भूकंप का दर्द- गुमसुम हो गए नन्हे-मुन्ने
भूकंप के झटकों का सर्वाधिक असर नन्हे-मुन्नों पर पड़ा है। वे दहशत में हैं। तरह-तरह के सवाल उन्हें परेशान कर रहे हैं। ये क्या हो रहा है, पृथ्वी पलट तो नहीं जाएगी? पठन-पाठन बंद है।
वीरगंज, नेपाल [संजय कुमार उपाध्याय]। भूकंप के झटकों का सर्वाधिक असर नन्हे-मुन्नों पर पड़ा है। वे दहशत में हैं। तरह-तरह के सवाल उन्हें परेशान कर रहे हैं। ये क्या हो रहा है, पृथ्वी पलट तो नहीं जाएगी? पठन-पाठन बंद है।
स्कूल के साथियों से भी नहीं हो रही है बात। आखिर किससे शेयर करें। इधर, माता-पिता का उन्हें मौन देखकर बुरा हाल है। लाडला डरा हो तो नींद कैसे आए। आखिर, भविष्य का सवाल है। गणेश, प्रीति आदि बच्चों ने कहा कि उनका बड़ा-सा घर है, लेकिन उसके आसपास के मकान गिर चुके हैं। झटका आने पर लगता है कि उनका घर भी गिर जाएगा। ऐसे में माता-पिता ने चिकित्सकों की सलाह पर एक रास्ता निकाला, उन्हें खेल की तरफ मोडऩे का।
राजधानी काठमांडू के बलखू स्थित विष्णुमति नदी के किनारे हर दिन फलों की मंडी लगती थी। वर्तमान में खाली पड़ी इस जगह का वे इसके लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। गणेश के पिता शंभू प्रसाद कहते हैं कि वे दूर से ही निगरानी रख रहे हैं।
काठमांडू वैली के भक्तपुर में अधिकतर लोग अब भी शामियाने में रह रहे हैं। श्री पद्म उच्च-माध्यमिक विद्यालय सह पदमा कॉलेज भक्तपुर के पास तने टेंट व तबाह घर के मलबों से बच्चों को दूर रखने की कोशिश की जा रही है। यहां तीन साल की पूजा विद्यालय में बने झूले पर बैठी रहती है। धाधिंग में बच्चे पहाडिय़ों के नीचे खेलते हैंं। वीर थापा, सुनील श्रेष्ठ आदि बच्चों ने कहा कि माता-पिता ही उन्हें यहां छोड़ते और ले जाते हैं।
भक्तपुर के रामप्रसाद संघमित्रा, गंगा राम शिल्पकार, कुलेश्वरस्थान के राजीव थापा आदि ने कहा कि बच्चों को गुमसुम देखकर उन्हें चिंता हुई। चिकित्सकों ने स्कूल खुलने तक सभी बच्चों को एक साथ खेलने का मौका देने को कहा। इसका फायदा भी दिख रहा है। बच्चे धीरे-धीरे खुलने लगे हैं।