बिहार में किसानों को क्रेडिट कार्ड बांट रही सरकार, पर कर्ज नहीं दे रहे बैंक
बिहार में सरकार किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड बांटने के लिए प्रखंड स्तर तक कैंप लगाकर कार्ड दे रही है। लेकिन बैंक किसानों को क्रेडिट कार्ड पर लोन मुहैया नहीं करा रहे हैं।
पटना [अरविंद शर्मा]। राज्य में किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) बांटने के लिए प्रखंड स्तर पर कैंप लगाए जा रहे हैं, जहां उन्हें सिर्फ कार्ड मिल रहे हैं, कर्ज नहीं। केसीसी लोन में लगातार कमी आ रही है। पिछले साल इसमें करीब ढाई हजार करोड़ की गिरावट आई है। ऐसे में किसानों की कैसे बढ़ेगी आय? यह चिंता राज्य सरकार को भी है।
तभी तो स्टेट लेबल बैंकर्स कमेटी की मीटिंग में डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने बैंकों के रवैये के प्रति नाराजगी जाहिर की है।
राज्य में करीब डेढ़ करोड़ किसान परिवार हैं। इनमें से 65 लाख के पास किसान क्रेडिट कार्ड हैं। किंतु बैंक से सबको लोन नहीं मिल रहे।
चालू वित्तीय वर्ष में 10 लाख किसानों को केसीसी लोन देने का लक्ष्य तय किया गया है, किंतु अभी तक सिर्फ एक लाख 11 हजार किसानों को ही लोन मिल सका है। इससे किसानों की बेचारगी स्पष्ट होती है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के बदले बिहार में मुख्यमंत्री फसल सहायता योजना लागू होने के बाद तो बैंकों ने आरबीआई की गाइड लाइन का हवाला देकर किसानों से किनारा ही कर लिया है।
इसका ताजा उदाहरण पटना जिले के पालीगंज प्रखंड में पिछले महीने उस समय देखने को मिला जब कृषि विभाग ने ऋण वितरण के लिए कैंप का आयोजन किया। सरकार के प्रयास के बावजूद समारोह में किसी भी बैंक ने हिस्सा नहीं लिया। बैंकों का तर्क है कि केसीसी लोन के लिए फसलों का बीमा जरूरी है। नई योजना में बीमा नहीं, फसल सहायता है। फिर किसानों से लोन की राशि कैसे वसूल होगी।
बैंकों के हाथ खड़े कर देने से खेती पर असर लाजिमी है। बड़े-बड़े लोग बैंकों से अरबों कर्ज लेकर भाग रहे हैं। सजा छोटे किसानों को मिल रही है। यह हाल तब है, जब बैंकों के बकाये में 70 फीसद हिस्सा कॉरपोरेट का है। कृषि की हिस्सेदारी महज एक फीसद है। फिर भी केसीसी लोन देने में आनाकानी कृषि सेक्टर के लिए खतरे की घंटी है।
गैर रैयत का हाल सबसे बुरा
बैंक डिफॉल्टर (बैड लोन) का सबसे ज्यादा असर छोटे और भूमिहीन किसानों पर पड़ता है। केसीसी के लिए गैर रैयत किसानों से भी आवेदन मांगा जा रहा है, जबकि सच्चाई है कि बैंक वाले उन्हें लोन नहीं दे रहे।
सरकार के आंकड़े बताते हैं कि कृषि सेक्टर के कुल कर्जे में छोटे किसानों का हिस्सा 25 फीसद है। शेष 75 फीसद कर्ज कृषि से जुड़े उद्योगों के खाते में चला जाता है। कागजों के चक्कर और बिचौलियों से परेशान छोटे किसान तो बैंकों से ज्यादा साहूकारों से कर्ज लेना आसान समझने लगे हैं।
केसीसी का किसे फायदा
केसीसी का फंडा है कि किसान बैंकों से कर्ज लेकर खेती करें और पैदावार बेचकर समय पर चुका दें। ऐसे में उन्हें सात की जगह तीन फीसद ब्याज देना पड़ता है। समय पर लोन नहीं चुकाने वाले किसानों के खाते से बैंक प्रीमियम काट लेते हैं। ब्याज भी सात फीसद के हिसाब से मूलधन में जोड़ते जाते हैं।
तीन साल तक लेन-देन नहीं हुआ तो एनपीए में चला जाता है। प्रदेश में अभी 8 लाख 32 हजार किसान डिफाल्टर हैं। उनके पास बैंकों के 4898 करोड़ रुपये फंसे हैं। करीब 39 लाख ऐसे किसान हैं, जिनके पास 23 हजार 689 करोड़ रुपये बकाया है।
केस स्टडी-1
पालीगंज के राजू सिंह ने पांच साल पहले एक लाख केसीसी लोन लिया था। समय से चुका देते तो उन्हें सात फीसद की जगह तीन फीसद ब्याज देना पड़ता, लेकिन प्रीमियम और किस्त चुकाने भर उपज नहीं हुई। लिहाजा ब्याज बढ़ता गया। तीन साल बाद डिफॉल्टर हो गए। इसलिए सात के बदले 12 फीसद की दर से ब्याज बढ़ रहा। राशि बढ़कर ढाई लाख से ज्यादा हो गई। एक लाख तो दे नहीं पाए, अब ढाई लाख कैसे देंगे?
केस स्टडी-2
केसीसी के लिए जहां प्रखंड स्तर पर कैंप लगाया जा रहा है, वहीं बैंकों का वसूली अभियान भी समानांतर चल रहा है। रफीगंज के शिवपूजन शर्मा ने केसीसी लोन लिया था। फसल मारी गई तो डिफॉल्टर हो गए। बैंक वाले वसूली के लिए दबाव दे रहे हैं। प्रलोभन भी। कहा जा रहा है कि कुल कर्ज का 40 फीसद चुका दें तो शेष राशि माफ कर दी जाएगी। उनके पास तो इतनी राशि भी नहीं है। कैसे होंगे कर्जमुक्त। यही चिंता है।
फैक्ट फाइल
-किसान क्रेडिट कार्ड : 65 लाख
-लोन मिला : 38,97,204
-बकाया राशि : 23,689
-डिफाल्टर किसान : 8,27,425
-डिफाल्टर राशि : 4898
राशि करोड़ में
केसीसी लोन की स्थिति
2015-16 : 25,505
2016-17 : 24,458
2017-18 : 21,900
2018-19 : 835 (अभी तक)
(नोट : रुपये करोड़ में)
-किसानों के लिए अशुभ साबित हो रहा चालू वित्तीय वर्ष
-छोटे किसानों से बैंकों को है वसूली में व्यवधान का डर