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सत्त्ता संग्राम: पूर्वी चंपारण में आमने-सामने की लड़ाई का इतिहास, यहां दोनों गठबंधन बेचैन

कुछ ही समय बाद लोकसभा चुनाव है। ऐसे में बिहार का पूर्वी चंपारण सीट दोनों गठबंधनों में चर्चा का विषय बना हुआ है। यहां आमने-सामने की लड़ाई का इतिहास रहा है।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Thu, 28 Jun 2018 04:07 PM (IST)Updated: Thu, 28 Jun 2018 07:50 PM (IST)
सत्त्ता संग्राम: पूर्वी चंपारण में आमने-सामने की लड़ाई का इतिहास, यहां दोनों गठबंधन बेचैन
सत्त्ता संग्राम: पूर्वी चंपारण में आमने-सामने की लड़ाई का इतिहास, यहां दोनों गठबंधन बेचैन

पटना [अरविंद शर्मा]। बिहार के दोनों गठबंधनों में चंपारण की चर्चा आम है। चर्चा तो तब भी बहुत हुई थी, जब महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन के डेढ़ सौ साल पूरे होने पर कार्यक्रम किए जा रहे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दौरे हुए थे। किंतु तब की चर्चा चंपारण को चैन देने वाली थी। अबकी बेचैन करने वाली है।

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बेचैनी इसलिए कि यहां आमने-सामने की लड़ाई का इतिहास रहा है। भाजपा के टिकट पर यहां से पांच बार लोकसभा पहुंचने और केंद्रीय कृषि मंत्री बनने वाले राधामोहन सिंह की राह रोकने की कवायद में महागठबंधन ने मोहरे सजाने शुरू कर दिए हैं। जोड़-तोड़ की राजनीति उफान पर है।

भाजपा के लिए सुकून की खबर यह हो सकती है कि तकरीबन तीन साल पहले बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान राजद-जदयू और कांग्रेस के महागठबंधन की आंधी में भी पूर्वी चंपारण संसदीय सीट के छह विधानसभा क्षेत्रों में से चार पर राजग ने कब्जा जमाया। तीन पर भाजपा और एक पर लोजपा। राजद को सिर्फ हरसिद्धि और केसरिया पर ही जीत नसीब हो सकी थी।

मोतिहारी, गोविंदगंज, पिपरा और कल्याणपुर की सीटें राजग की झोली में गई थी। दूसरी खबर भाजपा को थोड़ा परेशान कर सकती है कि केसरिया के पूर्व विधायक बब्लू देव ने राजद में वापसी कर ली है। राजधानी में चर्चा है कि अगले चुनाव में उन्हें राधामोहन के सामने खड़ा किया जा सकता है।

भाजपा के लिए पांच बार सीट जीतने वाले राधामोहन को हराने और हारने वाले कांग्रेस के अखिलेश प्रसाद सिंह का कद फिर बड़ा होने लगा है। राज्यसभा सदस्य बनने के बाद पूर्वी चंपारण संसदीय सीट पर उनकी भी नजर गहरी है। इन सबके बीच राधामोहन के लिए बड़ी राहत हो सकती है कि 2014 के संसदीय चुनाव में भाजपा के खिलाफ लड़कर 1.28 लाख वोट लाने वाले अवनीश कुमार सिंह की पार्टी जदयू इस बार राजग के साथ है।

पांच-पांच बार राधामोहन-विभूति

2008 में हुए परिसीमन के बाद चंपारण के सभी तीनों लोकसभा क्षेत्रों के नाम, पहचान और भूगोल बदल गए हैं। सबसे अधिक चर्चित पूर्वी चंपारण का प्रतिनिधित्व केंद्रीय मंत्री राधामोहन सिंह करते हैं। पहले इसे मोतिहारी संसदीय सीट के नाम से जाना जाता था, जहां विभूति मिश्रा और राधामोहन सिंह सर्वाधिक बार जीत चुके हैं। दोनों नेताओं ने पांच-पांच पारी पूरी की है।

राधामोहन 1989, 1996, 1999, 2009 तथा 2014 में भाजपा के टिकट पर सांसद बन चुके हैं। विभूति पर भी यहां के मतदाता लगातार 1952, 1957, 1962, 1967 और 1971 में विश्वास जता चुके हैं। राधामोहन और विभूति के अलावा यहां से ठाकुर रामपत्ति सिंह, कमला मिश्र मधुकर, प्रभावति गुप्ता, रमा देवी और अखिलेश प्रसाद सिंह भी जीत चुके हैं। राधामोहन की यह पांचवीं पारी है। सीपीआई का झंडा भी यहां दो बार बुलंद हो चुका है। कमला मिश्र मधुकर ने सीपीआई के टिकट पर 1980 और 1991 में जीत दर्ज कर चुके हैं। पिछली दो बार से लगातार राधामोहन का कब्जा है।

मोतिहारी का सियासी अतीत

मोतिहारी शहर की स्थापना मिथिला के राजा हरिसिंह देव की दूसरी पत्नी के पुत्र मोती सिंह ने 14वीं सदी में की थी। उन्हीं के नाम पर शहर का नाम मोतिहारी पड़ा। मोती ने 15 वर्षों तक शासन किया था। उनके पुत्र शक्ति सिंह ने 25 वर्षों तक राज किया। हालांकि मोतिहारी का वर्तमान स्वरूप अंग्रेजी शासन की देन है।

चंपारण सत्याग्रह ने मोतिहारी की नई पहचान और आजादी की लड़ाई को नई दिशा दी। आजादी के पहले विधानसभा चुनाव में पूर्वी चंपारण सदर से गोरख प्रसाद जीते थे। उत्तर चंपारण से सैयद महमूद और दक्षिण चंपारण से अख्तरूल गाजिब जीते थे। तब इसे चंपारण ईस्ट संसदीय क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। बाद में यह मोतिहारी क्षेत्र के नाम से जाना जाने लगा। पहले संसदीय चुनाव में सैयद महमूद चुनाव जीते थे।


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