कीर्ति को याद आए बचपन के दिन, पिता की मार से बचाने को मां खरीदकर रखती थी 50-50 गमले
1983 विश्व कप विजेता टीम में शामिल रहे धाकड़ क्रिकेटर कीर्ति आजाद के छक्कों ने कई खिड़कियों के कांच तोड़े गमले फोड़े। जानें कैसे बीता कीर्ति का बचपन।
अरुण सिंह, पटना। कोरोना वायरस से हुए लॉकडाउन में देश के साथ अपने राज्य में भी तमाम खेल गतिविधियां ठप हैं। मैदान में चौके-छक्के जमाने वाले, ताबड़तोड़ गोल करने वाले और अपने रैकेट से झन्नाटेदार स्मैश मारने वाले हमारे पूर्व दिग्गज खिलाड़ी घर में बैठने को मजबूर हैं। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश के साथ बिहार का गौरव बढ़ाने वाले इन दिग्गजों को याद करने का यह माकूल समय है। इससे हमारे वर्तमान खिलाडिय़ों को प्रेरणा मिलेगी और वे उनके नक्शेकदम पर चलेंगे। 1983 विश्व कप विजेता टीम में शामिल रहे धाकड़ क्रिकेटर कीर्ति आजाद के छक्कों ने कई खिड़कियों के कांच तोड़े, गमले फोड़े। फिर भी ताली बजाने वाले उनके चहेतों की कमी नहीं थी। आइए, गली क्रिकेट से विश्व विजेता बनने की कीर्ति की कहानी उन्हीं की जुबानी सुनते हैं।
1980 में ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड का दौरा हो या फिर 1983 में इंग्लैंड में हुए विश्व कप के लिए भारतीय टीम में चयन। मुझ पर यह इल्जाम लगा कि मैंने अपने पिता तत्कालीन केंद्रीय मंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री रहे स्व. भागवत झा आजाद के रसूख का फायदा उठाया। लेकिन सच्चाई यह है कि क्रिकेट को लेकर बचपन में मैंने अपने पिता से खूब मार खाई है। दिल्ली में पिता का आवास हो या फिर पटना के जमाल रोड में नानी के घर के बगल का आहाता। गली क्रिकेट के दौरान मैंने अपने और दूसरों के घर की खिड़कियों के खूब कांच तोड़े और गमले फोड़े। ऐसा करने पर पिता से छड़ी से मार खाते थे। क्रिकेट के प्रति रुझान मेरा बचपन से था और इसमें मां का हमेशा साथ मिला। जिस दिन पिता न होते, मां टूटे गमले को बदल देती, लेकिन क्रिकेट खेलने से मुझे कभी नहीं रोका। फिर गली क्रिकेट से शुरू हुआ सफर दिल्ली रणजी टीम की कप्तानी के बाद 1983 विश्व कप विजेता भारतीय टीम के सदस्य के रूप में समाप्त हुआ।
सेमीफाइनल में इयान बॉथम की एक न चलने दी
कपिल देव की कप्तानी में इंग्लैंड के लॉड्र्स में पहली बार विश्व खिताब जीतना मेरे करियर का यादगार क्षण था। इसके पूर्व सेमीफाइनल में इंग्लैंड पर जीत में मैंने भी योगदान दिया था। उस समय के 12 ओवर के स्पेल में मैंने केवल 27 रन दिए। अपनी ऑफ स्पिन गेंदबाजी से बॉथम को खूब छकाया और आखिरकार उन्हें बोल्ड कर भारत की जीत का मार्ग प्रशस्त किया।
लता मंगेशकर की मदद से पुरस्कार में मिले एक लाख रुपये
2011 में विश्व विजेता बनने पर भारतीय क्रिकेटरों के ऊपर करोड़ों रुपये की बारिश हुई थी, जबकि हमलोगों को 1983 में खाली हाथ घर लौटना पड़ा था। बाद में बीसीसीआइ के तत्कालीन अध्यक्ष राजसिंह डुंगरपुर की मदद से दिल्ली के इंद्रप्रस्थ स्टेडियम में लता मंगेशकर नाइट का आयोजन हुआ और पूरी भारतीय टीम को एक-एक लाख रुपये पुरस्कार में दिए गए।
लॉकडाउन में खाना बनाने का शौक पूरा कर रहा हूं
लॉकडाउन के कारण अपने गृह जिला दरभंगा आने से वंचित रहे कीर्ति आजाद फिलहाल दिल्ली स्थित सैनिक फॉर्म में किराए के मकान में रह रहे हैं। यहीं से दूसरे राज्यों में रह रहे प्रवासी लोगों की हरसंभव मदद करते हैंं। उन्होंने बताया कि 11 साल इंग्लैंड में काउंटी खेलने के दौरान खाना बनाने, कपड़े धोने का शौक एक बार फिर पूरा करने का मौका मिला है। इसके अलावा सुबह और शाम एक घंटे व्यायाम और बागवानी मेरी दिनचर्या में शामिल है। क्रिकेट में फैले भ्रष्टाचार पर किरकेट नाम से फिल्म बनाने वाले कीर्ति ने कहा कि भद्रजनों के इस खेल से मैं दूर नहीं रह सकता और रात में सोने से पूर्व कपिल देव, मदन लाल समेत पुराने दोस्तों से इस पर चर्चा जरूर करता हूं।