इंद्रलोक पहुंची थी भगवान राम की उड़ाई पतंग, जानें क्या है पतंगोत्सव की मान्यता
पतंगोत्सव का भी अपना इतिहास है। कभी भगवान राम ने पतंग उड़ाई थी। जिसने इंद्रलोक की सैर की थी। जानें क्यों मकर संक्रांति पर आसमान में लहराती हैं पतंगें।
प्रभात रंजन, पटना। मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। भले ही पतंग उड़ाने और पतंगों के स्वरूप में बदलाव आया हो लेकिन लोगों में उमंग और मस्ती आज भी बरकरार है। कागज और धागे की डोर एेसे ही नहीं मशहूर है। इसकी भी एक मान्यता है। कभी भगवान राम ने पतंग की डोर हाथ में थामी थी। उनकी पतंग ने इंद्रलोक की सैर की थी। पटना में भी पतंग उड़ाने के शौकीन हैं। आज जानते हैं इस बार मकर संक्रांति पर कैसी है राजधानीवासियों की तैयारी।
एक साथ रहने का संदेश देती है पतंग
ऐसी मान्यता है कि पतंग अकेले नहीं उड़ाइ जाती। पतंग उड़ाने के लिए दो लोगों की जरूरत होती है एक इंसान धागा पकड़ता है तो दूसरा पतंग को सहारा देकर ऊपर उठाता है। पतंग सिर्फ मौज-मस्ती के लिए नहीं वरन समाज में एक साथ रहने का भी संदेश देती हैै। ज्योतिष आचार्य पंडित राकेश बताते हैं कि मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य दक्षिणायण से उत्तरायण होते हैं। दूसरी ओर संक्रांति के दिन घंटो सूर्य की रोशनी में पतंग उड़ाने से शरीर को प्रचुर मात्रा में सूर्य की रोशनी मिलती है। पतंग उड़ाने से दिल और दिमाग का संतुलन बने रहने के साथ जीवन में एकाग्रता बनी रहती है। पंडित राकेश ने बताया कि मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने का वर्णन रामचरित मानस के बालकांड में मिलता है। तुलसीदास ने इसका वर्णन करते हुए लिखा है कि 'राम इन दिन चंग उड़ाई, इंद्रलोक में पहुंची जाईÓ मान्यता है कि मकर संक्रांति पर जब भगवान राम ने पतंग उड़ाई थी तो पतंग इंद्रलोक पहुंच गई थी। उस समय से लेकर आज तक पतंग उड़ाने की परंपरा चली आ रही है।
बरेली का मांझा व पटना की पतंग और लटाई
कदमकुआं में 20 वर्षो से पतंग की दुकान सजाए गोपाल बताते हैं कि मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने का रिवाज रहा है लेकिन पांच वर्षो से पतंग उड़ाने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है। अपने पुश्तैनी धंधे से जुड़े गोपाल बताते हैं कि पहले पिता पतंगों का कारोबार करते थे। इनकी मानें तो अब पटना की मंडियों में बिक्री के लिए मांझा व धागा बरेली व लखनऊ से आता है। ये धागे रंग-बिरंगे होने के साथ टिकाऊ और धारदार होते हैं। जिस कारण इनकी डिमांड ज्यादा है। वहीं काफी संख्या में पतंगों का निर्माण पटना सिटी के मच्छरहट्टा में होता है। यहां से ही पतंग विभिन्न राज्यों में बिक्री के लिए जाता है। वहीं लटाई का निर्माण भी अपने शहर पटना में होता है। कमाची व लटाई बनाने में कारीगर बांस का प्रयोग करते हैं। हालांकि बांस की कमाची कोलकाता के मरियाबुज से भी पटना में आता है। जिसे लोग खूब पंसद करते हैं।
छोटा भीम से लेकर मोदी तक की डिमांड
वैसे तो पटना के दुकानों में कागज और प्लास्टिक से बनी पतंग मौजूद हंै, लेकिन प्लास्टिक से बनी पतंगों की बात अलग है। प्लास्टिक से बनी पंतगों पर जहां एक ओर छोटा भीम, डोरेमोन, मोटू-पतलू आदि विभिन्न प्रकार के कार्टून बने हैं। दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ फिल्मी सितारों में सलमान, शाहरुख, कैटरिना, करीना आदि की लोगों में खूब डिमांड है।
कभी आती थी पटना में नेपाल की पतंग
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर के साथ स्लोगन लिखी पतंग लोग ज्यादा पसंद कर रहे हैंं। दुकानदार गोपाल की मानें तो डेढ़ दशक पूर्व तक पटनिया पतंग की डिमांड खूब थी। जिसके कारण यहां से नेपाल तक पतंग बनकर जाती थी। पटना से मध्य प्रदेश, मणिपुर, झारखंड आदि राज्यों तक पतंग का कारोबार होता था। लेकिन अब समय के साथ हर चीजों में बदलाव आ गया। पटना की बनी पंतगों से ज्यादा दूसरे राज्यों से आई पतंगों की डिमांड है। दूसरी ओर कागज से बनी पतंगों की बिक्री न के बराबर है।
कीमतों पर एक नजर
कागज की बड़ी पतंग - 150 से 300 रुपये प्रति सैकड़ा
कागज की पतंग छोटा - 100 से 120 रुपये प्रति सैकड़ा
प्लास्टिक की पतंग बड़ा - 150 से 400 रुपये प्रति सैकड़ा
प्लास्टिक की छोटा पतंग - 110 से 350 रुपये प्रति सैकड़ा
धागा - 100 रुपये से 150 रुपये प्रति एक हजार मीटर
लटाई नंबर के हिसाब से - 50 रुपये से लेकर 500 रुपये तक