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लौटने वाले प्रवासी अगर टिक गए तो किस्‍मत चमक जाएगी बिहार की, हर व्‍यक्ति की बढ़ जाएगी इनकम

बिहार में काफी संख्‍या में प्रवासी कामगार लौट रहे हैं। यदि प्रवासी यहां टिक गए तो बेशक बिहार की किस्‍मत चमक जाएगी। अर्थशास्‍त्री भी मानते हैं कि हर व्‍यक्ति की बढ़ जाएगी इनकम।

By Rajesh ThakurEdited By: Published: Mon, 11 May 2020 05:36 PM (IST)Updated: Mon, 11 May 2020 08:44 PM (IST)
लौटने वाले प्रवासी अगर टिक गए तो किस्‍मत चमक जाएगी बिहार की, हर व्‍यक्ति की बढ़ जाएगी इनकम
लौटने वाले प्रवासी अगर टिक गए तो किस्‍मत चमक जाएगी बिहार की, हर व्‍यक्ति की बढ़ जाएगी इनकम

पटना [अरुण अशेष]। प्रवासी श्रमिकों के आगमन को लेकर राजनीतिक दल उलझे हुए हैं। उनकी प्रतिक्रियाएं सकारात्मक कम, नकारात्मक अधिक हैं। इधर, राज्य की अर्थ व्यवस्था और खास कर खेती के संकट पर नजर रखने वाले लोग इनमें अपार संभावनाओं को देख रहे हैं। शर्त यह है कि ये टिक जाएं। केंद्र-राज्य सरकारों की ओर से दिए गए संसाधनों का सदुपयोग हो। राज्य का कायाकल्प हो सकता है। अर्थशास्त्री भी मानते हैं कि बिहार की किस्‍मत चमक जाएगी और हर व्‍यक्ति की इनकम बढ़ जाएगीा  

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बिहार का बड़ा संकट यह है कि जमीन के बड़े हिस्से में सभी फसल नहीं हो पाती है। आंकड़ों में देखें तो महज 1.45 फसल की पैदावार हो पाती है। यानी तीन फसल के बदले डेढ़ से भी कम फसल हम उगा पाते हैं। ठेठ में समझें तो साल में तीन के बदले हम डेढ़ से भी कम खेती करते हैं। यह हालत छोटे जोतदारोंं के दूसरे राज्यों में मजदूरी करने के लिए चले जाने के चलते पैदा होती है। 

अनुमान है इस बार टिेकेंगे

यही तबका इन दिनों घर लौट रहा है। अनुमान है कि ये घर पर टिकेंगे। अपनी खेती करेंगे। दूसरों के खेतों में काम करके उत्पादन बढ़ाएंगे। एक जमीन में तीन नहीं, दो-ढाई फसल भी हुई तो राज्य की कृषि व्यवस्था में उछाल आ सकता है। राज्य के नवीनतम आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक  इस समय कृषि से प्रति व्यक्ति आय सात हजार रुपये वार्षिक है। उत्पादन बढ़ेगा, उसी अनुपात में प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होगी। डेढ़ से दोगुनी तक बढ़ सकती है। यह सिर्फ फसल का हिसाब है। कृषि से जुड़े और भी कई कारोबार हैं। 

छोटे जोतदार हैं अधिक 

राज्य में बड़े जोतदार कम हैं। 97 फीसदी रैयत सीमांत या छोटे किसान हैं। इनके पास दो हेक्टेयर से कम जमीन है। असल प्रभाव इन्हीं जोतदारों के कृषि उत्पादन पर पडऩा है। अभी जमीन के 94 फीसदी हिस्से में सिर्फ खाद्यान्न का उत्पादन हो रहा है। श्रमिकों की उपलब्धता से नकदी फसलों की पैदावार बढ़ सकती है। हां, इसके लिए कोल्ड स्टोरेज और प्रसंस्करण केंद्र बनाना होगा। सप्लाई चेन दुरुस्त करना होगा। यह भी मुश्किल नहीं है। कृषि क्षेत्र को दिए जाने वाले कर्ज-अनुदान के लीकेज और दुरुपयोग को रोक देने से ही काम बन जाएगा। 

अभी झटका, बाद में राहत

अर्थशास्‍त्री अमित बक्‍शी कहते हैं कि श्रमिकों के आने से तत्काल झटका लग सकता है, क्योंकि परिवार चलाने में इनकी कमाई का बड़ा योगदान होता है। फिलहाल, इनकी आय का यह साधन बंद हो जाएगा, लेकिन लंबे समय में इस श्रमशक्ति से राज्य को बड़ा लाभ मिल सकता है। अच्छी बात यह है कि राज्य सरकार इन्हें स्थानीय स्तर पर रोजगार दिलाने के लिए गंभीर प्रयास कर रही है। ये श्रमिक कृषि के अलावा उत्पादन के अन्य क्षेत्रों में भी बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। 

अमित बक्शी, अर्थशास्त्री 

-कृषि के अलावा अन्य क्षेत्रों में है इनका योगदान

-अभी तीन के बदले डेढ़ फसल भी नहीं उगा पाते हैं

-वरदान साबित हो सकते हैं प्रवासी श्रमिक


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