Nirbhaya Case: गोडसे से निर्भया के कातिलों तक सभी फांसियों का बिहार कनेक्शन, यहीं के फंदे ने दी मौत
Nirbhaya Case भारत में अभी तक जितनी भी फांसियां हुई हैं उनका एक खास बिहार कनेक्शन है। देश में केवल बिहार के बक्सर जेल में ही मौत का खास फंदा बनाया जाता है।
बक्सर, कंचन किशोर। महात्मा गांधी के हत्यारे नाथराम गोडसे से लेकर निर्भया मामले के दोषियों तक देश में फांसी के फंदे से लटकाए गए सभी अपराधियों में क्या समानता है? सभी के अपराध भले ही अलग-अलग हों, लेकिन एक चीज समान है और उसका बिहार कनेक्शन भी है। देश में दी गई सभी फांसियों में जिस खास 'मनीला रस्सी' का इस्तेमाल किया गया, उसका निर्माण बिहार के बक्सर सेंट्रल जेल में हुआ। निर्भया के दोषियों को भी शुक्रवार की सुबह बक्सर जेल में बनी रस्सियों से ही लटकाया गया।
खास बात यह भी रही कि जिस निर्भया से सामूहिक दुष्कर्म व हत्या के लिए यह सजा दी गई, उसका पैतृक गांव बक्सर जेल से कुछ किमी दूर ही उत्तर प्रदेश में है। शुक्रवार को जब निर्भया के दोषी फांसी के फंदे पर लटकाए गए, पूर्वांचल को यह सुकून हुआ कि उनकी बेटी के कातिलों का फंदा पड़ोस में ही तैयार हुआ था। बीते दिसंबर में गृह मंत्रालय द्वारा निर्भया के कातिलों की दया याचिका को खारिज होने के बाद ही बक्सर जेल को 10 रस्सियां भेजने का निर्देश मिला था।
केवल बक्सर जेल में ही फांसी रस्सी बनाने की अनुमति
सवाल यह है कि आखिर क्या है खास कि फांसी की रस्सी बक्सर सेंट्रल जेल में ही बनाई जाती है? क्या ये कहीं और नहीं बनाई जा सकती? बक्सर जेल के अधीक्षक विजय कुमार अरोड़ा के अनुसार भारतीय कारखाना अधिनियम के तहत बक्सर सेंट्रल जेल को छोड़ किसी अन्य जगह फांसी की रस्सी बनाने पर प्रतिबंध है। देश में केवल इसी जेल में इसे बनाने की मशीन है। वह भी स्वतंत्रता के पहले से।
नमी व पानी की उपलब्धता के कारण यहां लगाई मशीन
सवाल यह भी है कि अंग्रेजों ने फांसी की रस्सी बनाने की मशीन यहीं क्यों लगाई? जेल अधीक्षक मानते हैं कि इसका कारण बक्सर के मौसम में छिपा है। फांसी की रस्सी बहुत मुलायम बनाई जाती है। रस्सी को मुलायम बनाने के लिए इसमें प्रयुक्त सूत को अधिक नमी की जरूरत होती है। संभवत: इसी कारण अंग्रेजों ने गंगा के किनारे के इस जेल में फांसी की रस्सी की मशीन लगाई हो। यहां एक कुआं भी है। कुंआ और नदी के पानी से रस्सियों को भिगोने और नम करने में मदद मिलती होगी।
पहले पंजाब से मंगाया जाता था सूत, अब रेडीमेड सप्लाई
उस जमाने में आज की तरह मुलायम रेडिमेड सूत ही सप्लाई नहीं होती थी, जिस कारण सूत को हाथ से ही मुलायम और नम करना पड़ता था। रस्सी बनाने के लिए खास सूत (J34) का इस्तेमाल होता है। पहले यह पंजाब से मंगाया जाता था, लेकिन अब इसकी रेडीमेड सप्लाई मिल जाती है।
यूं पड़ा 'मनीला रस्सी' का नाम, 1844 से हो रहा निर्माण
बक्सर सेंट्रल जेल की स्थापना 1880 में हुई थी। माना जाता है कि उसी समय अंग्रेजों ने यहां 1844 में फांसी की रस्सी की मशीन लगाई थी। इससे पहले यह रस्सी फिलीपींस की राजधानी मनीला के जेल में बनती थी, इसलिए इसे मनीला रस्सी कहा जाता था। इसी कारण बक्यर जेल मेंब बनी रस्सी को भी मनीला रस्सी कहा जाने लगा।
जेल में कर्मचारी हैं पर कैदी ही बनाते फांसी की रस्सी
फांसी के लिए 18 फीट की रस्सी तैयार की जाती है। जेल अधीक्षक बताते हैं कि इसके लिए कर्मचारियों के पद सृजित हैं, लेकिन फांसी की रस्सी कैदी ही तैयार करते हैं। पुराने कैदी नए कैदियों को इसे बनाने का तरीका बताते हैं। फांसी की सजा पाए कैदी यह रस्सी नहीं बनाते। फांसी की रस्सी बनाना मुख्य रूप से हाथ का काम है। मशीन से केवल धागों को लपेटा जाता है। 154 सूत का एक लट बनता है। ऐसे छह लट बनाए जाते हैं, जिन लटों से 7200 धागे या रेशे निकलते हैं।
बक्सर जेल से रस्सी बनाकर भेज दी जाती है। इसके आगे उसकी फिनिशिंग व उसे मुलायम बनाने के काम होते हैं। नियमों के अनुसार फांसी के फंदे से केवल मौत होनी चाहिए, उससे चोट का निशान नहीं पड़ना चाहिए। इसलिए रस्सी का मुलायम होना जरूरी है।
2120 रूपये का था निर्भया के दोषियों की मौत का फंदा
जेल अधीक्षक बताते हैं कि यहां बनी रस्सी 2016 में पटियाला जेल भेजी गई थी। तब उसकी कीमत 1725 रुपए थी। लेकिन अब धागे और सूत के दाम बढ़ गए हैं। जो पीतल का बुश गर्दन में फंसाने के लिए लगाया जाता है, उसका दाम भी बढ़ा है। इस कारण निर्भया के दोषियों के लिए भेजी रस्सियों की कीमत 2120 रुपये रखी गई थी।
निर्भया मामले के पहले पटियाला भेजी गई थी रस्सी
बक्सर जेल से मिली जानकारी के अनुसार निर्भया मामले के पहले यहां बनी रस्सी 2016 में पटियाला जेल भेजी गई थी। उसके पहले 30 जुलाई 2015 को 1993 के मुंबई बम धमाकों के दोषी याकूब मेमन की फांसी का फंदा यहीं से भेजा गया था।