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1853 से शुरू सफर बुलेट ट्रेन तक पहुंचा, कभी इंसान और जानवर खींचते थे रेलगाड़ी

भारतीय रेल का इतिहास समृद्ध होने के साथ रोचक भी है। एक समय ऐसा था जब इंसान और जानवर रेलगाड़ी खींचते थे, अब बुलेट ट्रेन चलाने की तैयारी हो रही है।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Thu, 12 Apr 2018 10:00 AM (IST)Updated: Fri, 13 Apr 2018 10:40 PM (IST)
1853 से शुरू सफर बुलेट ट्रेन तक पहुंचा, कभी इंसान और जानवर खींचते थे रेलगाड़ी
1853 से शुरू सफर बुलेट ट्रेन तक पहुंचा, कभी इंसान और जानवर खींचते थे रेलगाड़ी

पटना [चंद्रशेखर]। भारत की लाइफलाइन कही जाने वाली रेल का इतिहास समृद्ध होने के साथ रोचक भी है। आज भले ही बुलेट ट्रेन चलाने की कवायद हो रही है, लेकिन कभी रेलगाड़ी को इंसान और जानवर खींचते थे। यदि आपको विश्वास नहीं तो ज्ञान भवन में पूर्व मध्य रेलवे की ओर लगाई गई तीन दिवसीय प्रदर्शन का अवलोकन कीजिए। प्रदर्शन का शुभारंभ बुधवार को हुआ है।

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भारतीय रेल का इतिहास : 16 अप्रैल 1853 को पहली मर्तबा बोरीबंदर से थाणे के बीच जब ट्रेन चलाई गई थी। ब्रिटिश काल में ही रेलवे ने काफी तरक्की कर ली। औद्योगिक उपयोग के लिए सबसे पहले 1832 में रेलसेवा शुरू करने का प्रस्ताव दिया गया था। 1837 में तत्कालीन मद्रास में रेड हिल्स से चिंताद्रिपेट तक ट्रेन चलाई गई। इससे ग्रेनाइट स्टोन ढोया जाता था।

16 अप्रैल 1853 को पहली बार यात्रियों के लिए तत्कालीन गर्वनर लार्ड डलहौजी ने यात्री ट्रेन को हरी झंडी दिखाई। 1855 में फेयर क्वीन के नाम से कोयला से चलने वाला इंजन बनाया गया। 14 बोगियों में 400 यात्रियों को लेकर 34 किमी की दूरी तय की गई थी।

9 मई 1874 को हावड़ा में घोड़े से चलने वाली ट्रेन की शुरूआत की गई। हावड़ा से पहले बिहार के पटना में 1862 में स्टेशन का निर्माण किया गया। जहाज से पानी के रास्ते केमिकल का व्यापार होता था। 1863 में बड़ौदा के महाराज के लिए बैल से खींचने वाला सैलून बनाया गया।

1864 में जमालपुर रेल कारखाना बनाया गया। यहां जो घड़ी लगाई गई थी, उसमें कर्मचारियों की उपस्थिति दर्ज कराने के लिए पंचिंग मशीन भी लगाई गई थी। 1897 में जमालपुर में ही एक्सप्रेस व सवारी गाडिय़ों के लिए सबसे शक्तिशाली वाष्प इंजन बनाया गया।

1886 में बड़ौदा के महाराज सयाजी राव गायकवाड के लिए परेल रेल कारखाना में छह सीटर का सैलून बनाया गया था। बिहार के दरभंगा महाराज के लिए भी सारी सुख-सुविधाओं से सुसज्जित सैलून बनाया गया था, जो कोयले से चलने वाले इंजन से चलता था। धीरे-धीरे रेलवे में सुधार होते गया। 1923 में वाष्प से चलने वाले इंजन का निर्माण किया गया।

फिर रेलवे में डीजल इंजन से ट्रेनें चलने लगीं। हालांकि 1930 में ही पहली बार इलेक्ट्रिक इंजन का भी निर्माण कर लिया गया। कालांतर में डीजल इंजन की जगह इलेक्ट्रिक इंजन से ट्रेनें चलने लगीं। ट्रेनों की गति 30 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से 55 किमी प्रति घंटे तक पहुंची।

जब डीजल इंजन से ट्रेनें चलने लगी तो रफ्तार 75 किमी प्रति घंटे से 90 किमी प्रति घंटे तक पहुंच गई। आज ट्रेनें 120 से 150 किमी की गति से चल रही है। शीघ्र ही बुलेट व टेल्गो ट्रेनों का परिचालन होने लगेगा जो 200 से 350 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से फर्राटा भरेगी।


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