यहां रियल लाइफ में दिख रहा 'जंगल बुक' का नजारा, याद आई 'हाथी मेरे साथी'
पटना के संजय गांधी जैविक उद्यान में इन दिनों माहौल, मिजाज और मोहब्बत का कमाल देखने को मिल रहा है। नजरे-आलम नामक बच्चे से नजर मिलते ही तीन वर्षीय जंगली हाथी लक्ष्मी दौड़ पड़ती है। इंसान और जानवर की मोहब्बत ने हाथी मेरे साथी फिल्म की यादें ताजा कर दीं।
पटना [मृत्युंजय मानी]। जरूरी नहीं कि 'जंगल बुक' के पन्ने सिने पर्दे पर ही खुलें। सिनेमाघरों में जितनी भीड़ इस फिल्म को देखने के लिए उमड़ रही है, उससे कहीं अधिक दिलचस्प नजारा पटना जू में दिख रहा है।
माहौल, मिजाज और मोहब्बत का कमाल ही है कि पांव में गहरा जख्म है, लेकिन नजरे-आलम (एक बच्चा) नजर मिलते ही लक्ष्मी (तीन वर्षीय जंगली हाथी) दौड़ पड़ता है। इंसान और जानवर की इस मोहब्बत ने बीते दिनों की हिट फिल्म 'हाथी मेरे साथी' की यादें ताजा कर दी हैं।
फिल्म सरीखी है 'लक्ष्मी' की कहानी
ओडिशा के जंगल में जन्म लेने वाला 'लक्ष्मी' भोजन की तलाश में झारखंड होते हुए बिहार आ गया। झुंड में कुल 16 हाथी थे। गया और औरंगाबाद में हाथियों ने खूब उत्पात मचाया। आक्रोश में किसी ने 'लक्ष्मी' के पैर में गोली मार दी। बाद में हाथियों के उस झुंड को झारखंड की ओर खदेड़ दिया गया, लेकिन 'लक्ष्मी' बिछुड़ गया। उसे गया से बेहोश कर पटना चिडिय़ाघर लाया गया। जख्म भरने के बाद उसे चंपारण में बनने वाले हाथी रेस्क्यू सेंटर में रखने की योजना है।
कमाल तो नजरे-आलम का
'लक्ष्मी' को तकलीफ कम नहीं। एक तो अपने झुंड से बिछडऩे का गम और दूसरा, पांव में गोली लगने से बना जख्म। आसपास किसी बेगाने को देख वह झुंझला उठता है। मुख्य वन्य प्राणी प्रतिपालक एसएस चौधरी बताते हैं कि इस नन्हें हाथी को संभालना कठिन हो रहा था। नेपाल के जनकपुर से शोबराती मियां को बुलाना पड़ा। शोबराती अपने साथ नौ वर्षीय पोते नजरे-आलम को भी ले आए हैं। उसके बाद का कमाल नजरे-आलम का है।
उसके स्पर्श से खिल उठता नन्हा हाथी
'लक्ष्मी' के जख्मों को धोने, मरहम लगाने, नहलाने-धुलाने और भोजन कराने तक की जिम्मेदारी नजरे-आलम ने बखूबी संभाल ली है। अपने दादा के साथ वह 'लक्ष्मी' का प्राकृतिक उपचार भी कर रहा है। उसके हाथों का स्पर्श होते ही नन्हा हाथी खिल उठता है। दोनों साथ खेलते हैं। नजरे-आलम के 'लक्ष्मीÓ कहने की देर होती है और वह लपक कर आता है।
जिंदगी भर दोस्ती निभाते हाथी
शोबराती कहते हैं कि हम नजरे-आलम को महावत बनाने में कामयाब रहे। अब वह किसी भी जंगली हाथी को नियंत्रित कर सकता है। बस थोड़ा बड़ा होने का इंतजार है। नजरे-आलम के पिता और दो भाई भी महावत हैं और सभी जंगली हाथी को नियंत्रित कर लेते हैं। बकौल शोबराती, असोम के जंगलों में पूरा जीवन हाथियों के पीछे बिता दिया है। हाथी का दिमाग आदमी से तेज होता है। हाथी ने एक बार दोस्ती कर ली तो ताजिंदगी साथ निभाता है।
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"इंसान की तुलना में हाथी ज्यादा समझदार होता है। 20 वर्षों के बाद भी वह स्थान व साथी को पहचान लेता है। इंसान धोखा दे देगा, लेकिन हाथी नहीं। वह अटूट दोस्ती करता है।"
- अख्तर इमाम (अध्यक्ष, एरावत वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट)