बिहार में सियासी खीर और उपेंद्र कुशवाहा, इतने इम्पोर्टेंट क्यों....
बिहार में लोकसभा के चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर जहां खींचतान जारी है, वहीं दोनों गठबंधनों में एक खास चेहरे की चर्चा है। वो हैं रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा। जानिए मामला।
पटना [काजल]। लोकसभा चुनाव को लेकर बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और महागठबंधन दोनों ओर सीटों को लेकर खींचतान मची हुई है। महागठबंधन में तो अभी घमासान की शुरुआत नहीं हुई है, लेकिन राजग के घटक दलों में सीट बंटवारे को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। दोनों गठबंधनों के बीच सबसे अहम फैक्टर राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा बने हुए हैं। वे गाहे-बगाहे सबका ध्यान अपनी ओर खींचने में कामयाब होते रहे हैं।
कैसा होगा कुशवाहा की सियासी खीर का स्वाद, कौन चखेगा...
कुशवाहा की जो सियासी खीर पक रही है उसका स्वाद कैसा होगा, ये अब तक खुलकर सामने तो नहीं आया है। लेकिन, इसके दावे और कयास जारी हैं। कुशवाहा अपने विवादित बयानों से जहां राजग को अचंभे में डाल देते हैं वहीं वो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए भी परेशानी पैदा कर देते हैं। चाहे राजद के साथ मिलकर मानव श्रृंखला बनाने का मामला हो या शिक्षा के गिरते स्तर और लॉ एंड अॉर्डर को लेकर नीतीश को कटघरे में खड़ा करना हो, कुशवाहा पीछे नहीं रहे हैं।
नीतीश की देन हैं कुशवाहा, नीतीश से ही बैर
बिहार की सियासत में उपेंद्र कुशवाहा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की ही देन हैं। नीतीश कुमार ने ही कभी उन्हें नेता प्रतिपक्ष बनाया था। बाद में वे नीतीश कुमार से अलग हो गए। फिर साथ आये और जब नीतीश कुमार ने उन्हें राज्यसभा भेजा तो वे विरोधी हो गए।
राज्यसभा सांसद रहते हुए वे लगातार नीतीश कुमार का विरोध करते रहे। लेकिन, अपने पद नहीं छोड़ा। बाद में रालोसपा का गठन कर बनाकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ हो लिये।
जब नीतीश कुमार राजग छोड़ महागठबंधन का हिस्सा बने तब उपेंद्र कुशवाहा राजग के साथ ही थे। कहा जाता है कि वे खुद को मुख्यमंत्री पद के दावेदार की तरह देखने लगे। उम्मीदें जगीं, लेकिन तबतक नीतीश कुमार महागठबंधन से वापस फिर राजग में आ गए और कुशवाहा की उम्मीदों पर पानी फिर गया।
राजग में नीतीश कुमार के आने के बाद वे साथ तो हैं, लेकिन समय-समय पर उनके बयान महागठबंधन में शामिल होने की ओर इशारा करते दिखे हैं। हालांकि, राजनीति के जानकार इसे दबाव की राजनीति बताते रहे हैं।
मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नजर
कुशवाहा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को खिलाफ बयान देकर यह भी जताते रहते हैं कि राजग में वे सहज नहीं हैं। कुशवाहा ने कह दिया है कि नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री के रूप में अपनी लंबी पारी खेली, अब उन्हें बड़ी राजनीति करनी चाहिए, राष्ट्रीय पटल पर जाना चाहिए ताकि बिहार में दूसरों को भी मौका मिले। यह बात वे खुद भी कह चुके हैं और अपने लोगों से भी कहवा चुके हैं कि बिहार के मुख्यमंत्री पद के लिए वे कोई कम योग्य उम्मीदवार नहीं हैं।
दोनों गठबंधनों की कुशवाहा पर नजर
कुशवाहा के बयानों से जहां उनके महागठबंधन की ओर जाने की बात को हवा मिलती है, वहीं वे इसका खंडन भी कर देते हैं। राजग के नेता कुशवाहा को गठबंधन का घटक बताते हें तो महागठबंधन के घटक दलों, खासकर राजद को उम्मीद है कि उपेंद्र कुशवाहा जल्द ही उसके पाले में आ जाएंगे।
कुशवाहा की खीर पॉलिटिक्स
कुशवाहा का मंतव्य जो भी हो, लेकिन उनका इशारा सभी समझ रहे हैं। खीर पॉलिटिक्स कर उन्होंने दोनों महागठबंधनों को ये जता दिया है कि खीर किसी तरफ बने चीनी की मिठास वही डालेंगे।
दरअसल रालोसपा ने बीपी मंडल के जयंती समारोह में खीर पर बड़ा बयान क्या दिया। मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक पर यह छा गया। उपेंद्र कुशवाहा ने यदुवंशियों के दूध और कुशवंशियों के चावल से खीर बनाने की बात कही। कहा कि इसमें दलित-पिछड़ों के पंचमेवा को डाल स्वादिष्ट बनाया जाना चाहिए। राजनीतिक गलियारे में यदुवंशी को यादव और कुशवंशी को कुशवाहा से जोड़कर देखा जा रहा है।
हालांकि,कुशवाहा ने इस बयान को गैर राजनीतिक बताया, लेकिन इसपर राजनीति शुरू हो गई। इससे राजद और कांग्रेस की उम्मीदें मजबूत हुईं तो भाजपा नेता मंगल पांडेय ने कहा कि चावल और दूध किसी का हो लेकिन खीर तो राजग ही खाएगा।
वहीं, खीर पॉलिटिक्स पर तंज कसते हुए महागठबंधन में शामिल जीतनराम मांझी ने सत्तू से लेकर घी-शक्कर तक की चर्चा करते हुए कहा कि हमलोगों की पार्टी गरीब-गुरबों की है। हमलोग सत्तू सानने वाले लोग हैं और सत्तू खाकर राजनीति करते हैं। खीर तो बड़े घर की चीज है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि उपेंद्र कुशवाहा के मुंह में घी-शक्कर।
उधर खीर, सत्तू, घी, शक्कर के बीच कांग्रेस ने खिचड़ी भी परोस दी। बिहार कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष कौकब कादरी ने इसी पर अपने अलग अंदाज में कहा कि खीर तो कांग्रेस के ही बर्तन में बनेगी। राजग में केवल खिचड़ी पकती है।
पलट गए बयान से, दी सफाई
उसके बाद कुशवाहा ने अपने खीर वाले बयान पर सफाई देते हुए कहा है कि उन्होंने न तो राजद से दूध मांगा है और न ही भाजपा से चीनी मांगी है। इसके साथ ही कहा कि उनकी पार्टी 2019 में नरेंद्र मोदी को फिर से सत्ता में लाने के लिए समाज के हर वर्ग से वोट जुटाने की कोशिश कर रही है। कुशवाहा का ये बयान आमजन की समझ से बाहर है।लेकिन, उन्होंने 31 अगस्त को यह भी एेलान किया कि पैगाम-ए-खीर का आयोजन करेंगे और वे यह खीर 25 सितंबर से पूरे बिहार को खिलाएंगे।
खेला है नया दांव
खीर की पॉलिटिक्स के साथ ही कुशवाहा ने एक और दांव खेला है। उन्होंने ये बयान देकर सबको चौंका दिया है कि राजग में ही कुछ लोग हैं जो नहीं चाहते कि नरेंद्र मोदी दुबारा से प्रधानमंत्री बनें। उन्होंने ये भी कहा है कि इस बारे में वे वक्त आने पर खुलासा करेंगे। कहा कि इस बारे में बताना अच्छा नहीं लगता क्योंकि ये अपने घर की बात दूसरों को बताने जैसा है। उनके इस बयान से भी खलबली मची है कि वो कौन हैं?
आसान नहीं महागठबंधन में पैठ
कुशवाहा अगर महागठबंधन में जाते भी हैं तो वहां उनकी राजनीतिक पैठ आयान नहीं होगी। जीतनराम मांझी भी महागठबंधन में हैं जो बार-बार उनके आने का स्वागत तो करते हैं लेकिन ये भी कह देते हैं कि वे मुख्यमंत्री पद की लालसा लेकर ना आएं, वैकेंसी नहीं है।