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मिशन 2019: मांझी को ले मुश्किल में महागठबंधन, सीट शेयरिंग में फंसा सम्‍मान का पेंच

बिहार में लोकसभा चुनाव को ले महागठबंधन में सीट शेयरिंग आसान नहीं है। जीतनराम मांझी के रूख से तो इसका संकेत अभी से मिलने लगा है। जानिए मामला।

By Amit AlokEdited By: Published: Fri, 28 Dec 2018 10:20 AM (IST)Updated: Fri, 28 Dec 2018 08:22 PM (IST)
मिशन 2019: मांझी को ले मुश्किल में महागठबंधन, सीट शेयरिंग में फंसा सम्‍मान का पेंच
मिशन 2019: मांझी को ले मुश्किल में महागठबंधन, सीट शेयरिंग में फंसा सम्‍मान का पेंच

पटना [राज्य ब्यूरो]। अभी महागठबंधन के घटक दल ढंग से बैठे भी नहीं हैं कि हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) सुप्रीमो व पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी समां बांधने लगे हैं। महागठबंधन के सीट शेयरिंग फॉर्मूला में उनके सम्‍मान का पेंच फंसता दिख रहा है। इसके लिए उन्‍होंने दबाव की राजनीति शुरू कर दी है।

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मांझी ने शुरू की प्रेशर पॉलिटिक्‍स

जीतनराम मांझी ने राज्य के दो गठबंधनों महागठबंधन व राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के बारे में बताया-एक नागराज, दूसरा-सांपराज। उनकी पार्टी के नेता वृशिण पटेल ने कहा कि सम्मानजक सीटें मिलेंगी, तभी चुनाव लडेंग़े। हालांकि अगले ही दिन मांझी ने नरम रुख अख्यितार किया और कहा कि महागठबंधन में ही रहेंगे, रोटी बांटकर खाएंगे। मांझी व उनकी पार्टी के नेताओं के ऐसे बदलते बयान अधिक सीटों के लिए प्रेशर पॉलिटिक्‍स के रूप में देखे जा रहे हैं।

राजद का किसी विवाद से इनकार

हालांकि, राष्‍ट्रीय जनता दल (राजद) के मुख्य प्रवक्ता भाई वीरेंद्र कहते हैं कि महागठबंधन में सब ठीक है। मांझी जी शीर्ष नेतृत्व के अंग हैं। एक बार सब नेता बैठेंगे तो सीट शेयरिंग का सम्मानजनक फार्मूला तैयार हो जाएगा। विवाद की दूर-दूर तक गुंजाइश नहीं है।

सम्मान की खोज में भटक रहे इस डाल से उस डाल

मांझी खुद सम्मान की खोज में तब महागठबंधन में शामिल जनता दल यूनाइटेड (जदयू) से राजग में गए। लेकिन करवट बदलती सियासत का खेल यह हुआ कि जदयू महागठबंधन से नाता तोड़ राजग में आ गया।

वहां सम्मान में कमी महसूस हुई तो मांझी फिर महागठबंधन में आ गए।

राजद ने उनके पुत्र को विधान परिषद में भेज दिया। सम्मान का अहसास हुआ। अब लोकसभा चुनाव में तीन-चार सीट मिल जाएं तो सम्मान बढ़ा हुआ लगेगा। इससे कम मिले तो पार्टी में ही अकेलेपन का अहसास होगा।

मांझी की सीट पक्‍की, पर अन्‍य को ले संदेह

महागठबंधन में बिना सांसद वाले दलों के लिए एक-एक सीट का प्रावधान हो रहा है। हम के साथ वाम दल भी इसी श्रेणी में हैं। जबकि, मांझी को कम से कम तीन सीटें चाहिए। अपनी सीट पक्की है। गया और जमुई में से कोई भी सीट पसंद कर लें, मिल जाएगी। दो सीटें महाचंद्र प्रसाद सिंह और वृशिण पटेल के लिए चाहिए। इन दोनों की सीट पर संदेह है।

रालोसपा और मुकेश सहनी के आने से सीटों की किल्लत

रालोसपा और मुकेश सहनी के आने से सीटों की किल्लत हो गई है। इनके आने से पहले महाचंद्र सिंह का नाम मुंगेर के लिए चल रहा था। बदली परिस्थिति में यह सीट रालोसपा के खाते में जा सकती है। उनकी नजर महाराजगंज पर भी है। राजद में यह सीट पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह के कोटे की है। सजायाफ्ता होने के कारण वह खुद नहीं लड़ सकते हैं। फिर भी उनकी राय से ही महाराजगंज का उम्मीदवार तय होगा।

पटेल के लिए सबसे मुफीद वैशाली सीट मानी जाती है। राजद रघुवंश प्रसाद सिंह को छोड़ कर किसी और को वैशाली से उम्मीदवार बनाएगा, उसके बारे में सोचा भी नहीं जा सकता है।

पटेल 1991 में सीवान से सांसद थे। उसके बाद वह सीट अपवाद को छोड़कर राजद के पास ही रही है। इसबार भी वहां राजद का उम्मीदवार रहेगा। सो, हम के लिए सीवान का दरवाजा भी बंद ही है।

...तो यह हैमांझी की बेचैनी की जड़

दो महत्वपूर्ण सहयोगियों के लिए जगह की गुंजाइश न बनना ही मांझी की बेचैनी की जड़ में है। राजद और महागठबंधन राहत इस बात से है कि मांझी के लिए राजग का दरवाजा बंद हो चुका है।


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