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खुलासा: बिहार में चिंताजनक हुआ भूजल स्‍तर, कई जिलाें में तीन मीटर तक आई गिरावट

बिहार के कई जिलों में भूजल स्तर की हालत चिंताजनक हो गई है। आइआइटी कानपुर तथा काठमांडू स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटिग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट के शोध में यह खुलासा हुआ है।

By Amit AlokEdited By: Published: Fri, 13 Jul 2018 01:06 PM (IST)Updated: Fri, 13 Jul 2018 10:19 PM (IST)
खुलासा: बिहार में चिंताजनक हुआ भूजल स्‍तर, कई जिलाें में तीन मीटर तक आई गिरावट
खुलासा: बिहार में चिंताजनक हुआ भूजल स्‍तर, कई जिलाें में तीन मीटर तक आई गिरावट

नई दिल्ली [आइएसडब्ल्यू]। एक और अध्ययन में यह बात साबित हुई है कि बिहार के कई जिलों में भूजल स्तर की स्थिति पिछले 30 वर्षो में चिंताजनक हो गई है। जर्नल करंट साइंस में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक कुछ जिलों में भूजल स्तर दो से तीन मीटर तक गिर गया है। भूजल में इस गिरावट का मुख्य कारण झाड़ीदार वनस्पति क्षेत्रों एवं जल निकाय क्षेत्रों का तेजी से सिमटना बताया गया है। साथ ही कहा गया है कि आबादी में बढ़ोतरी और कृषि क्षेत्र में विस्तार के कारण भी भूजल की मांग बढ़ी है।

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कानपुर स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) और काठमांडू स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटिग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट के शोधकर्ताओं द्वारा उत्तरी बिहार के 16 जिलों में किए गए इस अध्ययन के अनुसार, जल निकाय सिमटने के कारण प्राकृतिक रूप से होने वाला भूजल रिचार्ज भी कम हुआ है।

शोधकर्ताओं के अनुसार, बेगूसराय, भागलपुर, समस्तीपुर, कटिहार और पूर्णिया जैसे जिलों के भूजल स्तर में दो से लेकर तीन मीटर की गिरावट दर्ज की गई है। भूजल में गिरावट से समस्तीपुर, बेगूसराय और खगड़िया सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। इन जिलों के भूजल भंडार में 30 वषों के दौरान क्रमश: 57.7 करोड़ घन मीटर, 39.5 करोड़ घन मीटर और 38.5 करोड़ घन मीटर गिरावट दर्ज की गई है। मानसून से पहले और उसके बाद के महीनों में भूजल भंडार के मामले में इसी तरह का चलन समस्तीपुर, कटिहार और पूर्णिया जिलों में भी देखने को मिला है।

इस अध्ययन में भूजल भंडार, भूमि उपयोग एवं भू-आवरण संबंधी तीस वषों के आंकड़े (1983-2013) उपयोग किए गए हैं। भूजल संबंधी आंकड़े केंद्रीय भूमि जल बोर्ड और राज्य भूमि जल बोर्ड से लिए गए हैं। वहीं, भूमि उपयोग और भू-आवरण संबंधी आंकड़े हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर से प्राप्त किए गए हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि इस दौरान एक ओर कृषि क्षेत्र के दायरे में 928 वर्ग किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई है तो दूसरी ओर जल निकायों का क्षेत्र 2029 वर्ग किलोमीटर से सिमटकर 1539 वर्ग किलोमीटर रह गया है। इसी के साथ झाड़ीदार वनस्पतियों के क्षेत्रफल में भी इस दौरान 435 वर्ग किलोमीटर की गिरावट दर्ज की गई है।

आइआइटी, कानपुर के पृथ्वी विज्ञान विभाग से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता डॉ. राजीव सिन्हा ने बताया कि यह अध्ययन महत्वपूर्ण है क्योंकि उत्तरी बिहार को दूसरी हरित क्रांति के संभावित क्षेत्र के रूप में देखा जा रहा है। इस तरह की कोई भी पहल करते वक्त भूजल के टिकाऊ प्रबंधन से जुड़ी योजनाओं को ध्यान में रखना होगा ताकि भविष्य में गंभीर जल संकट से बचा जा सके।

डॉ. सिन्हा के मुताबिक, ‘हरित क्रांति के कारण पंजाब जैसे राज्यों में भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन को बढ़ावा मिला है और यह क्षेत्र अब दुनिया के सर्वाधिक भूजल दोहन वाले इलाकों में शुमार किया जाता है। कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए अत्यधिक जोर देने और भूजल प्रबंधन के लिए चिंता नहीं होने के कारण वहां ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है। बिहार के उत्तरी क्षेत्र में भूजल तेजी से गिर रहा है और भविष्य में बदलती सामाजिक-आर्थिक स्थितियों के साथ जल के दोहन को बढ़ावा मिलने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है।’ अध्ययन में शामिल लगभग सभी जिलों में वर्ष 1990 से 2010 के बीच ट्यूबवेल से सिंचाई में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।


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