गुरु वही जो गोविंद की राह पर चलने को करे प्रेरित : देवकीनंदन ठाकुर
आजकल गुरुजी अपने आपको ही मंदिरों में सजवाने में मस्त हैं।
पटना। आजकल गुरुजी अपने आपको ही मंदिरों में सजवाने में मस्त हैं। गुरु का मतलब ये नहीं है जो अपने आपको ही मंदिर में सजा दे। गुरु का मतलब जो गोविंद से मिला दे। वही श्रेष्ठ गुरु है जो गोविंद की राह पर चलने के लिए हमें प्रेरित करे। आज के दौर में सच्चे गुरुओं की कमी हो गई है। ऐसे गुरुओं की तलाश आपको स्वयं करनी होगी। जाने-माने भागवत कथा वाचक देवकीनंदन ठाकुर ने गर्दनीबाग में आयोजित समारोह के दौरान भक्तों को सही गुरु की पहचान का तरीका बताया।
गुरु के प्रति सम्मान का भाव जरूरी
उन्होंने कहा कि अनादि काल से गुरु और शिष्यों की परंपरा रही है। राजा-महाराजाओं के पुत्रों ने भी गुरुकुल में जाकर गुरुओं के समीप शिक्षा ग्रहण की। स्वयं भगवान श्रीराम और बांके बिहारी ने भी गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त की। गुरुओं के प्रति जो शिष्यों का आदर-सम्मान था वह आज खत्म हो गया।
अपनी कथा के नायक और लेखक हम खुद
महाराज ने कथा के दौरान कहा कि ईश्वर ने हमें अच्छे कर्म करने के बाद मनुष्य योनि में जन्म दिया है। जिसके नायक भी हम हैं और लेखक भी हैं। जगत में जीव अपने नाना प्रकार के कर्म करता है। उसे उसके कर्म के अनुसार ही फल मिलता है। ऐसे में सभी को सत्कर्म करने की जरूरत है, जिससे जीव जगदीश के समीप पहुंच सके।
ईश्वर से मांगो आत्मकल्याण का वरदान
महाराज ने कहा कि बहुत से लोग मंदिरों और कथाओं में मन ही मन भगवान से बहुत कुछ मांगते हैं। अगर भगवान से मांगना ही है तो आत्म कल्याण का वरदान मांगो। कभी-कभी भगवान से भगवान को भी मांग लेना चाहिए। ऐसा करने से मन में बहुत आनंद आता है। कथा के दौरान आचार्य देवकीनंदन ने श्रीमद् भागवत की कथा की महत्ता के साथ मृत्यु की सच्चाई से अवगत कराया।
ऐसा कर्म करो जिससे दोबारा जन्म ना लेना पड़े -
कथा के दौरान देवकीनंदन ठाकुर ने कहा कि भगवान मानव को जन्म देने से पहले कहते हैं कि ऐसा कर्म करो, जिससे फिर दुबारा जन्म ना लेना पड़े। मानव मुठ्ठी बंद करके यह संकल्प दोहराते हुए पृथ्वी पर जन्म लेता है। प्रभु भागवत कथा के माध्यम से यह संकल्प दिलाते रहते हैं। भागवत कथा सुनने वालों का भगवान हमेशा कल्याण करते हैं। भागवत कहता है जो भगवान को प्रिय लगे वही कार्य करो। हमेशा उनसे मिलने का उद्देश्य बना लो। संसार में जन्म-मरण से मुक्ति भगवान की कथा दिला सकती है। भगवान की कथा विचार, वैराग्य, ज्ञान और हरि से मिलने का मार्ग बता देती है। राजा परीक्षित के कारण ही भागवत कथा पृथ्वी के लोगों को सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। समाज द्वारा बनाए गए नियम गलत हो सकते हैं लेकिन भगवान के बनाए गए नियम गलत नहीं हो सकते।
भजन-कीर्तन में आनंदित होते रहे श्रद्धालु
प्रेम से बोलो राधे-राधे। हाथ ऊपर करके भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए बोलो 'श्रीकृष्ण हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेवा..'। हजारों की संख्या में श्रद्धालु श्रीमद्भागवत कथा का रसपान करते हुए आनंदित हो रहे थे। व्यासपीठ पर बैठे आचार्य पंडित देवकीनंदन ठाकुर श्रीमद्भागवत कथा और भक्ति गीतों के जरिए श्रद्धालुओं को आनंद प्रदान करने में लगे थे। कथा पंडाल में डटे श्रद्धालुओं में कोई भगवान के नाम का स्मरण कर नृत्य कर रहा था तो कोई ताली बजा कर आनंदित हो रहा था। विश्व शांति सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट एवं विश्व शांति सेवा समिति, पटना के तत्वावधान में पंडित देवकीनंदन ठाकुर के सानिध्य में गर्दनीबाग के संजय गांधी स्टेडियम, पटना में कथा सुनने वाले श्रद्धालुओं की खूब भीड़ दिखी। 26 नवंबर तक चलने वाली कथा के तीसरे दिन की शुरुआत विश्व शांति के लिए प्रार्थना से हुई। कथा आरंभ के पहले महाराज देवकीनंदन ने कथा पंडाल में बैठे भक्तों को 'मेरे दिल की है एक आवाज दास हूं राधे का..' गीत सुनाकर आनंदित किया। कथा के दौरान कथा वाचक ने कहा कि
कथा में आज -
भगवान राम एवं श्रीकृष्ण जन्मोत्सव का वर्णन।