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चंपारण सत्याग्रह को निफ्ट का नीला नमन

बापू के चंपारण सत्याग्रह का शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है। चंपारण सत्याग्रह का नाम लेते ही नी।

By JagranEdited By: Published: Thu, 20 Apr 2017 03:06 AM (IST)Updated: Thu, 20 Apr 2017 03:06 AM (IST)
चंपारण सत्याग्रह को निफ्ट का नीला नमन
चंपारण सत्याग्रह को निफ्ट का नीला नमन

बापू के चंपारण सत्याग्रह का शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है। चंपारण सत्याग्रह का नाम लेते ही नीलहे किसान और नील का ख्याल भी उभर आता है। राष्ट्रीय फैशन प्रौद्योगिकी संस्थान यानी निफ्ट पटना ने इस मौके को बड़े ही अनूठे अंदाज में याद करते हुए महात्मा गांधी को नमन किया है। वहां गांधी भी हैं, चंपारण भी है, नील भी है, स्वदेशी भी है और फैशन भी। इस अनूठे प्रदर्शनी को आयोजित किया है निफ्ट पटना के छात्र-छात्राओं ने। सुधीर की रिपोर्ट..

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नील यानी एक रंग। नील यानी एक फसल। नील यानी अंग्रेजों की क्रूरता की निशानी। नील यानी सफेदी को खूबसूरत और आकर्षक बनाने वाला रंग। कितने रंग हैं नील के। वह नील, जो मिस्र के फाराओ से लेकर आज तक अभिजात्य वर्ग का पसंदीदा रंग रहा है। यह फैशन की दुनिया को भी खूब आकर्षित करता है। इसी आकर्षक नील के लिए अंग्रेजों ने बिहार में क्रूरता का इतिहास लिख दिया था। किसानों को जबरदस्ती तीन कट्ठा प्रति बीघा के हिसाब से नील की खेती करना अनिवार्य था। नील की निर्धारित उपज, लगान, नील की खेती से बंजर होती जमीन आदि समस्याओं से किसान त्राहिमाम कर रहे थे, जिन्हें महात्मा गांधी ने मुक्ति दिलाई। गलती नील में नहीं थी, गलती अंग्रेजों की नीति और नीयत में थी। आज भी नील की खेती दुनिया भर में हो रही है और उसे खूब पसंद किया जा रहा है। इसे बेहद आकर्षक ढंग से दिखा रहे थे निफ्ट पटना के स्टूडेंट। कैंपस में बुधवार को नील, इसके विभिन्न उपरंग, अतीत से वर्तमान तक इसकी यात्रा, इसके अन्य उपयोग, आधुनिक फैशन में नील के महत्व आदि को खास अंदाज में फैशन के छात्र-छात्राओं ने दिखाया। उनका मार्गदर्शन किया फैशन डिजाइनर गीता खन्ना ने। युवाओं ने साबित कर दिया कि उन्हें सिर्फ संजय लीला भंसाली की 'सांवरिया' का नीला रंग ही नहीं भाता, बल्कि चंपारण का नीला रंग भी प्रभावित करता है।

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नील का मतलब भारत :

नील के भारत के साथ रिश्ते का अंदाजा कुछ इस प्रकार लगाया जा सकता है। यूरोप ने इस रंग का नाम इंडिया से जाने के कारण इंडिगो रख दिया।

निफ्ट की प्रदर्शनी में नील की अबतक की इतिहास-यात्रा और इसके अन्य पक्षों को भी दिखाया गया। इतिहास बताता है कि प्राचीन काल से ही नीले रंग का फैशन में इस्तेमाल होने लगा था। कम से कम ईसा पूर्व 1300 में इसके इस्तेमाल होने के स्पष्ट प्रमाण हैं। मिस्र के फाराओ यानी राजा तुतानखेमान के कपड़ों में नील का प्रयोग किया गया था। यह नील का पहला प्रमाण माना जाता है। भारत के संदर्भ में देखें तो 300 ईसा पूर्व से ही अपना देश नील का प्रमुख उत्पादक रहा है। तब यहां से रोम आदि को निर्यात किया जाता था। बाद में पूरे यूरोप में यहां से आपूर्ति होने लगी।

नीले रंग के ढेर प्रकार :

नीला रंग अपने साथ रंगों की पूरी बस्ती बसाए रहता है। निफ्ट की छात्रा अदिति बताती हैं कि सफेद कपड़े को नीले रंग में जितनी बार डाई किया जाएगा, हर बार उसमें फर्क रहेगा। मतलब रंग तो नीला ही रहेगा, लेकिन हर बार पिछली बार से कुछ अंतर होगा। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि प्राकृतिक डाई से किसी दो कपड़े पर हूबहू एक जैसा नीला रंग चढ़ाना मुमकिन नहीं है। यह नील की बहुत बड़ी खासियत है।

नील के पौधे में कुछ भी नीला नहीं होता :

यह बिल्कुल ही अनोखी बात है कि नील के पौधे में नीला कुछ भी नहीं होता। प्रॉसेसिंग से पौधों से नीला रंग प्राप्त किया जाता है। इसके लिए पहले उसका अर्क निकाला जाता है और फिर उसे तब तक गर्म किया जाता है, जब तक कि वह ठोस रूप में न बदल जाए। यह ठोस रूप ही नील की टिकिया होती है। निफ्ट की प्रदर्शनी में नील के पौधे से नील की टिकिया बनाने तक की विधि भी दिखाई गई है।

छात्रों ने भी दिखाई डिजाइनिंग की प्रतिभा :

समारोह में छात्रों के डिजाइन किए कपड़ों को भी जगह दी गई थी। कपड़ों पर नीले रंगों का इस्तेमाल देखते ही बन रहा था। कुछ बड़े डिजाइनरों के डिजाइन को यहां के छात्रों ने कपड़ों पर उतारा था। सबके केंद्र में था नीला रंग। छात्र-छात्राओं में प्रदर्शनी के दौरान सेल्फी लेने का क्रेज भी खूब रहा।

महानिदेशक ने की छात्रों की तारीफ :

प्रदर्शनी का उद्घाटन निफ्ट मुख्यालय दिल्ली से आई महानिदेशक डॉ. शारदा मुरलीधरन ने किया। उद्घाटन के बाद उन्होंने पूरी एक्जीबिशन देखी और छात्र-छात्राओं की रचनात्मक क्षमता की खूब तारीफ की। उन्होंने कहा कि नील पर केंद्रित यह प्रदर्शनी बहुत ही मनमोहक और ज्ञानव‌र्द्धक है। निफ्ट पटना के निदेशक संजय श्रीवास्तव ने कहा कि कैंपस में बच्चों की रचनात्मक क्षमता विकसित करने के लिए ऐसे कार्यक्रम लगातार आयोजित किए जाते हैं। इस प्रदर्शनी से स्वतंत्रता संग्राम, उसमें महात्मा गांधी के योगदान, रंगों का इतिहास, रंगों के प्रयोग आदि के प्रति छात्रों की रुचि बढ़ेगी। उद्घाटन के मौके पर संस्थान के सहायक निदेशक प्रभास झा, डॉ. सुधा रश्मि ठाकुर, स्नेहा भटनागर, पुनीत, निफ्ट दिल्ली की डीन डॉ. शर्मिला सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं मौजूद थे।

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गांधी और उनके सिद्धांत करते हैं प्रभावित :

गांधी का जीवन और उनका दर्शन आज भी युवाओं को प्रभावित करता है। दिलचस्प यह भी है कि उस अधनंगे फकीर को फैशन की नई परिभाषा गढ़ने को तैयार हो रहे स्टूडेंट भी खूब पसंद करते हैं। निफ्ट के छात्र बता रहे हैं कि उन्हें गांधी क्यों आकर्षित करते हैं..

- गांधी से मैं बहुत प्रभावित हूं। उनकी जिंदगी की सादगी से लेकर उनके लड़ने का तरीका, समय का पाबंद होना आदि सबकुछ काफी प्रेरक है। उन्होंने देश के लिए बहुत कुर्बानी दी। कभी अपने बारे में नहीं सोचा। वे चाहते तो आराम की जिंदगी जी सकते थे। उन्होंने सिखाया कि हमें अपनी मिट्टी से जुड़ा होना चाहिए। वे काफी मेहनती थे। उन्होंने बताया कि सादगी सबसे आकर्षक फैशन हो सकता है।

- रानी सिंह, छात्रा, निफ्ट

- हम सभी महात्मा गांधी द्वारा देश के लिए असहयोग आंदोलन, सत्याग्रह आदि के बारे में जानते हैं। उनकी अ¨हसा की नीति से काफी प्रभावित हूं। उन्होंने साबित किया कि अ¨हसा से बड़ी से बड़ी समस्या को भी हल किया जा सकता है। बिना ¨हसा के भी हल निकल सकता है। जब पूरा देश पश्चिम की धारा में बहने को तैयार था, तब महात्मा गांधी ने देश को अपनी समृद्ध विरासत से परिचित कराया और स्वदेशी की ओर मोड़ा।

- समीर राज, छात्र, निफ्ट

- मैं गांधी की हर बात से सहमत नहीं हूं, लेकिन उनकी अ¨हसा की नीति से काफी प्रभावित हूं। उनका खादी आंदोलन बहुत ही खास था। हमारे राज्य और देश में सुजनी आदि कई परांपरागत शिल्प हैं, जिन्हें हम नहीं जानते। उनका स्वदेशी आंदोलन बहुत ही खास था। मैं टेक्सटाइल डिजाइन में स्वदेशी कला और शिल्प का चयन करूंगी। इससे देश के जीडीपी बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।

- अदिति चौधरी, छात्रा, निफ्ट

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