन्होंने सबसे ज्यादा फिल्में कीं।

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 दोस्त और दुश्मन (1971), दो यार (1972), दोस्त (1974), खान दोस्त (1976), यारों का यार (1977), जानी दुश्मन (1979), दोस्ताना (1980), दो शत्रु (1980) और मेरा दोस्त-मेरा दुश्मन (1984) जैसी फिल्मों ने उनकी दोस्ती और दुश्मनी दोनों को सिल्वर स्क्रीन पर खूब भुनाया। रील लाइफ में उनकी इमेज दोस्तों का दोस्त और दुश्मनों के दुश्मन की तरह बनी जिसे उन्होंने रीयल लाइफ में भी खूब उतारा।

आज शॉटगन खुद उसी दोस्ती और दुश्मनी के बीच खड़े दिख रहे हैं। लंबे समय से भाजपा के दोस्त रहे शॉटगन अब 'शत्रु' कहे जा रहे हैं। राजद-कांग्रेस से उनका दोस्ताना बढ़ता दिख रहा है। संभावना तो यहां तक जताई जा रही है कि वे इस बार महागठबंधन से भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे। 

राजेश खन्ना से चुनाव के साथ दोस्ती भी हारे 

भाजपा में शत्रुघ्न सिन्हा लालकृष्ण आडवाणी के करीबी माने जाते रहे। वे कई बार खुद भी कह चुके हैं कि राजनीति में वे आडवाणी जी के कारण ही आएं। आडवाणी का स्नेह-दुलार भी कई बार उनके प्रति दिखा। सबसे पहले इसकी झलक दिखी वर्ष 1991 में जब लालकृष्ण आडवाणी की जीती हुई सीट से शत्रुघ्न सिन्हा पहली बार चुनावी मैदान में उतरे।

दरअसल, 1991 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी दो सीटों नई दिल्ली और गांधी नगर से खड़े हुए थे। दोनों ही सीटों पर वे विजयी रहे। नई दिल्ली की सीट से उन्होंने बॉलीवुड के सुपरस्टार और कांग्रेस उम्मीदवार राजेश खन्ना को मात दी। आडवाणी ने गांधीनगर सीट अपने पास रखकर नई दिल्ली की सीट छोड़ दी।

1992 में नई दिल्ली की सीट पर उपचुनाव हुआ जहां कांग्रेस से तो राजेश खन्ना ही उम्मीदवार थे मगर भाजपा और आडवाणी ने फिल्म स्टार शत्रुघ्न सिन्हा को उम्मीदवार बनाया। हालांकि शत्रुघ्न सिन्हा यह सीट नहीं बचा पाए और लगभग 25,000 वोट से राजेश खन्ना चुनाव जीत गए। इस चुनाव का एक और परिणाम यह हुआ कि राजेश खन्ना के साथ उनके संबंधों में ताउम्र दरार आ गई।

चुनाव जीतने के बावजूद राजेश खन्ना ने शत्रुघ्न सिन्हा को उनके खिलाफ लडऩे के लिए कभी माफ नहीं किया। शत्रुघ्न सिन्हा की दोस्ती और दुश्मनी की कश्मकश यहां भी दिखी। उन्होंने बाद में एक इंटरव्यू में कहा कि अपने दोस्त राजेश खन्ना के खिलाफ चुनाव लडऩा उनकी जिंदगी का सबसे बड़ा रिग्रेट है। 

राज्यसभा से गए संसद, वाजपेयी सरकार में बने मंत्री 

शत्रुघ्न सिन्हा नई दिल्ली से लोकसभा चुनाव भले ही हार गए मगर भाजपा में उनकी हैसियत कम नहीं हुई। वे आडवाणी खेमे के खास बने रहे और भाजपा के स्टार प्रचारक भी।

चुनावी रैलियों में अपने डॉयलॉग से वे टिकट खिड़की की तरह ही भीड़ बटोरते। इसका मीठा फल भी शॉटगन को मिला। वे 1996-2008 तक दो बार राज्यसभा सांसद रहे। वाजपेयी सरकार ने 2003 में जब मंत्रिमंडल विस्तार किया तो शत्रुघ्न सिन्हा को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री और जहाजरानी मंत्री बनाया गया। 

2009 में पटना साहिब से पहली बार जीता चुनाव 

दो बार राज्यसभा सदस्य रहने के बाद पहली बार लोकसभा चुनाव में शॉटगन को जीत मिली तो अपने होमटाऊन पटना साहिब से। 2009 में परिसीमन के बाद पटना लोकसभा क्षेत्र दो भागों में बंट गया। पटना साहिब और पाटलिपुत्र। भाजपा ने कायस्थ बहुल शहरी क्षेत्र पटना साहिब से शत्रुघ्न सिन्हा को अपना उम्मीदवार बनाया।

यहां भी दोस्ती और दुश्मनी की कश्मकश शॉटगन के साथ रही जब उन्हें बॉलीवुड में अपना आइडल मानने वाले फिल्म और टेलीविजन अभिनेता शेखर सुमन बतौर कांग्रेस उम्मीदवार उनके खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे। हालांकि शत्रुघ्न सिन्हा ने बहुत आसानी से रिकॉर्ड 57 फीसद वोट के साथ चुनाव जीत लिया।

वर्ष 2014 में उनके खिलाफ कांग्रेस ने भोजपुरी अभिनेता कुणाल सिंह तो जदयू ने कायस्थ बिरादरी से आने वाले शत्रुघ्न सिन्हा के करीबी डॉ. गोपाल प्रसाद सिन्हा को मैदान में उतारा।

इस बार भी शत्रुघ्न सिन्हा 55 फीसद वोट पाकर आसानी से जीत गए। लेकिन उसके बाद अपनी पार्टी से ही उनकी दुश्मनी बढ़ती गई। उनकी नाराजगी की मूल वजह रही कि केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया। नाराज शत्रुघ्न सिन्हा पार्टी के खिलाफ लगातार बयानबाजी करते रहे।

पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा के साथ मिलकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। उनके डायलॉग न तो दिल्ली वाले नेतृत्व ने पसंद किया न ही बिहार वाले। चुनाव का इंतजार था। टिकट काटकर पार्टी ने भाजपा के साथ उनके सफर का द एंड कर दिया। 

विरोधियों से हमेशा साधे रही दोस्ती 

शत्रुघ्न सिन्हा की छवि एक ऐसे राजनेता की भी रही है, जिनकी विरोधियों से भी हमेशा अच्छी दोस्ती रही। इन राजनीतिक विरोधियों में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद का नाम सबसे पहले आता है। इसी तरह जब नीतीश कुमार भाजपा से अलग हुए तब भी शत्रुघ्न उनकी तारीफ करते रहे।

भाजपा सांसद रहते हुए वे कई बार सोशल मीडिया पर केजरीवाल की भी तारीफ कर चुके हैं। पिछले साल पटना में ही एक कार्यक्रम में उन्होंने इंदिरा गांधी और राहुल गांधी की भी तारीफ की थी। 

शत्रुघ्न सिन्हा : प्रोफाइल

जन्म : 9 दिसंबर, 1945

मूल निवासी : कदमकुआं, पटना

राजनीतिक कॅरियर

1996-2008 - राज्यसभा सांसद

2003-2004 - केंद्रीय स्वास्थ्य और जहाजरानी मंत्री

2009  - पटना साहिब से जीतकर बने सांसद

2014 - पटना साहिब से दोबारा बने सांसद


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