प्रेमचंद की रचनाओं में आम जनता और भारतीय समाज का हृदय
मंत्रिमंडल राजभाषा विभाग उर्दू निदेशालय की ओर से रविवार को बिहार राज्य अभिलेखागार में हुआ आयोजन
पटना। मंत्रिमंडल राजभाषा विभाग उर्दू निदेशालय की ओर से रविवार को बिहार राज्य अभिलेखागार भवन में मुंशी प्रेमचंद और फिराक गोरखपुरी स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया गया। निदेशालय एवं राजभाषा विभाग के निदेशक इम्तियाज अहमद करीमी ने विभूतियों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके साहित्यिक उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। दिल्ली विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. अतीकुल्लाह ने कहा कि भूख एक ऐसी चीज है जो गहरे रिश्तों को भी खत्म कर देती है और जीवन में कई प्रकार की अड़चनों को भी पैदा करती है। पटना विश्वविद्यालय के प्रो. बलराम तिवारी ने कहा कि प्रेमचंद एक महान साहित्यकार थे, जिन्होंने 100 साल पहले की स्थिति एवं परिस्थितियों पर ऐसी मजबूत पकड़ बनाई और गहराई से उन हालात का आकलन भी किया जो आज भी प्रासंगिक हैं। मुंशी प्रेमचंद ने जो कुछ भी समाज और राजनीति में देखा और समझा उसे अपनी कहानियों का हिस्सा बनाया। वो कहानियां आज के समाज और राजनीति में साफ नजर आ रहा है। वर्तमान में रहकर प्रेमचंद ने भविष्य का बहुत सुंदर चित्रण किया था ये उनकी महानता रही। निदेशालय के विशेष सचिव और मुख्य अतिथि रहे डॉ. उपेंद्रनाथ पांडेय ने कहा कि प्रेमचंद उर्दू और हिदी के बड़े साहित्यकार थे। प्रेमचंद का साहित्य आम जनता की और भारतीय समाज का हृदय है। जिसमें आम हिदुस्तानी की समस्या चलती-फिरती नजर आती है। सत्र की अध्यक्षता प्रो. अब्दुस्समद ने की, वही दूसरे सत्र में फिराक गोरखपुरी का रहा। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के प्रो. मौला बख्श ने व्याख्यान के दौरान गोरखुपरी के साहित्य और शायरी पर प्रकाश डाला। उनकी रचनाओं में 'यूं माना जिंदगी है चार दिन की, बहुत होते है यारों चार दिन भी' पेश क सभी का दिल जीता। सत्र की अध्यक्षता प्रो. एजाज अली अरशद ने किया। मंच का संचालन मोहम्मद असलम जावेदा ने किया। धन्यवाद ज्ञापन इम्तियाज अहमद करीमी ने किया।