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आखिर किस 'मणि' की तलाश में हैं RLSP के नागमणि, जानिए बयानबाजी का मतलब

एनडीए के घटक दल रालोसपा नेता सह पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि बड़ा-बड़ा बयान दे रहे हैं, जिससे भाजपा-जदयू की मुश्किलें बढ़ रही हैं। आखिर नागमणि के इन बयानों के निहितार्थ क्या है...

By Kajal KumariEdited By: Published: Mon, 24 Sep 2018 11:26 AM (IST)Updated: Mon, 24 Sep 2018 10:05 PM (IST)
आखिर किस 'मणि' की तलाश में हैं RLSP के नागमणि, जानिए बयानबाजी का मतलब
आखिर किस 'मणि' की तलाश में हैं RLSP के नागमणि, जानिए बयानबाजी का मतलब

पटना [अरविंद शर्मा]। पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं रालोसपा के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नागमणि भाजपा-जदयू की परेशानी बढ़ाने वाला बयान देकर फिर सुर्खियों में हैं। पाला बदलने के लिए मचलते भी दिख रहे हैं। नागमणि जिस पार्टी में हैं, वह अभी राजग के साथ है, लेकिन सीट बंटवारे के मुद्दे पर उन्होंने सहयोगी दलों को आगाह करके अपनी मंशा का इजहार कर दिया है। सियासत में नागमणि की निष्ठा किसी एक खूंटे से बंधी नहीं रही है। तलाश भी कभी पूरी नहीं हुई है। 

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वह लंबे समय से सत्ता से दूर हैं। आखिरी चुनाव 1999 में राजद के टिकट पर चतरा लोकसभा क्षेत्र से जीता था। उसके बाद लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है। इस बार के चुनाव और उपेंद्र कुशवाहा के साथ को वह मौके के रूप में देख रहे हैं। महागठबंधन की राजनीति अभी उनके लिए सबसे मुफीद है। वह अपने लिए चतरा और पत्नी के लिए जहानाबाद की सीट पर दावा कर रहे हैं।

राजग में रहते हुए उक्त दोनों सीटें मिलना संभव नहीं है। चतरा पर भाजपा का कब्जा है और जहानाबाद से रालोसपा के बागी अरुण कुमार सांसद हैं। अरुण की निष्ठा भाजपा के करीब दिख रही है। ऐसे में राजग की ओर से नागमणि को निराशा ही मिल सकती हैं।

सीटों का तालमेल और सामाजिक समीकरण के लिहाज से उन्हें महागठबंधन में कामयाबी मिल सकती है। इसलिए उनके करीबियों का दावा है कि वह उपेंद्र कुशवाहा पर लगातार लालू प्रसाद के पाले में जाने के लिए दबाव डाल रहे हैं। नागमणि के लालू से भी करीबी संबंध रहे हैं। लालू ने कई बार उन्हें टिकट भी थमाया है। 

कभी था बड़ा सियासी आधार 

नागमणि ने अबतक कितने दल बदले हैं, यह खुद उन्हें भी ठीक से याद नहीं। उनके करीबियों के मुताबिक उन्होंने अभी तक 13 बार अलग-अलग पार्टियों की परिक्रमा कर ली है। यहां तक कि झारखंड की छोटी पार्टी आजसू के टिकट पर भी 2014 में चतरा से भाग्य आजमा चुके हैं। अपना दल भी बनाकर देख लिया है।

उनके बारे में आम धारणा है कि बिहार का ऐसा कोई दल नहीं बचा है, जहां उनके कदम नहीं पड़े हैं। बिहार में कभी उनका बड़ा सियासी आधार था। पिता जगदेव प्रसाद का प्रताप लेकर 70 के दशक में कांग्र्रेस से सियासी सफर शुरू करने वाले नागमणि ने पिछले पांच दशकों में कई दलों और दौर की राजनीति की है।

कुर्था क्षेत्र से पहली बार 1977 में कांग्र्रेस के टिकट पर विधायक बने थे। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं। बिहार में उनकी पत्नी सुचित्रा सिन्हा को नीतीश कुमार ने भी मंत्री बनाया था। 


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