बढ़ता जा रहा जल संकट: यही हाल रहा तो बिहार में बूंद-बूंद को तरसेंगे लोग
बिहार में बारिश के पानी को सहेजकर रखने की किसी तरह की व्यवस्था नहीं है। वहीं, खपत काफी अधिक है। यदि हाल रहा तो बिहार भी जल संकट वाले प्रदेशों में शामिल हो जायेगा।
पटना [भुवनेश्वर वात्स्यायन]। वह दिन दूर नहीं जब बिहार जल संकट वाले राज्यों में एक होगा। वैसे आंकड़े यह कहते हैं कि बिहार में वार्षिक 1100 एमएम बारिश होती है, लेकिन इसे सहेजकर उपयोग नहीं कर पाने की वजह से संकट गंभीर होता जा रहा। सरकार द्वारा तैयार कराए गए दस्तावेज में यह चिंता जताई गई है।
पानी की मांग
एक आकलन के अनुसार 2050 तक बिहार में पानी की मांग 145 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) रहेगी। 105 बीसीएम पानी कृषि कार्य के लिए जरूरी होगा, जबकि 40 बीसीएम गैर कृषि कार्य के लिए। इसकी तुलना में उपलब्धता मात्र 132 बीसीएम की रहेगी। मांग और उपलब्धता में इस अंतर से जाहिर है दिक्कत बढ़ेगी।
सतह के जल को रोककर रखने का संकट
बिहार में सतह के जल को रोककर रखने को लेकर भी जागरूकता और व्यवस्था नहीं है। बारिश के बाद सतह जल की उपलब्धता 132 बीसीएम है। इसे प्रभावकारी ढंग से रोककर जलाशय में रखने की व्यवस्था एक बीसीएम भी नहीं है। सरकार के दस्तावेज के अनुसार मात्र 0.96 बीसीएम पानी का स्टोरेज ही संभव हो पाता है।
प्रति व्यक्ति पानी उपलब्धता में भी कमी दर्ज हो रही
बिहार में वार्षिक रूप से प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता में भी कमी दर्ज हो रही है। यह वर्ष 2001 में यह 1594 क्यूबिक मीटर था, जो 2011 में घटकर 1273 क्यूबिक मीटर हो गया है। वर्ष 2025 में यह उपलब्धता 1006 क्यूबिक मीटर और 2050 तक 635 क्यूबिक मीटर प्रोजेक्ट किया गया है।
कुंडघाट और इंद्रपुरी जलाशय योजना से बढ़ेगी स्टोरेज क्षमता
जलाशयों में पानी को स्टोर कर रखने की वर्तमान में क्षमता 957 मिलियन क्यबिक मीटर (एमसीएम) की है। सरकार कुंडघाट जलाशय योजना पर काम कर रही है। इस प्रोजेक्ट से स्टोरेज क्षमता में 8.76 एमसीएम की बढ़ोतरी होगी। गाद का असर जलाशयों पर भी हुआ है। उनकी स्टोरेज क्षमता कम हुई है। इंद्रपुरी जलाशय की क्षमता बढ़ाने से भी बिहार को फायदा होगा।