बिहार में सरकारी सेवकों पर आरोप लगाना अब नहीं होगा आसान, जानिए क्यों..
बिहार सरकार के सेवकों पर अब आरोप लगाने के बाद कड़े नियमों का पालन करना होगा। सामान्य प्रशासन विभाग ने आकलन किया है कि इस मामले में नियमों का पालन नहीं किया जाता।
पटना, राज्य ब्यूरो। सरकारी सेवकों पर आरोप लगता है। उसकी जांच होती है। इस आधार पर उन्हें सजा दी जाती है। दोष को खारिज भी किया जाता है। सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग का आकलन है कि सजा और दोषमुक्ति के बारे में जांच प्राधिकार का अंतिम आदेश काफी संक्षिप्त रहता है, जिससे यह पता नहीं चलता है कि जांच में निर्धारित नियमावली का पालन किया गया है या नहीं।
सरकारी सेवकों के विरुद्ध जांच की यह कार्रवाई बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियमावली 2005 के तहत की जाती है। समय-समय पर इसमें कई बार संशोधन भी किए गए हैं।
सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से सभी विभागाध्यक्षों, प्रमंडलीय आयुक्तों और जिलाधिकारियों को परिपत्र जारी कर कहा गया है कि जांच के मामले में नियमावली का सख्ती से पालन किया जाए।
सूत्रों ने बताया कि अस्पष्ट और संक्षिप्त आदेश के कारण सजा पाए कर्मी अदालत चले जाते हैं। यह अंतत: मुकदमों का बोझ बढ़ाने वाला फैसला साबित होता है। परिपत्र में 11 मुद्दों को चिह्नित कर जांच में उन्हें शामिल करने के लिए कहा गया है। इसके तहत जांच अधिकारी को उल्लेख करना होगा कि आरोप लगने के वक्त कर्मी कहां पदस्थापित थे। सभी आरोपों का संक्षिप्त विवरण और आरोप के पक्ष में दिए गए तर्क और सबूत देना होगा।
जांच करने वाले अधिकारी का भी पूरा विवरण जांच रिपोर्ट में शामिल करना होगा। अगर आरोपित कर्मी के किसी तर्क से जांच अधिकारी संतुष्ट नहीं होते हैं तो इस बारे में आरोपित को बता कर उनका पक्ष लिया जाए। जांच अधिकारी यदि सेवक के पक्ष से संतुष्ट नहीं होते हैं तो उन्हें इसके बारे में भी विस्तृत विवरण देना होगा।
जांच अधिकारी दंड निर्धारित करते हैं तो उन्हें सक्षम प्राधिकार से परामर्श करना होगा। इसका उल्लेख भी आदेश में होगा। अगर किसी को आरोपों से मुक्त किया जाता है तो इसका विस्तृत विवरण जांच रिपोर्ट में देना होगा।