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हाईकोर्ट का आदेश- मानव श्रृंखला में जबर्दस्ती बच्चों को शामिल नहीं कर सकते

बिहार में बनाई जाने वाली मानव श्रृंखला के खिलाफ दायर याचिका पर पटना हाइकोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा है कि इस आयोजन में अभिभावकों की अनुमति के बिना बच्चे भाग नहीं लेंगे।

By Kajal KumariEdited By: Published: Tue, 16 Jan 2018 08:55 AM (IST)Updated: Wed, 17 Jan 2018 11:13 PM (IST)
हाईकोर्ट का आदेश- मानव श्रृंखला में जबर्दस्ती बच्चों को शामिल नहीं कर सकते
हाईकोर्ट का आदेश- मानव श्रृंखला में जबर्दस्ती बच्चों को शामिल नहीं कर सकते

पटना [राज्य ब्यूरो]। पटना हाइकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि दहेज प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ बनने वाली मानव श्रृंखला में अभिभावकों की अनुमति के बिना बच्चे भाग नहीं लेंगे और इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया है कि इस मामले में राज्य सरकार कार्रवाई नहीं कर सकेगी ।

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पटना हाइकोर्ट के सीजे राजेंद्र मेनन ने आज एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया कि मानव श्रृंखला में भाग नहीं लेने वाले बच्चों पर राज्य सरकार कोई कार्रवाई नहीं करेगी। इस मामले में 4 सप्ताह बाद फिर सुनवाई होगी। 

बता दें कि इसके आयोजन की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को पटना हाईकोर्ट ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया था और इसपर आज सुनवाई हुई।  याचिका नागरिक अधिकार मंच की ओर से अधिवक्ता रीतिका रानी ने हाईकोर्ट में दायर की है।

मानव श्रृंखला के औचित्य पर खड़े किए गए सवाल 

याचिकाकर्ता का कहना है कि 11 जनवरी को शिक्षा विभाग के डिप्टी सेक्रेटरी ने दहेज उन्मूलन एवं बाल विवाह के विरोध में बननेवाले मानव श्रृंखला में पहली से पांचवीं कक्षा तक के छात्रों को छोड़कर शिक्षक एवं छात्र-छात्राओं को इस आयोजन में शामिल होने के निर्देश दिए। 21 जनवरी के इस आयोजन में बच्चों को लाने एवं उन्हें घर पहुंचाने की जिम्मेदारी शिक्षकों की होगी। इस कार्य के लिए शिक्षकों को वजीफा दिया जाएगा। 

याचिकाकर्ता ने पूछा है कि इस कड़ाके की सर्दीे में बच्चों को घर से निकलने के लिए कैसे बाध्य किया जा सकता है। छात्र-छात्राओं को को नये सत्र के लिए किताबें नहीं दी गई है। इन्हें गर्म कपड़े भी नहीं दिये गये हैं। शिक्षकों से पठन पाठन के अलावा अन्य कार्य लिया जाना भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ है।

याचिकाकर्ता ने अदालत से कहा है कि बाल विवाह अधिनियम 1973 और दहेज उन्मूलन एक्ट 1961 का है। इसमें नया क्या है? इसे राजनीतिक लाभ के लिए नाहक नयी बात बनायी जा रही है। पिछले साल भी  शराबबंदी कानून के समर्थन में मानव श्रृंखला का आयोजन किया गया था। यह सब राजनीति के सिवा कुछ भी नहीं है जिसमें हाईकोर्ट को हस्तक्षेप करना चाहिए।


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