शिल्प महाविद्यालय में कूचियों के महारथी देश की स्वर्णिम तस्वीरें
बिहार और झारखंड के इकलौते कॉलेज में शुमार कला शिल्प महाविद्यालय सिर्फ शिक्षा का केंद्र रहा बल्कि कई प्रतिभा भी यहीं से निकलीं।
बिहार और झारखंड के इकलौते कॉलेज में शुमार कला शिल्प महाविद्यालय सिर्फ शिक्षा का केंद्र नहीं बल्कि शिल्प कला की विविध कलाकृतियों के संग्रह के लिए विख्यात है। महाविद्यालय में छात्र-छात्राओं द्वारा बनाई गई कला के विविध स्वरूपों का संग्रह होने के साथ कई दुर्लभ पेंटिंग धरोहर के रूप में सुरक्षित है। यहां आजादी के पहले जर्मन पेंटर लैंग हैमर की बनाई हुई कलाकृति, मुंबई का धोबी घाट, बंगाल के कलाकार अतुल बोस के उकेरे गए चित्र के अलावा कई ऐतिहासिक पेंटिंग महाविद्यालय की गरिमा में चार-चाद लगा रही है। महाविद्यालय में रखी पेंटिंग व इसके स्वर्णिम इतिहास पर प्रकाश डालती प्रभात रंजन की रिपोर्ट।
सूबे का एक मात्र कला एवं शिल्प महाविद्यालय का गौरव प्राप्त करने वाला पटना कला शिल्प महाविद्यालय का स्वर्णिम इतिहास रहा है। कला प्रशिक्षण के सबसे बड़े केंद्र के रूप में विद्यापति मार्ग पर स्थित कॉलेज ने देश में विख्यात होने वाले कई नामचीन कलाकारों को देकर बिहार का मान बढ़ाया। महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो. श्याम शर्मा बताते हैं, कला और शिल्प कॉलेज को प्रदेश में स्थापित करने का श्रेय राधामोहन को जाता है। उन्होंने ही पहले 25 जनवरी 1939 को वसंत पंचमी के दिन गोविंद मित्रा रोड में शिल्प कला कॉलेज की नींव में रखी थी।
बनारस से आकर मुंशी ने किया पटना कलम का प्रचार
प्रो. शर्मा बताते हैं कि पटना कलम के प्रसिद्ध चित्रकार मुंशी महादेव लाल बनारस से पटना रोजी-रोटी के लिए आए थे। मुंशी बाद में पटना के होकर रह गए। पटना सिटी में उन्होंने अपना ठिकाना बनाया और पटना कलम चित्र शैली का प्रचार-प्रसार करने लगे। जिस जगह पर मुंशी महादेव रहते थे ठीक उसके बगल में राधा-मोहन का भी आवास था। ऐसे में दोनों के बीच दोस्ती हुई। जिसके बाद राधा-मोहन को मुंशी महादेव ने पटना कलम शैली के चित्र बनाने सिखाए। जिसके बाद मुंशी ने कला के विकास के लिए राधामोहन से बात की। राधामोहन मुंशी महादेव को अपना गुरु मान लिया और उनकी इच्छा पूरी करने के लिए 1939 को वसंत पंचमी के दिन गोविंद मित्रा रोड में कला विद्यालय की नींव रखी।
नगर निगम में एक रुपये किराया दे चलता था विद्यालय
विद्यालय खोलने के बाद मोहन ने अपने भाजे एवं दो चार लड़कों के साथ इसकी शुरुआत की। धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढऩे लगी तो राधामोहन ने अशोक राजपथ स्थित खुदा बख्श लाइब्रेरी के पास पटना नगर निगम के भवन में एक रुपये महीने किराया देकर कुछ समय तक विद्यालय चलाया। बच्चों की संख्या बढऩे लगी तो शहर के जाने-माने वकील नागेश्वर प्रसाद ने कॉलेज खोलने के लिए राधामोहन को 500 रुपये की राशि की। आर्थिक सहयोग एवं ट्रस्ट के माध्यम से कुछ समय तक विद्यालय चलता रहा। फिर सरकार के शिक्षा विभाग से स्वीकृति मिलने के बाद बंदरबगीचा के एक किराए के मकान में विद्यालय चलने लगा। कुछ समय बाद पटना आइसीएस जीएस माथुर की प्रेरणा से विद्यापति मार्ग पर जमीन मिली। बिहार सरकार ने वर्ष 1949 में अपने नियंत्रण में लिया और स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट के नाम पर डिप्लोमा कोर्स आरंभ कर दिया। वहीं वर्ष 1957 के दौरान महाविद्यालय को विद्यापति मार्ग में स्थानातरित कर दिया गया।
जीएस माथुर ने कराया कॉलेज के हॉस्टल निर्माण
12 अप्रैल 1977 को सरकारी कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट में बदलने के साथ पटना विवि के अधीन हो गया। आइसीएस जीएस माथुर ने कॉलेज के लिए नये भवन और छात्रों के रहने के लिए हॉस्टल का निर्माण कराया। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद कॉलेज प्रबंधन समिति के पहले सदस्य के रूप में अपनी भूमिका निभाई। कला दीर्घा की हुई थी स्थापना शहर में कला का व्यापक प्रचार-प्रसार हो जिसके लिए कॉलेज संस्थापक राधामोहन के कार्यकाल में शिल्पी कला संघ, शिल्प कला परिषद एवं कल दीर्घा की नींव पड़ी थी। प्रोफेसर व कलाविद् श्याम शर्मा की मानें तो बिहार कला दीर्घा की स्थापना के लिए पटना जीपीओ के पीछे जमीन मिली थी। जहा पर राजेंद्र प्रसाद की प्रतिमा भी लगाई गई थी, लेकिन कुछ समय बाद वहा से कॉलेज परिसर में स्थापित किया गया।
पटना कलम सहित दुर्लभ पेंटिंग का संग्रह
प्रोफेसर श्याम शर्मा की मानें, तो कुछ समय तक कला दीर्घा में 500 से अधिक ऊपर चित्र, पेंटिंग, मूर्ति जिसमें बंगाल, पटना कलम चित्र शैली, मुगल राजपूत चित्र शैली आदि की दुर्लभ कलकृतियों की प्रदर्शनी काफी समय तक लगी रही। जिसे बाद में बंद कर दिया गया। कई दुर्लभ कलाकृतियों में पिकासो से लेकर दुनिया के कई श्रेष्ठ और नामचीन कलाकारों के वर्क थे। जिसमें कुछ कलाकृति आज गैलरी में हैं। परिसर में कई दुर्लभ पेंटिंग कॉलेज परिसर के प्राचार्य कार्यालय में देश की आजादी के पहले कई कलाकारों द्वारा बनाई गई पेंटिंग की अद्भुत कलाकृति मौजूद है। जिसमें जर्मन पेंटर लैंग हैमर की पेंटिंग आज भी मौजूद है।
परिसर में देखें मुंबई का धोबी घाट
बंगाल के नामी कलाकार अतुल बोस जिनकी छवि एक आदिवासी व्यक्ति के रूप में है वह परिसर में सुरक्षित है। ब्रिटिश कमिश्नर विलियम टेलर की दुर्लभ पेंटिंग कॉलेज में मौजूद है। इसके अलावा आर्ट कॉलेज के संस्थापक राधामोहन प्रसाद की दुर्लभ पेंटिंग के साथ आजादी के पहले बने मुंबई के धोबी-घाट को पेंटिंग को भी परिसर में उकेरा गया है। साथ ही साथ परिसर में मा सरस्वती की पुरानी पेंटिंग भी मौजूद है। इसके अलावा पटना कलम की कुछ तस्वीरें भी कॉलेज परिसर की दीवार पर बनाई गई है। इसके अलावा कोलकाता के प्रसिद्ध चित्रकार विनोद बिहारी मुखर्जी द्वारा बनाई गई पेंटिंग कॉलेज प्रवेश द्वार के दीवार पर आज भी सुरक्षित है।
पहले प्राचार्य बने राधा मोहन
कॉलेज में प्राचार्य के पद पर विभिन्न लोगों ने अपनी सेवा देकर कला शिल्प महाविद्यालय की गरीमा को बरकरार रखा। जिसमें राधा मोहन, अनीता दास, पीएसएन सिन्हा, एसएम राज, वारिश हादी, श्याम शर्मा, फूलारा सिन्हा, अनुनन्या चौबे, सादरे आलम, डीएन शर्मा, डॉ. इए अरशद, डॉ. कृतेश्वर प्रसाद, अरुण कुमार, शकर दत्त, अतुल आदित्य पाडेय आदि ने अपनी भूमिका अदा की।
नामचीन कलाकारों ने बढ़ाया मान
कॉलेज के पूर्ववर्ती छात्र रहे मनोज कुमार बच्चन ने कहा कि आर्ट कॉलेज का काफी योगदान रहा। वर्ष 1980 के बाद कलाकार बिहार से बाहर निकलकर देश के अलग-अलग राज्यों में होने वाली कला प्रदर्शनी में भाग लेकर कॉलेज का नाम बढ़ाने के साथ अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया। कला शिल्प महाविद्यालय ने देश के लिए कई ऐसे कलाकार दिए जो आज भी देश के विभिन्न हिस्सों में अपनी प्रतिभा का डंका बजाने में लगे हैं। उन कलाकारों में सुबोध, संजीव, नरेंद्र पॉल, लंबा संजय, सच्चिदानंद झा, दिनेश राम, मनोज पंडित, त्रिभुवन आदि के नाम प्रमुख हैं। इसके अलावा संस्थान में कई कलाविद् व प्रोफेसर केएस कुलकर्णी, जे ठाकुर, श्रीधर महापात्रा, एमएफ हुसैन, मंजीत बाबा आदि गणमान्य लोगों ने आकर परिसर की शोभा बढ़ाई। बयान
पटना शिल्प कला महाविद्यालय का स्वर्णिम इतिहास रहा है। जहा न केवल छात्र-छात्राओं को कला के विविध स्वरूपों से रूबरू कराया जाता है बल्कि कला की समझ छात्रों को दी जाती है। कॉलेज के संस्थापक राधामोहन प्रसाद ने काफी संघर्ष कर महाविद्यालय को खड़ा करने में अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया। कॉलेज के कला दीर्घा में कई दुर्लभ पेंटिंग में कुछ बची है जिसे सुरक्षित रखने पर ध्यान सरकार और कॉलेज प्रशासन को देना होगा।
प्रो. श्याम शर्मा, पूर्व प्राचार्य, कला शिल्प महाविद्यालय एवं वरिष्ठ कलाकार
कॉलेज की पहचान बना रहे जिसके लिए कॉलेज प्रशासन की ओर से हर संभव प्रयास किया जा रहा है। दुर्लभ पेंटिंग को सुरक्षित रखने के साथ-साथ कला का व्यापक प्रचार-प्रसार हो जिसके लिए काम किया जा रहा है। परिसर में मौजूद जो ऐतिहासिक धरोहर है इन्हें संभाल कर रखा गया है। जिससे आने वाले पीढिय़ों को इससे ज्ञान अर्जन कर सके।
डॉ. अजय कुमार पाडेय, प्राचार्य कॉलेज ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट