Bihar Human Chain: पहल ठोस हो तो फिर कुछ यूं आगे आता है समाज, बिहार की कायल हुई दुनिया
पर्यावरण बचाने के मिशन में बिहार की अभूतपूर्व पहल की कायल हुई दुनिया। हर वर्ग के समर्थन से तमाम लोग हुए भौंचक। विपक्ष की दूरी पर उठे सवाल।
रविवार की सर्द सुबह और छुट्टी का दिन, बादल और कोहरे की बीच दुबका सूरज, वातावरण में सिरसिरी-सी ठंड, लेकिन आम जनजीवन में एक अजीब-सी उमंग। पौ फटते ही पूरे बिहार में सियासत की अबूझ परछाइयों से दूर नागरिक समाज एक अलग ही उत्साह और जल्दी में नजर आ रहा था। किसी को कोई बुलावा या न्योता नहीं, कहीं कोई वोट या चुनाव भी नहीं, लेकिन जाने और जानने की जल्दी सभी को थी। एक ऐसे मिशन से जुडऩे के लिए, जिसका तुरंत कोई नतीजा भी नहीं आना है और इसका सुखद परिणाम शायद हमारी भावी पीढ़ी को भोगना है।
बावजूद इसके, पांच करोड़ से ज्यादा लोग न सिर्फ स्वत:स्फूर्त घरों से बाहर निकले, बल्कि सड़क, मैदान, पानी और पहाड़ पर साथ आते गए, एक हाथ से दूसरे का हाथ जोड़ते रहे और 18 हजार किलोमीटर से ज्यादा लंबा एक कारवां बनता गया। दरअसल, यह बिहार की माटी से उठी एक समवेत पुकार है कि पानी और हरियाली ही एकमात्र रास्ता है, मानवता का मुक्तिपंथ है। इन्हें बचाना होगा, इन्हें सहेजना होगा, इन्हें संवारना ही होगा।
प्रदेश सरकार के जल, जीवन, हरियाली मिशन के इस पड़ाव की विहंगमता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश की 40 फीसद से ज्यादा आबादी इस अभूतपूर्व मानव श्रृंखला से जुड़ी। बूढ़े-बच्चे, नर-नारी, किसान-जवान, नेता-अभिनेता, शक्त-अशक्त, कामगार-बेरोजगार आखिर कौन था, जिसने हाथ से हाथ मिलाने में कोई गुरेज किया? छुट्टी के दिन आमतौर लोग थोड़े अलसाए और उनींदे-से रहते हैं। लेकिन कल का रविवार भी पर्यावरण के प्रति समाज की आश्चर्यजनक जागृति देखकर मानो गदगद हो गया।
लोग पर्यावरण की चिंता में डूबकर घरों से खुद बाहर निकले, पोस्टर-बैनर और तख्तियां थामे, नारे लगाते हुए और एक दूसरे को प्रेरित करते हुए। ऐसा भी नहीं कि सभी को कहीं एक स्थान पर किसी आयोजन में पहुंचना था या किसी को सुनना था। प्रदेश भर के तमाम जिलों में शहर, गांव, कस्बे, जहां जिसे सहूलियत थी, वहां पहुंचे और मानव शृंखला की एक-एक कड़ी बनते गए। मानव शृंखला के कीर्तिमान को देखकर तो एक बार के लिए ऐसा ही लगता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी शायद यह अंदाजा न हो कि पर्यावरण के प्रति उनकी चिंता में समाज इस तरह दिल खोलकर साथ देगा। इससे यह भी साबित हुआ कि पर्यावरण के प्रति मुख्यमंत्री की चिंता कितनी वास्तविक और ठोस धरातल पर खड़ी है।
राजनीति में आज की गलाकाट प्रतिस्पर्धा के बीच पर्यावरण जैसे सरोकार को लेकर समाज का एकजुट हो जाना, उसका जागना वाकई अभूतपूर्व है। पूरे प्रदेश में बनी मानव श्रृंखला के दौरान कई आश्चर्यजनक दृश्य देखने को मिले। मल्लाहों ने जमीन पाने का इंतजार नहीं किया और मानव श्रृंखला बनाने के लिए नदियों में ही अपनी नौकाओं को एक-दूसरे से जोड़ लिया।
कहीं अंत्येष्टि स्थल पर धघकती चिता को छोड़ लोग हाथ से हाथ जोड़कर खड़े हो गए तो कहीं गृहणियां चौका-चूल्हा छोड़ सड़कों पर निकल आईं और एक से दूसरे का हाथ जोड़ लिया। अवकाश के बावजूद लाखों स्कूली बच्चे इस मानव शृंखला की कडिय़ां बने, बुजुर्गों ने लाठी का सहारा लिया तो दिव्यांग व्हील चेयर पर आए। गवैयों ने गा-बजाकर जल का आचमन किया तो किन्नरों ने अपनी पारंपरिक वेशभूषा में हरियाली का हार पहना।
कहने का मतलब यह कि पूरे प्रदेश ने जल-जीवन-हरियाली मिशन को एक तरह से अब अपनी गोद में ले लिया है। समाज की ऐसी चेतना बताती है कि यदि पहल ठोस और नेक इरादे से हो तो समाज आगे बढ़कर सियासत से उसकी कमान अपने हाथों में ले लेता है। आज पटना के गांधी मैदान में आयोजित मुख्य कार्यक्रम के दौरान जलपुरुष राजेंद्र सिंह ने पर्यावरण को लेकर ऐतिहासिक पहल के लिए बिहार को भाग्यशाली बताया। साथ ही धन्यवाद दिया कि बिहार ने पूरे देश और दुनिया को एक बड़ा संदेश दिया है।
इसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अपील का असर मानें या फिर धरती की आर्त पुकार; कल की मानव शृंखला में समाज एकजुट हुआ, आपस में करोड़ों हाथ मिले और विश्व कीर्तिमान बना। यहां न कोई राजनीति थी, न कोई चुनाव या फिर सरकार बनाने-गिराने का उपक्रम। एक विशुद्ध सामाजिक और पर्यावरणीय पहल है जल-जीवन- हरियाली मिशन। लेकिन यह क्या...! कल जब बिहार दुनिया में कीर्तिमान गढ़ रहा था, तब विपक्ष मुंह फुलाकर दूर बैठा रहा। सवाल है कि क्या विपक्ष पानी और हरियाली के खिलाफ है? दरअसल, विकासशील देशों के लोकतंत्र की सबसे बड़ी समस्या यही है कि जब सरकार कुछ अच्छा भी करे तो उसका विरोध करना विपक्ष अपना राजनीतिक धर्म मान बैठता है।
- मनोज झा, लेखक दैनिक जागरण (बिहार) के स्थानीय संपादक हैं।