लॉकडाउन में 'बेरोजगार' हो गईं कामगार मधुमक्खियां, बिहार में शहद कारोबार हो गया 'खट्टा'
लॉकडाउन ने बिहार में शहद कारोबार को भी खट्टा कर दिया है। आना-जाना बंद होने से सिर्फ प्रवासी कामगार ही बेरोजगार नहीं हुए हैं बल्कि श्रमिक मधुमक्खियों का काम भी छिन गया है।
पटना, अरविंद शर्मा। लॉकडाउन ने बिहार में शहद कारोबार को भी खट्टा कर दिया है। आना-जाना बंद होने से सिर्फ प्रवासी कामगार ही बेरोजगार नहीं हुए हैं, बल्कि श्रमिक मधुमक्खियों का 'काम' भी छिन गया है। शहद उत्पादन में बिहार का स्थान देश में चौथा है और करीब 50 हजार से ज्यादा किसान इस व्यवसाय से जुड़े हैं। प्रतिवर्ष एक लाख मीट्रिक टन से ज्यादा का उत्पादन होता है। बिहार का शहद विदेशों तक जाता है। कृषि विभाग का आकलन है कि इस बार उत्पादन में 50 फीसद तक गिरावट आ सकती है।
दो तरह की होती हैं मधुमक्खियां
शहद उत्पादन पर लॉकडाउन के असर को समझने के पहले मधु बनाने वाली श्रमिक मक्खियों की मेहनत को समझना जरूरी है। दो तरह की मधुमक्खियां होती हैं। एक रानी और दूसरी श्रमिक। रानी मधुमक्खी का आकार श्रमिक से लगभग दोगुना होता है। रानी मधुमक्खी बक्से में रहती है जबकि श्रमिक मधुमक्खियां लीची-आम, फूल, मक्का, महुआ से फ्लेवर बटोरने निकलती हैं।
श्रमिक मधुमक्खियों को नहीं मिला काम
बिहार में शहद उत्पादन के लिए अनुकूल माहौल फरवरी से मई के बीच होता है। बसंत ऋतु में फूल खिलने के बाद किसान बिहार, झारखंड एवं पश्चिम बंगाल के विभिन्न बागानों और खेतों में मधुमक्खियों वाले बक्से लगाने जाते हैं, जो लीची के मौसम आने तक जारी रहता है। आमतौर पर मार्च महीने के पहले हफ्ते में मधुमक्खियों के बक्से लीची बागानों में रखे जाते हैं। समय-समय पर बक्सों का स्थान बदलना जरूरी होता है, क्योंकि एक बागान से भोजन समाप्त होने पर मधुमक्खियां मरने लगती हैं। सरसों, फूल, मक्का के खेतों के अलावा महुआ और आम के बागानों में भी बक्से रखे जाते हैं। धूप और गर्मी का भी ध्यान रखना पड़ता है। इस बार लॉकडाउन की वजह से मार्च के अंतिम हफ्ते से अब तक बिहार के किसान अलग-अलग बागानों-खेतों में बक्से लेकर नहीं जा पाए।
भोजन के अभाव में मर रहीं मधुमक्खियां
इससे किसानों को दोहरा घाटा हुआ। बक्सों का मूवमेंट बंद हुआ तो मधुमक्खियों के सामने भोजन का संकट आ गया, जिससे बड़ी संख्या में मौत भी होने लगी हैं। शहद का उत्पादन घट गया। बक्सों से 10-12 की जगह चार-पांच किलो ही शहद निकल रहा। बागानों में परागण भी घट गया। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान संस्थान के विशेषज्ञ भी सलाह देते हैं कि लीची के बागान में मधुमक्खियों के दस बक्से कम से कम रखें। इससे लीची का उत्पादन बढ़ता है। इस बार ऐसा नहीं हो पाया है। इससे फल कम लगने की शिकायतें आ रही हैं। लीची के फ्लेवर वाले मधु की विदेशों में काफी मांग है। पालकों को करोड़ों का घाटा लगा है।
क्षति की भरपाई होगी
कृषि विभाग को नुकसान का अहसास है। आकलन कराया जा रहा है। अन्य फसलों की तरह मधुमक्खी पालक किसानों को भी क्षति की भरपाई की जाएगी।
- डॉ. प्रेम कुमार, कृषि मंत्री
शहद कारोबार पर कोरोना का असर
- बिहार : 20 हजार मीट्रिक टन
- मधुमक्खी पालक : 50 हजार
- बक्सों की संख्या : 05 लाख
- अनुमानित क्षति : 50 फीसद
शहद उत्पादन के फायदे
- मधुमक्खियां शहद भी देती हैं और उनके परागण में सहयोग फल-फसल एवं सब्जी का उत्पादन भी बढ़ता है।
- शहद के सेवन से इम्युनिटी पावर बढ़ती है। कई रोगों में दवा की तरह काम आता है।
- मधुमक्खी पालन कम समय, कम लागत और कम पूंजी में ज्यादा कमाई का जरिया है।