एक्टर क्यों दे राजनीतिक सवालों के जवाब, नेताओं से भी ली जाए फिल्मों पर राय: विनय पाठक
जागरण फिल्म फेस्टिवल का पटना के सिनोपोलिस में हुआ आगाज। पहले दिन दर्शकों से रूबरू हुए अभिनेता विनय पाठक।
By Akshay PandeyEdited By: Published: Fri, 09 Aug 2019 11:03 PM (IST)Updated: Sat, 10 Aug 2019 08:45 AM (IST)
पटना [अक्षय पांडेय]। 10वें जागरण फिल्म फेस्टिवल का इंतजार खत्म हुआ और बॉलीवुड कलाकार विनय पाठक सिने प्रेमियों से मुखातिब थे। पटना के पीएंडएम मॉल के सिनेपोलिस में आयोजित फिल्मोत्सव के उद्घाटन सत्र में विनय पाठक ने दर्शकों को सिनेमा की बारीकियों से रूबरू कराया। हिंदी सिनेमा के सितारों के दो भागों में बटने से जुड़े सवाल के जवाब में विनय ने कहा कि केवल फिल्मी हस्तियों से ही क्यों राजनैतिक सवाल पूछे जाते हैं? नेताओं से भी सवाल किया जाना चाहिए कि आपने फलां फिल्म क्यों नहीं देखी?
एमबीए छोड़कर ड्रामा में किया ज्वाइन
सिने प्रेमियों ने जब विनय पाठक से उनके जीवन संघर्ष के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने कई प्रेरक प्रसंग सुनाए। बताया कि मैंने एमबीए छोड़कर ड्रामा में प्रवेश लिया था। पिता जी को जब ये बात बताई, तो छह महीने तक ज्यादा बात नहीं हुई। फिर भी उन्होंने मेरे साथ दिया। मैं साहित्य का विद्यार्थी था, जिसका मुझे सिनेमा की दुनिया में भी काफी सहयोग मिला।
एक्टर बनने के लिए ड्रामा स्कूल की जरूरत नहीं
रील से रियल लाइफ के सफर को दर्शकों से साझा करते हुए विनय ने कहा कि पढ़ाई कभी नहीं छोडऩी चाहिए। स्कूल के दिनों से ही आपको अपनी प्रतिभा के विषय में जानकारी मिलने लगती है। मुझे थिएटर छोड़कर सारी विधाएं मुश्किल लगती थीं। विनय ने कहा कि कोई कैसा कलाकार है, ये दर्शक तय करते हैं। आप केवल अपनी ओर से बेहतर कोशिश कर सकते हैं, इसलिए एक्टर बनने को किसी ड्रामा स्कूल में प्रवेश लेने की जरूरत नहीं है।
पटना के रंगकर्मी बुलाएं तो कालिदास रंगालय में करूंगा नाटक
जब एक दर्शक ने कालिदास रंगालय और पटना के नाटकों से जुड़ा सवाल पूछा तो विनय पाठक ने कहा कि अगर मुझे पटना के रंगकर्मी याद करें तो मैं कालिदास रंगालय में खुद नाटक करने आऊंगा।
भेजा फ्राई से बदला कॉमेडी का ट्रेंड
विनय ने कहा कि फिल्म भेजा फ्राई के प्रोड्यूसर और डायरेक्टर को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि पिक्चर इतनी बड़ी हिट हो जाएगी। फिल्म को बजट से कई गुना ज्यादा मुनाफा मिला। जिसके बाद सिनेमा में कम बजट की फिल्मों से भी उम्मीद की जाने लगी।
सिनेमा का सृजन आसान नहीं
विनय ने कहा कि चंद मिनट में किसी की जीवन यात्रा दिखाना इतना आसान नहीं है। दर्शकों की पसंद को भी ख्याल में रखना पड़ता है। डायरेक्टर को एक टीम बनाकर काम करना पड़ता है। हिट के रोमांच और फ्लॉप के डर को मन में रखकर फिल्म का निर्माण नहीं किया जा सकता। सिनेमा महंगा आर्ट है इसलिए इसे समय की भी जरूरत है।
चर्चा और व्यावसायिक सफलता दोनों जरूरी
फिल्मों की चर्चा होना और उसका व्यावसायिक तौर पर सफल होना दो अलग-अलग बातें हैं। सिनेमा के लिए दोनों ही जरूरी हैं। जब आप चर्चा में आते हैं तो काम मिलता है। विनय ने कहा कि कम बजट की या छोटी फिल्मों के लिए सबसे बड़ा संघर्ष दर्शकों तक पहुंच बनाना है। विनय ने अपनी सबसे पसंदीदा फिल्म का जिक्र करते हुए कहा कि मैंने करीब दस से ज्यादा बार फिल्म मुगल-ए-आजम देखी। एक राजा की कहानी को दर्शकों ने सिर आंखों पर बैठाया। उसके एक-एक दृश्य आज भी मेरे जेहन में हैं।
आज तक ऑफर नहीं हुई एक भी भोजुपरी फिल्म
एक सवाल के जवाब में विनय ने कहा कि रंगमंच से जुडऩे के लिए बिहार छोड़कर जाने की जरूरत नहीं। आज के युवा ज्यादा संजीदा हैं। विनय ने कहा कि लोग मुझसे पूछते हैं कि बिहार से होने के बावजूद अबतक क्यों आपने भोजपुरी फिल्मों में काम नहीं किया? सच्चाई ये है कि आजतक मुझे भोजपुरी सिनेमा में काम करने के लिए आमंत्रण नहीं मिला है।
फिल्म फेस्टिवल ने बदली है सोच
जागरण फिल्म फेस्टिवल की सराहना करते हुए विनय ने कहा कि मैं इससे काफी समय से जुड़ा हूं। फेस्टिवल में चयनित फिल्में सिने प्रेमियों की सोच बदलती हैं। लोगों का थिएटर से जुड़ाव होता है। इस मंच से सार्थक सिनेमा का निर्माण होता है।
एमबीए छोड़कर ड्रामा में किया ज्वाइन
सिने प्रेमियों ने जब विनय पाठक से उनके जीवन संघर्ष के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने कई प्रेरक प्रसंग सुनाए। बताया कि मैंने एमबीए छोड़कर ड्रामा में प्रवेश लिया था। पिता जी को जब ये बात बताई, तो छह महीने तक ज्यादा बात नहीं हुई। फिर भी उन्होंने मेरे साथ दिया। मैं साहित्य का विद्यार्थी था, जिसका मुझे सिनेमा की दुनिया में भी काफी सहयोग मिला।
एक्टर बनने के लिए ड्रामा स्कूल की जरूरत नहीं
रील से रियल लाइफ के सफर को दर्शकों से साझा करते हुए विनय ने कहा कि पढ़ाई कभी नहीं छोडऩी चाहिए। स्कूल के दिनों से ही आपको अपनी प्रतिभा के विषय में जानकारी मिलने लगती है। मुझे थिएटर छोड़कर सारी विधाएं मुश्किल लगती थीं। विनय ने कहा कि कोई कैसा कलाकार है, ये दर्शक तय करते हैं। आप केवल अपनी ओर से बेहतर कोशिश कर सकते हैं, इसलिए एक्टर बनने को किसी ड्रामा स्कूल में प्रवेश लेने की जरूरत नहीं है।
पटना के रंगकर्मी बुलाएं तो कालिदास रंगालय में करूंगा नाटक
जब एक दर्शक ने कालिदास रंगालय और पटना के नाटकों से जुड़ा सवाल पूछा तो विनय पाठक ने कहा कि अगर मुझे पटना के रंगकर्मी याद करें तो मैं कालिदास रंगालय में खुद नाटक करने आऊंगा।
भेजा फ्राई से बदला कॉमेडी का ट्रेंड
विनय ने कहा कि फिल्म भेजा फ्राई के प्रोड्यूसर और डायरेक्टर को भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि पिक्चर इतनी बड़ी हिट हो जाएगी। फिल्म को बजट से कई गुना ज्यादा मुनाफा मिला। जिसके बाद सिनेमा में कम बजट की फिल्मों से भी उम्मीद की जाने लगी।
सिनेमा का सृजन आसान नहीं
विनय ने कहा कि चंद मिनट में किसी की जीवन यात्रा दिखाना इतना आसान नहीं है। दर्शकों की पसंद को भी ख्याल में रखना पड़ता है। डायरेक्टर को एक टीम बनाकर काम करना पड़ता है। हिट के रोमांच और फ्लॉप के डर को मन में रखकर फिल्म का निर्माण नहीं किया जा सकता। सिनेमा महंगा आर्ट है इसलिए इसे समय की भी जरूरत है।
चर्चा और व्यावसायिक सफलता दोनों जरूरी
फिल्मों की चर्चा होना और उसका व्यावसायिक तौर पर सफल होना दो अलग-अलग बातें हैं। सिनेमा के लिए दोनों ही जरूरी हैं। जब आप चर्चा में आते हैं तो काम मिलता है। विनय ने कहा कि कम बजट की या छोटी फिल्मों के लिए सबसे बड़ा संघर्ष दर्शकों तक पहुंच बनाना है। विनय ने अपनी सबसे पसंदीदा फिल्म का जिक्र करते हुए कहा कि मैंने करीब दस से ज्यादा बार फिल्म मुगल-ए-आजम देखी। एक राजा की कहानी को दर्शकों ने सिर आंखों पर बैठाया। उसके एक-एक दृश्य आज भी मेरे जेहन में हैं।
आज तक ऑफर नहीं हुई एक भी भोजुपरी फिल्म
एक सवाल के जवाब में विनय ने कहा कि रंगमंच से जुडऩे के लिए बिहार छोड़कर जाने की जरूरत नहीं। आज के युवा ज्यादा संजीदा हैं। विनय ने कहा कि लोग मुझसे पूछते हैं कि बिहार से होने के बावजूद अबतक क्यों आपने भोजपुरी फिल्मों में काम नहीं किया? सच्चाई ये है कि आजतक मुझे भोजपुरी सिनेमा में काम करने के लिए आमंत्रण नहीं मिला है।
फिल्म फेस्टिवल ने बदली है सोच
जागरण फिल्म फेस्टिवल की सराहना करते हुए विनय ने कहा कि मैं इससे काफी समय से जुड़ा हूं। फेस्टिवल में चयनित फिल्में सिने प्रेमियों की सोच बदलती हैं। लोगों का थिएटर से जुड़ाव होता है। इस मंच से सार्थक सिनेमा का निर्माण होता है।
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