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बिहार उपचुनाव: नाकामयाबी के बावजूद भाजपा के भरोसे पर खरा उतरा जदयू

बिहार एपचुनाव में भले ही राजग को महागठबंधन से शिकस्‍त मिली है, लेकिन सिक्‍के का दूसरा पहलू भी है। भाजपा को जदयू के समर्थकों का संबल भी मिला है। जानिए मामला।

By Amit AlokEdited By: Published: Sun, 18 Mar 2018 09:46 AM (IST)Updated: Mon, 19 Mar 2018 07:03 PM (IST)
बिहार उपचुनाव: नाकामयाबी के बावजूद भाजपा के भरोसे पर खरा उतरा जदयू
बिहार उपचुनाव: नाकामयाबी के बावजूद भाजपा के भरोसे पर खरा उतरा जदयू

पटना [अरविंद शर्मा]। उपचुनाव में बिहार में भाजपा को भले ही अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल सकी, किंतु वोट के आंकड़े बता रहे हैं कि उसके भरोसे पर जदयू पूरी तरह खरा उतरा है। चुनाव आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक अररिया संसदीय सीट और भभुआ विधानसभा में जदयू के वोट भाजपा प्रत्याशियों के पक्ष में ट्रांसफर हुए हैं। हालांकि, जहानाबाद में प्रत्याशी के खिलाफ ऐसी नाराजगी थी कि जदयू के समर्थक भी बिदक गए थे।

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खास बात यह भी है कि उपचुनाव में जदयू के वोट भाजपा को ट्रांसफर कराने में मिली इस सफलता ने मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार का कद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजरों में बढ़ाया है। इससे बिहार राजग में नीतीश मजबूत होकर उभरे हैं।

पिछले साल महागठबंधन छोड़कर भाजपा के साथ जदयू के खड़ा होने पर सियासत में कई तरह के सवाल उठाए जा रहे थे। उपचुनाव में मतदान के पहले एक-दूसरे के वोट ट्रांसफर को लेकर भी संशय व्यक्त किया जा रहा था। दोनों दलों के समर्थकों के दल-दिल के मिलन पर सवाल उठाने वाले लोगों को चुनाव आयोग की ताजा रिपोर्ट से निराशा हो सकती है।

उपचुनाव के नतीजों ने यह गलतफहमी दूर कर दी है कि जदयू-भाजपा के वोट एक-दूसरे को ट्रांसफर नहीं हो सकते हैं। अररिया में लोकसभा चुनाव-2014 की तुलना में इस बार भाजपा को 16 फीसद वोट ज्यादा पड़े हैं। प्रचंड मोदी लहर में भी पिछली बार भाजपा के पक्ष में महज 27 फीसद वोट ही पड़े थे, जो अबकी बढ़कर 43 फीसद के पार पहुंच गया है।

2014 में भाजपा-जदयू प्रत्याशियों को अलग-अलग लड़ते हुए जितने वोट मिले थे, उसके कुल जोड़ से थोड़ा ही कम इस बार भाजपा को मिले हैं। अंतर सिर्फ 35 हजार 730 वोट का है, जिसे लोकसभा क्षेत्र की व्यापकता को देखते हुए ज्यादा नहीं कहा जा सकता है।

हालांकि, राजद प्रत्याशी सरफराज आलम को भी पिछली बार की अपेक्षा सात फीसद ज्यादा वोट मिले हैं, लेकिन भाजपा-जदयू की नई दोस्ती और वोट ट्रांसफर की कामयाबी के औसत को देखते हुए राजद-कांग्र्रेस-हम की तिकड़ी के लिए इसे खतरे की घंटी कहा जा सकता है। अतीत की कड़वाहट भुलाकर दोनों दलों के समर्थक एक-दूसरे के साथ खड़े नजर आए हैं।

राजद को भी हुआ सात फीसद का फायदा

अररिया में राजद उम्मीदवार को 2014 के लोकसभा चुनाव में 42 फीसद वोट मिले थे, जो उपचुनाव में बढ़कर 49 फीसद तक पहुंच गया। जाहिर है उसके वोट में भी सात फीसद का इजाफा हुआ है। प्रदेश भाजपा के पूर्व संगठन महामंत्री सुधीर शर्मा मुस्लिम बहुल आबादी के हिसाब से इसे राजद-कांग्र्रेस का कमाल मानने से इनकार करते हैं। उनका तर्क है कि पिछली बार अलग लड़ते हुए जदयू प्रत्याशी को जितने वोट मिले थे, लगभग उतना इस बार भाजपा प्रत्याशी के पाले में आ गया है। राजद को सिर्फ उन्हीं वोटों का फायदा मिला है, जिन्होंने सुनियोजित तरीके से भाजपा के खिलाफ मतदान किया है।

वोट फीसद: तब और अब

(दल : 2014 : 2018 : फीसद वृद्धि)

भाजपा : 27 : 43 : 16

राजद : 42 : 49 : 7


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