सत्ता संग्राम: अबकी किसी के लिए आसान नहीं होगी शिवहर की लड़ाई
बिहार के शिवहर संसदीय को चितौड़ गढ़ कहा जाता है। लगातार आठ बार यहां से एक खास जाति के नेता ही चुनाव जीतते रहे। 2009 और 2014 में भाजपा के टिकट पर रमा देवी सांसद हैं।
पटना [अरविंद शर्मा]। बिहार का शिवहर संसदीय सीट को बिहार का चितौड़ गढ़ कहा जाता है, क्योंकि 1971 से 1998 तक लगातार आठ बार यहां से एक खास जाति के नेता ही चुनाव जीतते रहे। इसके बाद तिलिस्म टूटा तो भी प्रमुख सियासी ताकत के रूप में बने-जमे रहे।
स्पष्ट है कि शैक्षणिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े इस क्षेत्र में राजनीतिक लड़ाई कभी आसान नहीं रही। सामाजिक समीकरण के लिहाज से राजद के लिए अनुकूल इस सीट पर दो बार से भाजपा की रमा देवी का कब्जा है। इसके पहले दो बार लगातार राजद ने भी झंडा बुलंद किया था।
बिहार पीपुल्स पार्टी के संस्थापक आनंद मोहन भी यहां से दो बार जीत चुके हैं। उनकी पत्नी लवली आनंद भी किस्मत आजमा चुकी हैं, लेकिन सफलता नसीब नहीं हुई है। शिवहर इसलिए भी चर्चित रहा है कि अपने इलाके के कद्दावर नेताओं में शुमार रहे रघुनाथ झा को इसने कभी नहीं अपनाया।
हर बार के प्रयास में उन्हें हार ही मिली। वैसे रघुनाथ शिवहर से छह बार विधायक चुने गए, लेकिन संसदीय चुनाव में कामयाब नहीं हो सके। गोपालगंज और बेतिया ने उन्हें अपनाया, लेकिन 37 वर्षों के संसदीय जीवन में अपने घर के लिए रघुनाथ बेगाने बने रहे।
पिछले चार चुनावों से शिवहर संसदीय क्षेत्र में लालटेन और कमल के बीच कांटे की टक्कर हो रही है। इस बार भी ऐसे ही हालात दिखने लगे हैं। राजद के टिकट के लिए पूर्व सांसद लवली आनंद, रघुनाथ झा के पुत्र अजीत कुमार झा एवं अंगेश कुमार अंगराज सक्रिय हैं। पिछले चुनाव में लवली आखिरी समय में पार्टी बदलने के कारण चौथे स्थान से आगे नहीं बढ़ पाई थीं।
भाजपा में भी कई तरह की चर्चाएं हैं। रक्सौल की रहने वाली भाजपा सांसद रमा देवी मजबूत दावेदार हैं। वैश्य समाज से आने वाले सीतामढ़ी के भाजपा विधायक सुनील कुमार पिंटू की भी नजर इस सीट पर है। वैसे चर्चित नेता रामा सिंह और लोजपा के नसीब खान के प्रयासों की भी चर्चा आम है।
पिछला चुनाव बेहद चर्चित
पिछले लोकसभा चुनाव में शिवहर की राजनीति में एक अलग रंग दिखा। जदयू से टिकट लेने के बाद साबिर अली ने ऐन वक्त पर पाला बदल लिया और भाजपा में चले गए। जहां गए, वहां भी 24 घंटे से ज्यादा नहीं टिक पाए। विरोध शुरू होते ही उन्हें बाहर कर दिया गया। साबिर से सबक मिलने के बाद जदयू ने अपने मंत्री शाहिद अली खान को मैदान में उतारा। आनंद मोहन की पत्नी लवली के साथ भी धोखा हुआ था। उन्हें उम्मीद थी कि समझौते के तहत यह सीट कांग्र्रेस के खाते में आएगी और उन्हें मौका मिलेगा, किंतु राजद के पाले में चले जाने पर लवली ने पाला बदल लिया और साइकिल की सवारी कर ली। राजद ने अनवारूल हक को प्रत्याशी बनाया। जीत रमा देवी को मिली।
मुद्दे पर महाभारत
चुनाव के दौरान शिवहर में कोई मुद्दा नहीं होता। यहां सड़क, अस्पताल, बाढ़, बागमती का तटबंध, गन्ना किसानों का भुगतान, पानी जैसे कई बड़े मसले हैं, लेकिन पिछले चार बार से देखा जा रहा है कि विकास के नाम पर वोट नहीं मांगे जा रहे। मुस्लिम-यादव और मोदी लहर की गोलबंदी ही जीत-हार तय कर देती है। आम दिनों में सबसे बड़ा मुद्दा शिक्षा की बदतर स्थिति है।
शिवहर को जिला बने 24 साल बीत गए, लेकिन दुर्भाग्य है कि यहां एक भी डिग्री कालेज नहीं है। उच्च शिक्षा के लिए यहां के बच्चों को सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर या पटना की दूरी तय करनी पड़ती है। एनएच-104 पिछले आठ वर्षों से बन रहा है। अभी तक फाइनल नहीं हुआ है। मोतिहारी से सीतामढ़ी तक प्रस्तावित रेलवे पर लाइन 100 करोड़ खर्च हो गया और आखिरी समय में योजना को ही रद्द कर दिया गया। इससे भी लोगों में आक्रोश है।
चार साल का विकास
सांसद रमा देवी कहती हैं कि खूब काम हुआ है। 212 करोड़ की लागत से एनएच-104 को चौड़ा किया जा रहा है। सांसद कोष में पांच करोड़ रुपये मिलते हैं, लेकिन क्षेत्र में करोड़ों की योजनाओं पर काम चल रहा है। पांच लाख से अधिक लोगों के जनधन खाते खुल चुके हैं। 65 हजार लोगों का प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा करवाया गया है। किसानों के स्वॉयल हेल्थ कार्ड बन रहे हैं। बिजली के लिए पावर सब स्टेशन, पीसीसी सडकें, पुल-पुलिया बन रहे हैं। स्ट्रीट लाइट लगाई जा रही है।