हरियाली तीज : भगवान शिव को पाने के लिए माता पार्वती ने किया था व्रत
हरियाली और सावन और हरियाली तीज की धूम, सोलह श्रृंगार कर सजी-संवरी महिलाएं और कुंआरी लड़कियां भगवान शिव की विशेष कृपा पाने के लिए हरियाली तीज करती हैं। आज सबने व्रत रखा है।
पटना [वेब डेस्क]। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को श्रावणी तीज कहते हैं। जनमानस में यह हरियाली तीज के नाम से जानी जाती है।। इस समय जब प्रकृति चारों तरफ हरियाली की चादर सी बिछा देती है तो प्रकृति की इस छटा को देखकर मन पुलकित होकर नाच उठता है।
सावन के आते ही चारों ओर मनमोहक वातावरण की सुंदर छ्ठा फैल जाती है। श्रावण माह के शुक्ल पक्ष में तृतिया तिथि को महिलाएं हरियाली तीज के रुप में मनाती हैं इस समय वर्षा ऋतु की बौछारें प्रकृति को पूर्ण रूप से भिगो देती हैं। प्रकृति में हर तरफ हरियाली की चादर सी बिछी होती है और इसी कारण से इस त्यौहार को हरियाली तीज कहा जाता है।
कुमारी और सौभाग्यवती स्त्रियां भगवान शिव की कृपा और खुशहाल वैवाहिक जीवन के लिए हरितालिका तीज का व्रत करती हैं। हरितालिका तीज व्रत श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र के दिन किया जाता है। इस दिन कुमारी और सौभाग्यवती स्त्रियाँ गौरी-शंकर की पूजा करती हैं।
हरितालिका तीज विशेषकर उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बिहार में मनाया जाने वाला त्योहार है। इस व्रत में पूरे दिन निर्जल व्रत किया जाता है और अगले दिन पूजन के पश्चात ही व्रत पूरा होता है। इस व्रत से जुड़ी एक मान्यता यह है कि इस व्रत को करने वाली स्त्रियां पार्वती जी के समान ही सुखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती हैं।
सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने और अविवाहित युवतियां मन मुताबिक वर पाने के लिए हरितालिका तीज का व्रत करती हैं। सर्वप्रथम इस व्रत को माता पार्वती ने भगवान शिव शंकर के लिए किया था।
हरियाली तीज के दिन सुहागन स्त्रियां हरे रंग का ऋृंगार करती हैं। इसके पीछे धार्मिक कारण के साथ ही वैज्ञानिक कारण भी शामिल है। मेंहदी सुहाग का प्रतीक चिन्ह माना जाता है। इसलिए महिलाएं सुहाग पर्व में मेंहदी जरूर लगाती है।
इसकी शीतल तासीर प्रेम और उमंग को संतुलन प्रदान करने का भी काम करती है। ऐसा माना जाता है कि सावन में काम की भावना बढ़ जाती है। मेंहदी इस भावना को नियंत्रित करता है। हरियाली तीज का नियम है कि क्रोध को मन में नहीं आने दें। मेंहदी का औषधीय गुण इसमें महिलाओं की मदद करता है।
तीज के बारे में कथा है कि सावन में कई सौ सालों बाद शिव से पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था। पार्वती के 108वें जन्म में शिवजी उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न हुए और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था।