लेखन में भाषा के साथ कथ्य का भी सुंदर होना जरूरी
औरतों को अपनी मानसिकता बदलनी होगी। वे अब कमजोर नहीं हैं
पटना। औरतों को अपनी मानसिकता बदलनी होगी। वे अब कमजोर नहीं हैं। वे अपना निर्णय स्वयं ले सकती हैं। महिलाओं को स्वतंत्रता मिलती है तो वो अपने तरीके से दुनिया देखती हैं। हर स्त्री अपने तरीके से विरोध करती है। ये बातें 'जंगल का जादू तिल-तिल', 'पहर दोपहरी ठुमरी' आदि कथा संग्रह लिखने वाली बिहार की लेखिका प्रत्यक्षा ने दर्शकों से वर्चुअल संवाद के तहत रूबरू होते हुए कहीं।
प्रभा खेतान फाउंडेशन, श्री सीमेंट व नवरस स्कूल ऑफ परफॉर्मिग आर्ट्स के तत्वावधान में शनिवार को 'कलम' कार्यक्रम के वर्चुअल सेशन के तहत लेखिका ने पाठकों से रूबरू होते हुए साहित्य सृजन पर विस्तार से प्रकाश डाला। कार्यक्रम का मीडिया पार्टनर दैनिक जागरण रहा। कार्यक्रम का संचालन पूनम आनंद ने किया, जबकि लेखिका से बातचीत रश्मि शर्मा ने की। प्रत्यक्षा ने बताया कि उन्हें लिखने और पेंटिंग करने का शौक रहा है। उन्होंने कहा कि पेंटिंग की तुलना में साहित्य सृजन अभिव्यक्ति का सरल और सशक्त माध्यम है। लेखन में भाषा के साथ कथ्य भी सुंदर होना चाहिए। लेखिका ने अपनी पुस्तकों के शीर्षक पर कहा कि कथा लेखन के दौरान कई बार आकर्षक शब्द मिल जाते हैं। कभी-कभी कहानी को खत्म करने के दौरान पुस्तक के लिए शीर्षक मिल जाता है। नौकरी और साहित्य सृजन एक साथ करने के बारे में लेखिका ने कहा कि अगर आप के अंदर साहित्य सृजन को लेकर जुनून है तो किसी भी परिस्थिति में आप सृजन का कार्य कर सकती हैं। कार्यक्रम के दौरान डॉ. मंगला रानी, प्रमोद कुमार झा, अन्विता प्रधान आदि ने लेखिका से अपने सवालों के जवाब प्राप्त किए। बिहार-झारखंड के कई साहित्य प्रेमियों का जुड़ाव कार्यक्रम से रहा। लोगों के प्रश्नों का जवाब देते हुए लेखिका ने कहा कि लेखन पर माहौल का भी प्रभाव पड़ता है। जगह की तासीर लेखन कार्य में अवश्य आती है।