नाती-पोते देसी पर दादी-नानी विदेशी, पटना के 39 परिवारों के बुजुर्गों में अपनों से जुदा होने का भय
फुलवारी शरीफ इलाके में रहने वाले 39 परिवारों के बुजुर्गो में अपनों से अलग होने का भय है। ये सब हो रहा है भारतीय नागरिकता लेने के लिए लंबी-चौड़ी प्रक्रिया के कारण। जानें क्यों-
सैयद नकी इमाम, पटना। राजधानी के फुलवारी शरीफ इलाके में रहने वाले 39 परिवारों के बुजुर्गो में अपनों से अलग होने का भय है। भारतीय नागरिकता लेने के लिए लंबी-चौड़ी प्रक्रिया ने इनका सुख-चैन छीन रखा है। ये ईश्वर से मिन्नतें कर रहे हैं कि जल्द उन्हें भारतीय नागरिकता मिल जाए ताकि जीवन के अंतिम पड़ाव में उन्हें अपनों से जुदा न होना पड़े।
हर साल वीजा विस्तार की मजबूरी
भारतीय नागरिकता के लिए प्रयासरत इन लोगों का कहना है कि आखिर इस आयु में वे कहां चले जाएं, जबकि कुनबे के सभी लोग यहीं हैं? कहते हैं कि हम लोग अपने नाती-पोता, बेटी-बहू और बेटे के साथ रहना चाहते हैं। ये सवाल करते हैं कि हमारा कुनबा देसी है तो हम विदेशी क्यों कहे जा रहे हैं? फुलवारी शरीफ की रेहाना (काल्पनिक नाम) की उम्र 57 साल हो गई है। 21 साल की आयु में नसीम इन्हें बांग्लादेश से ब्याह कर हिन्दुस्तान लाए थे। तबसे यह वे यहीं रह रही हैं, परिवार में दो बेटे और एक बेटी है। सबकी शादी हो गई और वे बाल-बच्चे वाले हैं। मगर, रेहाना को प्रत्येक साल अपने वीजा का विस्तार कराना पड़ता है। विवाह के बाद नागरिकता के लिए जो आवेदन इन्होंने दिया था, वह आज तक ऑफिस-ऑफिस घूम रहा है।
नए कानून से जगी उम्मीद
रेहाना ही नहीं सुब्बी अकरम, नाजनीन सुल्ताना और अदीब जाहिद समेत 39 लोग हैं जिन्होंने पाकिस्तान और बांग्लादेश में विवाह किया और यहां आकर बस गए। आवेदन देने के लंबे समय बाद भी इनको नागरिकता नहीं मिली। सभी प्रति वर्ष वीजा विस्तार के लिए समय से पहले आवेदन करना नहीं भूलते ताकि कोई चूक अपनों से जुदा ना कर दे। पति को पत्नी की जुदाई तो दादी को पोते-पोती से तथा नानी को नाती से जुदाई की चिंता सताती रहती है। वैसे केंद्र सरकार ने हाल में जो नागरिकता संशोधन कानून लागू किया है उससे इन परिवारों को भारतीय नागरिकता आसानी से मिलने का रास्ता दिख रहा है।