रेलवे ट्रिब्यूनल घोटाले में जज आरके मित्तल हुए सेवामुक्त, इतने करोड़ का था मामला Patna News
रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल में हुए एक घोटाले के मामले में न्यायिक सदस्य आरके मित्तल को अनियमितता का दोषी पाया गया है। इस मामले में उन्हें सेवा से बर्खास्त करने का आदेश जारी कर दिया गया
By Edited By: Published: Fri, 12 Jul 2019 11:26 PM (IST)Updated: Sat, 13 Jul 2019 09:06 AM (IST)
पटना, जेएनएन। रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल में 5 मई 2015 से 16 अगस्त 2017 के बीच 100 करोड़ से अधिक के हुए घोटाले में किंगपिन रहे न्यायिक सदस्य आरके मित्तल को अनियमितता का दोषी पाया गया है। रेलवे बोर्ड की ओर से गुरुवार की देर शाम इस मामले में उन्हें सेवा से बर्खास्त करने का आदेश जारी कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश उदय यू ललित की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने जांच के दौरान मित्तल को अनियमितता का दोषी पाया था।
एक अगस्त को होने वाले थे सेवामुक्त
मृत लोगों के नाम पर मिलने वाली मुआवजे की राशि हड़पने में उनकी संलिप्तता सामने आई थी। 25 जून 2019 को ही जांच कमेटी की रिपोर्ट रेलवे बोर्ड को भेज दी गई थी। मित्तल वर्तमान में एर्नाकुलम में रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल के न्यायिक सदस्य के रूप में तैनात थे। घोटाले की अवधि के दौरान पूर्व-मध्य रेल के ट्रिब्यूनल में तैनात थे। वे पहली अगस्त को सेवानिवृत्त होने वाले थे।
एेसा हुआ पहली बार
वे देश में रेलवे ट्रिब्यूनल के ऐसे पहले सदस्य होंगे जिन्हें समय से पहले सेवामुक्त कर दिया गया है। इस मामले में कई रेल अधिकारियों एवं वकीलों के खिलाफ भी सीबीआइ जांच कर रही है। शीघ्र ही कई रेल अधिकारियों पर भी गाज गिरने की संभावना है। ज्ञात हो कि 5 मई 2015 से 16 अगस्त 2017 तक रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल की ओर से 2564 क्लेम का निष्पादन किया गया था। क्लेम देने में कहीं भी नियम का पालन नहीं किया गया था। ऐसे सौ से अधिक मामले हैं जिसमें एक ही व्यक्ति के नाम पर चार-चार बार मुआवजे की राशि दे दी गई थी। मामला प्रकाश में आते ही रातोंरात उनसे वसूली भी कर ली गई। इस मामले में दूसरी सबसे बड़ी बात यह थी कि मुआवजे की राशि के लिए तीन ही खास बैंक की शाखाओं को चुना गया था।
लाभान्वित होने वाले पीड़ित परिजन के बैंक खाते का गवाह भी उनकी पैरवी करने वाले अधिवक्ता ही बनते थे। इतना ही नहीं उनके गांव के बैंक खाते के नाम से चेक का भुगतान न कर अलग से इन्हीं शाखाओं में खाता खुलवाया जाता था। राशि का भुगतान होते ही बैंक खाता भी बंद कर दिया जाता था। दैनिक जागरण की ओर से 2018 की 19 फरवरी को 'क्लेम के नाम पर करोड़ों की हेराफेरी', 21 फरवरी को 'मुआवजा पहले और बाद में आती थी जांच रिपोर्ट' तथा 22 फरवरी को 'जेबी संस्था बनाकर रखा गया था रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल को', शीर्षक से इस अनियमितता को उजागर करने की कोशिश की गई थी।
रेलवे ने खुद ही स्वीकार किया था कि 80 लोगों ने एक-एक मृतक के नाम पर चार-चार बार मुआवजा ले लिया था। इस मामले में पूर्व मध्य रेल के भी कई अधिकारी संदेह के घेरे में हैं। इस मामले की सीबीआइ जांच होने से अकेले न्यायिक सदस्य आरके मित्तल ही नहीं बल्कि कई बैंककर्मियों के साथ ही बैंक प्रबंधक, रेल थानाध्यक्ष, घोटाले की राशि हड़पने वाले अधिवक्ताओं के साथ ही मामले की लीपापोती करने वाले कई वरीय रेल अधिकारियों के भी फंसने की संभावना है।
एक अगस्त को होने वाले थे सेवामुक्त
मृत लोगों के नाम पर मिलने वाली मुआवजे की राशि हड़पने में उनकी संलिप्तता सामने आई थी। 25 जून 2019 को ही जांच कमेटी की रिपोर्ट रेलवे बोर्ड को भेज दी गई थी। मित्तल वर्तमान में एर्नाकुलम में रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल के न्यायिक सदस्य के रूप में तैनात थे। घोटाले की अवधि के दौरान पूर्व-मध्य रेल के ट्रिब्यूनल में तैनात थे। वे पहली अगस्त को सेवानिवृत्त होने वाले थे।
एेसा हुआ पहली बार
वे देश में रेलवे ट्रिब्यूनल के ऐसे पहले सदस्य होंगे जिन्हें समय से पहले सेवामुक्त कर दिया गया है। इस मामले में कई रेल अधिकारियों एवं वकीलों के खिलाफ भी सीबीआइ जांच कर रही है। शीघ्र ही कई रेल अधिकारियों पर भी गाज गिरने की संभावना है। ज्ञात हो कि 5 मई 2015 से 16 अगस्त 2017 तक रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल की ओर से 2564 क्लेम का निष्पादन किया गया था। क्लेम देने में कहीं भी नियम का पालन नहीं किया गया था। ऐसे सौ से अधिक मामले हैं जिसमें एक ही व्यक्ति के नाम पर चार-चार बार मुआवजे की राशि दे दी गई थी। मामला प्रकाश में आते ही रातोंरात उनसे वसूली भी कर ली गई। इस मामले में दूसरी सबसे बड़ी बात यह थी कि मुआवजे की राशि के लिए तीन ही खास बैंक की शाखाओं को चुना गया था।
लाभान्वित होने वाले पीड़ित परिजन के बैंक खाते का गवाह भी उनकी पैरवी करने वाले अधिवक्ता ही बनते थे। इतना ही नहीं उनके गांव के बैंक खाते के नाम से चेक का भुगतान न कर अलग से इन्हीं शाखाओं में खाता खुलवाया जाता था। राशि का भुगतान होते ही बैंक खाता भी बंद कर दिया जाता था। दैनिक जागरण की ओर से 2018 की 19 फरवरी को 'क्लेम के नाम पर करोड़ों की हेराफेरी', 21 फरवरी को 'मुआवजा पहले और बाद में आती थी जांच रिपोर्ट' तथा 22 फरवरी को 'जेबी संस्था बनाकर रखा गया था रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल को', शीर्षक से इस अनियमितता को उजागर करने की कोशिश की गई थी।
रेलवे ने खुद ही स्वीकार किया था कि 80 लोगों ने एक-एक मृतक के नाम पर चार-चार बार मुआवजा ले लिया था। इस मामले में पूर्व मध्य रेल के भी कई अधिकारी संदेह के घेरे में हैं। इस मामले की सीबीआइ जांच होने से अकेले न्यायिक सदस्य आरके मित्तल ही नहीं बल्कि कई बैंककर्मियों के साथ ही बैंक प्रबंधक, रेल थानाध्यक्ष, घोटाले की राशि हड़पने वाले अधिवक्ताओं के साथ ही मामले की लीपापोती करने वाले कई वरीय रेल अधिकारियों के भी फंसने की संभावना है।
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