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बिहार में RTI को हथियार बना पानी की लड़ाई लड़ रहीं ये बेटियां, जानिए

बिहार की कुछ बेटियां आरटीआइ को हथियार बनाकर जनता की लड़ाई लड़ रहीं हैं। एेसे कई मामले सामने आए हैं, जब उनके प्रयास से लोगों को पेयजल मिला है। जरूर पढ़ें इसकी जानकारी देती यह खबर।

By Amit AlokEdited By: Published: Tue, 17 Apr 2018 09:27 AM (IST)Updated: Tue, 17 Apr 2018 09:50 PM (IST)
बिहार में RTI को हथियार बना पानी की लड़ाई लड़ रहीं ये बेटियां, जानिए
बिहार में RTI को हथियार बना पानी की लड़ाई लड़ रहीं ये बेटियां, जानिए

पटना [दीनानाथ साहनी]। बिहार के गांवों की पढ़ी-लिखी बेटियों ने लोक सूचना का अधिकार (आरटीआइ) को हथियार बनाकर सरकारी कार्यशैली का सच उजागर किया है। ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें बेटियों के अथक प्रयास और साहस से ग्रामीणों को पानी मुहैया हुआ। और तो और, दोषी ठेकेदार और इंजीनियर पर फर्जीवाड़ा के मुकदमें भी दर्ज हुए हैं।

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दरअसल, पटना, नालंदा व नवादा जिले के सुदूरवर्ती इलाकों में पानी की किल्लत को देखते हुए खराब पड़े हैंडपंपों की मरम्मत कार्य के बारे में आरटीआइ के तहत आवेदन देकर जानकारी मांगी तो पता चला कि कागज पर दर्जन भर से ज्यादा हैंडपंप की मरम्मत कराई जा चुकी है। जबकि, हकीकत जस की तस है। अब लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग ने पूरे मामले को गंभीरता से लिया है और जांच के लिए टीम गठित की है। वहीं लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण मंत्री विनोद नारायण झा ने कहा है कि ऐसे मामलों की जांच करा दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

हैंडपंप बेकार, कागज पर 1.16 लाख खर्च

पटना जिले के दनारा गांव की स्नातक छात्रा सुनीता यादव ने 24 मई 2017 को आंगनबाड़ी केंद्र में खराब पड़े हैंडपंप की मरम्मत के बारे में आरटीआइ अर्जी लगाई थी। उसे दो माह में सूचना नहीं मिली तो दोबारा अर्जी दी। जो जवाब मिला चौंकाने वाला था। पता चला कि उक्त हैंडपंप की मरम्मत हो चुकी है। इसके लिए 1.16 लाख रुपये खर्च किए गए हैं। इसके बाद सुनीता बीडीओ से मिली। बीडीओ के निर्देश पर 25 अक्टूबर 2017 को जांच रिपोर्ट सौंपी गई। रिपोर्ट के आधार पर ठेकेदार के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करने की अनुशंसा की गई थी। लेकिन, आज तक न तो केस दर्ज हो पाया और न ही हैंडपंप ठीक हो पाया। सुनीता ने कहा कि इस मामले को लेकर जल्द ही विभागीय मंत्री से मिलेगी।

कागज पर ही हो गई मरम्मत

इधर पटना के मसौढ़ी के एक कॉलेज से एमए कर रही चंदना पराशर ने आरटीआइ के जरिये अपने मोहल्ले में खराब पड़े हैंडपंप की मरम्मत कार्य की सूचना मांगी तब सरकारी तंत्र की पोल-पट्टी खुल गई। अर्जी के मुताबिक ठेकेदार और स्थानीय इंजीनियर की मिलीभगत से हैंडपंप की मरम्मत कागज पर जरूर हुई पर मोहल्लेवासियों को अभी तक पानी का इंतजार है। नवंबर 2016 से ही हैंडपंप खराब है। कई बार अधिकारियों से हैंडपंप को दुरुस्त करने की मांग की गई, लेकिन सिवाए  आश्वासन के कुछ नहीं मिला।

ठेकेदार फरार, चापाकल बेकार

नालंदा जिले के हिलसा प्रखंड के श्रीनगर गांव की स्वर्ण लता कॉलेज की छात्रा है। उसने गांव में पानी की किल्लत को देखते हुए खराब पड़े तीन हैंडपंपों की मरम्मत के बारे में सूचना मांगी तो पता चला कि तीनों हैंडपंप की मरम्मत की जा चुकी है। इसपर साढ़े चार लाख रुपये खर्च किए गए हैं। तब  गांव के लोगों से हस्ताक्षर कराकर उसने जिलाधिकारी को पत्र लिखा। इस पर डीएम ने हैंडपंप की मरम्मति सुनिश्चित करने और जांच का आदेश बीडीओ को दिया। साथ ही फरार ठेकेदार पर मुकदमा दर्ज कराने और राशि की रिकवरी करने को कहा गया है।

रंग लाया प्रयास, चालू हुआ हैंडपंप

कौआकोल प्रखंड (नवादा) की रागिनी ने किंजार, गायघाट और पकड़ीबेरामा समेत कई सुदुरवर्ती ग्रामीण इलाकों में पेयजल की किल्लत को देखते हुए खराब पड़े हैंडपंपों की मरम्मत के बारे में आरटीआइ से जानकारी ली तो प्रशासनिक तंत्र की पोल खुल गई। पता चला कि कागज पर आठ हैंडपंपों की मरम्मत हो चुकी है। साढ़े पांच लाख रुपये खर्च किए गए हैं। जब रागिनी इस फर्जीवाड़े की जानकारी लेकर संबंधित पदाधिकारियों से मिली तो उसे ही डराया-धमकाया गया। इसके बाद ग्रामीणों के साथ  रागिनी जिलाधिकारी से मिली। 

डीएम के निर्देश पर 25 जनवरी 2018 को जांच रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में अभियंता और ठेकेदार के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करने की अनुशंसा की गई है। रागिनी के कार्यों की तारीफ करते हुए जिलाधिकारी ने प्रभावित गांवों में हैंडपंपों की तत्काल मरम्मत करने का निर्देश दिया। इसके बाद प्रखंड कार्यालय ने खराब हैंडपंपों को चालू कराया।


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