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सत्ता संग्राम: कटिहार में दांव पर तारिक अनवर की प्रतिष्ठा, यहां कांटे की टक्कर तय

राकांपा के बिहार में एकमात्र सांसद तारिक अनवर और भाजपा के निखिल चौधरी के बीच कटिहार का राजनीतिक भविष्य दशकों से घूम रहा है। अबकी दोनों पर उम्र हावी है।

By Kajal KumariEdited By: Published: Thu, 05 Jul 2018 01:33 PM (IST)Updated: Thu, 05 Jul 2018 10:30 PM (IST)
सत्ता संग्राम: कटिहार में दांव पर तारिक अनवर की प्रतिष्ठा, यहां कांटे की टक्कर तय
सत्ता संग्राम: कटिहार में दांव पर तारिक अनवर की प्रतिष्ठा, यहां कांटे की टक्कर तय

पटना [अरविंद शर्मा]। कोसी, गंगा और महानंदा नदियों से घिरा कटिहार संसदीय क्षेत्र का इतिहास कांटे के संघर्ष का है। यहां की सियासत के दो मुख्य पात्र हैं, जो हार-जीत का खेल पिछले 22 वर्षों से खेल रहे हैं। राकांपा के बिहार में एकमात्र सांसद तारिक अनवर और भाजपा के निखिल चौधरी के बीच कटिहार का राजनीतिक भविष्य दशकों से घूम रहा है। अबकी दोनों पर उम्र हावी है। फिर भी जोश और जुनून है। 

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दोनों गठबंधनों में कटिहार को लेकर सर्वाधिक मारामारी है। सबकुछ पटरी पर रहा तो तारिक फिर महागठबंधन के साझा उम्मीदवार बन सकते हैं। ऐसे में किसी भी पार्टी की राह आसान नहीं होगी। हालांकि कांग्रेस-राजद के कुछ नेता तारिक की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं।

कदवा के कांग्रेस विधायक शकील अहमद अपने बयानों से उन्हें परेशान कर रहे हैं। उनकी पैठ दिल्ली तक बताई जाती है, किंतु वर्तमान हालात में माना जा रहा है कि राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन होगा और कांग्र्रेस इस सीट को राकांपा की झोली में डालने पर सहमत होगी।

अब राजद की बात। माय समीकरण के दुरुस्त होने के बावजूद लालू प्रसाद की राजनीति यहां कभी कुछ खास नहीं कर पाई। एक बार 1991 में जनता दल के टिकट पर यूनुस सलीम लोकसभा पहुंचने में कामयाब जरूर हो गए, किंतु दोबारा नहीं दिखे।

पिछले चुनाव में जदयू के टिकट पर लड़कर एक लाख वोट लाने वाले रामप्रकाश महतो इस बार राजद के दरवाजे पर खड़े हैं। तेजस्वी यादव की कृपा भी प्राप्त कर ली है। राजद कोटे से राज्यसभा सदस्य बनने वाले अशफाक करीम की पसंद भी चल सकती है, किंतु ऐसा तभी संभव है जब यह सीट राजद को मिल जाए। 

2014 की नरेंद्र मोदी लहर में तारिक अनवर से हारने और बढ़ती उम्र के बावजूद निखिल चौधरी से पीछा छुड़ाना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। चौधरी ने यहां से तीन बार भाजपा को बढ़त दिलाई है। चौधरी की उम्र की ओट में भाजपा के चार दावेदार लॉटरी लगने के इंतजार में हैं। राज्य सरकार के मंत्री विनोद कुमार सिंह, एमएलसी अशोक अग्र्रवाल, सदर विधायक तारकिशोर प्रसाद और भाजपा जिलाध्यक्ष मनोज राय की लालसा प्रबल है।

अशोक की पहुंच दिल्ली तक बताई जाती है तो तार किशोर का दावा सदर से तीन बार विधायक रहने के आधार पर है। माय समीकरण में सेंध लगाने के नाम पर मनोज की दावेदारी है, किंतु निखिल की पहुंच सब पर भारी है। भाजपा से गठबंधन में कटिहार पर जदयू का दावा सबसे मजबूत है और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खास माने जाने वाले मेयर विजय सिंह दावेदारी में सबसे आगे हैं।

विजय जिस जाति से आते हैं, उसकी आबादी यहां निर्णायक है। विधानसभा चुनाव के दौरान जब मुकेश सहनी अति सक्रिय हो गए थे तो नीतीश ने विजय को चुनाव भी लड़ाया था, लेकिन करीबी अंतर से वह हार गए थे। जदयू के जिलाध्यक्ष संजीव श्रीवास्तव की बेताबी भी कम नहीं है। 

केशरी भी जीत चुके हैं कटिहार से 

जनसंघ के जमाने से भाजपा और आरएसएस का गढ़ माने जाने वाले कटिहार से 1967 में कांग्र्रेस के कद्दावर नेता सीताराम केशरी भी जीत चुके हैं। मुस्लिम बहुल इस क्षेत्र से कांग्र्रेस और राकांपा के टिकट पर तारिक अनवर पांच बार सांसद चुने गए हैं। तारिक 1980, 1984, 1996 और 1998 में कांग्र्रेस से निर्वाचित हुए, जबकि 2014 का चुनाव उन्होंने राकांपा के टिकट पर जीता।

इसी तरह निखिल चौधरी ने 1999, 2004 और 2009 का चुनाव लगातार जीता। दोनों के अलावा 1957 में अवधेश कुमार सिंह, 1962 में प्रिया गुप्ता, 1967 में सीताराम केशरी, 1971 में जीपी यादव, 1977 और 1989 में युवराज, 1991 में मो. यूनुस सलीम यहां से सांसद बन चुके हैं। 

2014 के महारथी और वोट

तारिक अनवर : राकांपा : 431292

निखिल चौधरी : भाजपा : 316552

राम प्रकाश महतो : जदयू : 100765

बालेश्वर मरांडी : झामुमो : 33593

विधानसभा क्षेत्र

 कटिहार (भाजपा), बलरामपुर (माले), मनिहारी (कांग्र्रेस), प्राणपुर (भाजपा), बरारी (राजद), कदवा (कांग्रेस)


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