सत्ता का संग्राम: नालंदा में नीतीश ने लालू की अभी तक नहीं होने दी है इंट्री
नालंदा नीतीश कुमार का संसदीय क्षेत्र कहा जाता है। यहां सिर्फ नीतीश कुमार की ही जीत हुई है। यही एक एेसा क्षेत्र है जहां अबतक लालू की पार्टी की इंट्री नहीं हुई है।
पटना [अरविंद शर्मा]। नालंदा बिहार का एकमात्र संसदीय क्षेत्र है, जहां लालू प्रसाद की पार्टी का अभी तक खाता नहीं खुल सका है। तब भी नहीं, जब बिहार की राजनीति उनके इशारे पर चलती-दौड़ती थी। नालंदा की सियासत का मतलब नीतीश कुमार।
उन्होंने जिस पर हाथ रख दिया, जीत उसी की हुई। मुख्यमंत्री के गृह क्षेत्र में 1996 से एक ही धुरी पर राजनीति का पहिया घूम रहा है। किसी और की पैठ नहीं है। भगवान बुद्ध की भूमि पर कांग्रेस की कहानी तो 1971 तक ही सुनी गई। उसके बाद भाकपा ने कुछ जोर जरूर लगाया, लेकिन राजनीति में नीतीश के आने और छाने के बाद किसी की चाल काम नहीं आ रही।
नीतीश खुद भी यहां से 2004 में सांसद चुने गए थे। लोजपा के डॉक्टर कुमार पुष्पंजय को हराया था। हालांकि अगले ही वर्ष मुख्यमंत्री बने तो उपचुनाव में जदयू से रामस्वरूप प्रसाद चुने गए। पिछली दो बार से नालंदा के मतदाताओं की कृपा जदयू सांसद कौशलेंद्र कुमार पर बरस रही है।
अगली बार की तैयारी है, किंतु अभी से कुछ नहीं कहा जा सकता। टिकट की लाइन में कई हैं। कौशलेंद्र भी हैं। अस्थावां के जदयू विधायक डॉ. जीतेंद्र भी सपने देख रहे हैं। उसी हिसाब से सक्रिय भी हैं। लोजपा वाले सत्यानंद शर्मा ओझल हैं। अस्थावां के पूर्व विधायक सतीश कुमार एक नई पार्टी बनाकर फिर सक्रिय होने की कोशिश में हैं।
वैसे नालंदा के मतदाता सीधे मुख्यमंत्री को देखते हैं। प्रत्याशी को नहीं। तीन दशक का इतिहास बता रहा है कि जदयू की ओर से मैदान में जो भी होगा, नालंदा के लोगों की पहली पसंद होगा।
महागठबंधन खेमे से यहां राजद का कोई वजूद नहीं है। लालू ने नालंदा निवासी सैयद मोहसीन खुर्शीद को एमएलसी बनाकर अपनी स्थिति ठीक करने की कोशिश की है। कांग्रेस की स्थिति थोड़ी ठीक है। पिछले चुनाव में आशीष रंजन सिन्हा ने करीब सवा लाख वोट का जुगाड़ भी कर लिया था। इस बार वह हाशिये पर हैं।
कांग्रेस की झोली में सीट आई तो जिलाध्यक्ष दिलीप कुमार का दावा बन सकता है। ऊपर-नीचे अच्छी पकड़ है। उपेंद्र कुशवाहा चाहकर भी नालंदा में कुछ कर नहीं पाए। नालंदा संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस का आखिरी पिलर 1971 तक सिद्धेश्वर प्रसाद के रूप में खड़ा था, लेकिन इंदिरा विरोधी लहर में 1977 में यह एक बार उखड़ा तो दोबारा खड़ा नहीं हो पाया।
भारतीय लोकदल को भी एक मौका मिला, लेकिन उसके बाद भाकपा का कब्जा हो गया। तीन बार लगातार जीत के तिलिस्म को नीतीश की मदद से वर्ष 1996 में समता पार्टी के टिकट पर जॉर्ज फर्नाडीज ने तोड़ा। तब से नालंदा जदयू का होकर रह गया।
विधानसभा क्षेत्र
अस्थावां (जदयू)
राजगीर (जदयू)
इस्लामपुर (जदयू)
नालंदा (जदयू)
हरनौत (जदयू)
बिहारशरीफ (भाजपा)
हिलसा (राजद)
कौशलेंद्र कुमार-जदयू
सत्यानंद शर्मा-लोजपा
आशीष रंजन सिन्हा-कांग्रेस
संजय कुमार- बसपा
नालंदा से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद एक बार लोकसभा पहुंच चुके हैं। यहां से सिद्धेश्वर प्रसाद, विजय कुमार यादव एवं जॉर्ज फर्नाडीज तीन-तीन बार चुने जा चुके हैं। जदयू के वर्तमान सांसद कौशलेंद्र कुमार की दूसरी पारी है। इनके अलावा कैलाशपति सिन्हा, बीरेंद्र प्रसाद एवं रामस्वरूप प्रसाद पर भी नालंदा भरोसा जता चुका है। आजादी की लड़ाई में नालंदा की अहम भूमिका थी।