महागठबंधन को ले JDU के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने कही ये बात, जानिए
जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने महागठबंधन के बारे में कहा कि ये सब आजमाए और मात खाए हुए लोग हैं। आज महागठबंधन कहां है? वह तब था, जब जदयू उसका हिस्सा था।
पटना, राज्य ब्यूरो। जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह नहीं मानते कि आने वाले चुनावों में जदयू या समग्रता में एनडीए के सामने कोई चुनौती है। बहु प्रचारित महागठबंधन के बारे में उनकी टिप्पणी थी कि ये सब आजमाए मात खाए हुए लोग हैं। संगठन, चुनाव, विकास, शराबबंदी सहित कई मुददों पर उन्होंने दैनिक जागरण से विस्तृत बातचीत की। पेश हैं प्रमुख अंश-
महागठबंधन से मुकाबले की कोई खास तैयारी?
नीतीश कुमार चुनाव के लिए अलग से कभी तैयारी नहीं करते हैं। जनता की सेवा के मंत्र के साथ उनके दिन की शुरुआत होती है। वह कभी समीकरण के नाम पर वोट नहीं मांगते हैं। वे इलेक्शन के लिए नहीं, अगले जेनरेशन के लिए काम करते हैं। उन्हें काम के आधार पर ही वोट मिलता है।
आज जो दल महागठबंधन बना रहे हैं, उनसे अतीत में भी एनडीए का मुकाबला हो चुका है। 2010 का विधानसभा चुनाव में कमोवेश यही दल थे। महागठबंधन नाम नहीं था। क्या परिणाम आया? बताने की जरूरत नहीं है। आज महागठबंधन कहां है? वह तब था, जब जदयू उसका हिस्सा था।
कहते हैं कि सरकार की नीतियों से समाज का एक हिस्सा नाराज है।
यह कहने की बात है। कुछ योजनाएं उन वर्गो के लिए है, जो विकास की धारा में बहुत पीछे छूट गए थे।अनुसूचित जाति, जनजाति, अत्यंत पिछड़े और अल्पसंख्यकों को इस श्रेणी में रख सकते हैं। लेकिन, सरकार की बाकी योजनाएं सबके लिए है।
शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, कृषि आदि से जुड़ी योजनाएं किसी समूह के लिए लक्षित नहीं हैं। इनका लाभ सबको मिल रहा है।’ अपराध को लेकर चिन्ता है। हां, उन लोगों को अधिक है, जिनके शासन में लोग डर के मारे शाम ढलने से पहले घर लौट आते थे।
स्कूल गए बच्चों की माताएं उनके घर लौटने तक डरी-सहमी रहती थीं। अपराधियों का आतंक और बिजली की कमी के चलते पूरा राज्य शाम होते ही घुप्प अंधेरे में डूब जाता था। हिंसा, नरसंहार, अपहरण और बलात्कार जैसी घटनाएं आम हो गईं थीं। शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, खेती-बारी सबकुछ चौपट हो गया था।
अपराध को लेकर चिन्ता में रहने वाले लोग भ्रम में न रहें कि जनता जंगलराज के दौर को भूल गई है। दौर बदल गया है। महिलाएं बिना डर के किसी भी वक्त घर से निकल रही हैं। अपराधी जेल में हैं। हर घर बिजली पहुंच गई है।’
क्या कहेंगे कि विकास का लक्ष्य हासिल हो गया है। कुछ काम नहीं बचा है?
हम यह कैसे कह सकते हैं कि बिहार को अब विकास की जरूरत नहीं है। जन आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए दिन रात काम करना है। बहुत काम करना है। लक्ष्य है कि राज्य के हर नागरिक की आंख में उम्मीद की चमक हो। चेहरे पर संतोष का भाव हो। शराबबंदी की तारीफ हो रही है तो आलोचक भी कम नहीं हैं।
आलोचना का दौर गुजर गया। इसे असफल अभियान कह कर प्रचारित किया गया। कहा गया कि शराबबंदी समाज सुधारक का काम है। सरकार का काम नहीं है। आखिर हम समाजवादी लोग समाज को ही बदलने आए हैं। हमारा एक उद्देश्य समाज सुधार भी है। शराबबंदी के सकारात्मक परिणाम आ रहे हैं। रिसर्च हुआ है।
महिला हिंसा 54 फीसद से घट कर पांच फीसद रह गया है। सड़क हादसे में कमी आई है। शराब में खर्च होने वाला धन अब जीवन स्तर को सुधारने के मद में खर्च हो रहा है। नीतीश कुमार विकास के साथ-साथ सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन के लिए भी काम कर रहे हैं।