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IGIMS : राजधानी के इस बड़े अस्‍पताल में पहुंचा छोटा भीम और डोरेमोन, बच्‍चे यहां जमकर करेंगे मस्‍ती

कोरोना की तीसरी लहर से लड़ने के लिए इंदिरा गांधी इंस्‍टीच्‍यूट आफ मेडिकल साइंस में विशेष तैयारी की जा रही है। यहां बच्‍चों के इलाज के लिए विशेष व्‍यवस्‍था की जा रही है। वार्ड को प्‍ले स्‍कूल का स्‍वरूप दिया गया है।

By Vyas ChandraEdited By: Published: Thu, 29 Jul 2021 09:55 AM (IST)Updated: Thu, 29 Jul 2021 09:55 AM (IST)
IGIMS : राजधानी के इस बड़े अस्‍पताल में पहुंचा छोटा भीम और डोरेमोन, बच्‍चे यहां जमकर करेंगे मस्‍ती
आइजीआइएमएस में तीसरी लहर से लड़ने की हो रही व्‍यवस्‍था। फाइल फोटो

पटना, जागरण संवाददाता। इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस (आइजीआइएमएस) के शिशु विभाग में भर्ती होने वाले बच्चों को उपचार के साथ-साथ मानसिक रूप से भी मजबूत बनाया जाएगा। माहौल ऐसा होगा कि उन्हें अस्पताल में होने का अहसास नहीं होगा। उन्हें लगेगा कि वे प्ले स्कूल में है। कोरोना संक्रमण के तीसरी लहर को देखते हुए शिशु विभाग में उनकी देख-देख के लिए एक विशेष वार्ड बनाया गया है।

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कमरों की  पेंटिंग भी मोहेगी बच्‍चों का मन 

यहां भर्ती होने वाले बच्चे को मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए छोटा भीम, मिकी माउस, डोरेमोन, गुफी आदि की व्यवस्था की गई है। वार्ड के कमरों में कार की सवारी साधन, रंग तथा अंकामला आदि की व्यवस्था की गई है। कमरों को मिथिला पेंटिंग व अन्य आकर्षक कलाकृतियां पेंटिंग कर बनाई गई है। सुंदरीकरण के बाद बुधवार को संस्थान के निदेशक डा. एनआर विश्वास, चिकित्सा अधीक्षक डा. मनीष मंडल एवं एक्शन एड एसोसिएशन के क्षेत्रीय प्रबंधक सौरव कुमार ने शुभारंभ किया। डा. मंडल ने बताया कि एक्शन एड ने चाइल्ड फ्रेंडली स्पेस वार्ड का पुर्ननिर्माण कर सहयोग दिया है। मौके पर शिशु मेडिसीन विभागाध्यक्ष डा. जयंत प्रकाश, डा. विनीत कुमार ठाकुर, डा. आनंद गुप्ता, एक्शन एड के पंकज श्वेताभ, मो. एकराम, यमुना तिवारी, डा. शरद कुमारी, रत्नेश कुमार आदि भी थे।

कोविड के तीसरी लहर की पूरी तैयारी

चिकित्सा अधीक्षक डा. मनीष मंडल ने बताया कि कोरोना संक्रमण के तीसरी लहर को देखते हुए शिशु वार्ड को विशेष रूप से तैयार किया गया है। शिशु विभाग में 20 आइसीयू एवं पांच एनआइसीयू की व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त 40 ऑक्सीजन बेड की सुविधा है। डा. मंडल ने कहा कि वार्ड को बच्चों को खुशनुमा माहौल देने को लेकर बनाया गया है। बीमारी की स्थिति में भी बच्चे सुकून से रहें और वह बीमारी से बेहतर तरीके से लड़ सके। उन्हें भय का माहौल नहीं मिलें।


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