पटना को बेटे की तरह दुलारा है गंगा मैया ने
बारिश का मौसम शुरू होते ही गंगा मैया और पटना का रिश्ता एकदम जीवंत होने लगा है।
पटना। बारिश का मौसम शुरू होते ही गंगा मैया और पटना का रिश्ता एकदम जीवंत होने लगा है। आम तौर पर शहर से दूर जा रहीं गंगा जलस्तर बढ़ने के साथ ही एक बार फिर शहर के पुराने घाटों से होकर बहने लगी हैं। बारिश के साथ जलस्तर और बढ़ेगा। साथ ही गंगा भी शहर से और करीब होती चली जाएंगी। पटनावासियों के लिए यह मौका गंगा के दीदार का है। रिवर फ्रंट योजना के तहत सुसज्जित किए गए घाटों से गंगा को निहारने का आनंद अद्भुत है। गंगा मैया और पटना के संबंधों पर शुभ नारायण पाठक की रिपोर्ट
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गंगा मैया और पटना का रिश्ता, मां और बेटे के रिश्ते जैसा है। बिल्कुल एक मां की तरह ही गंगा ने पटना को जन्मा, पाला-पोसा और बड़ा किया। गंगा के स्नेह और सान्निध्य ने पटना को पटना बनाया। जब गंगा पुल और बांधों के बंधन से बेफिक्र पूरी तरह उन्मुक्त होकर बहा करती थीं, तब भी उन्होंने पटना का ख्याल पूरी संजीदगी से रखा। भीषण गर्मी हो या कड़ाके की ठंड गंगा हमेशा पटना के काम आई। गंगा ने पटना को न सिर्फ पीने का पानी दिया, बल्कि यहां-वहां आने-जाने और पूरी दुनिया से जुड़ने का रास्ता भी दिया। गंगा की बदौलत ही पटना, पूरब में कलकत्ता तो पश्चिम में वाराणसी, इलाहाबाद और कानपुर तक से उस वक्त जुड़ा रहा, जब इतनी बड़ी दूरी का सफर करना बहुतों के लिए सपने जैसा था और जब हवाई जहाज, ट्रेनें और बसें नहीं होती थीं। एक्सप्रेस हाइवे तो दूर पक्की सड़कें नहीं होती थीं। गंगा बाढ़ लेकर भी आई तो पटना की जमीन को सींचने के लिए, उर्वर बनाने के लिए। आज जब पटना ने अपनी मां को उपेक्षित छोड़ दिया, अपनी गंदगी समर्पित कर अपनी मैया को गंदा कर दिया, तब भी गंगा का हृदय नहीं बदला। वे आज पटना से थोड़ी दूर होती दिखती हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि वह अपने बेटे को कभी छोड़ नहीं सकतीं। शहर के कुछ हिस्सों से गंगा थोड़ी दूर हो गई हैं, लेकिन अब भी बरसात का मौसम शुरू होते ही वह पटना को अपनी गोद में भर लेती हैं। अपने बेटे को पहले की तरह प्यार-दुलार करती हैं। अतीत में गंगा और पटना
बंगाल डिस्ट्रिक्ट गजेटियर श्रृंखला के वाल्यूम आठ यानी पटना गजेटियर में इंडियन सिविल सर्विस के अधिकारी लेविस सिडनी स्टीवर्ड ओ' मैले ने इलाके की नदियों के बारे में काफी कुछ लिखा है। 1907 में द बंगाल सेक्रेटेरिएट, कलकत्ता (अब कोलकाता) से प्रकाशित गजेटियर में मैले बताते हैं कि यह इलाका नदियों से घिरा हुआ है। गंगा के अलावा सोन इस इलाके की प्रमुख नदी है, जो पटना और शाहाबाद को अलग करती है। इनके अलावा पुनपुन, मोरहर जैसी नदियां हैं, जो आखिरकार या तो सोन या फिर गंगा में जाकर मिल जाती हैं। सोन फिलहाल मनेर से पश्चिम की तरफ गंगा में मिलती हैं। ओ' मैले इतिहास और लोक मान्यताओं के आधार पर अनुमान लगाते हैं कि बहुत पहले सोन फतुहा के आसपास गंगा में मिला करती थी। बाद में सोन की धारा धीरे-धीरे पश्चिम की ओर मुड़ने लगी। कभी अगमकुआं के पास भी सोन के गंगा में मिलने का अनुमान लगाया जाता है। लगभग इसी दौर में मगध के सम्राट अजातशत्रु ने अपने साम्राज्य की राजधानी को राजगृह (राजगीर) से बदलकर सोन और गंगा के संगम पर पाटलिपुत्र में स्थापित की। कई स्रोतों में इसका श्रेय अजातशत्रु के पुत्र उदायिन को भी दिया गया है। नदियों के बीच सुरक्षा और आसान परिवहन के लिहाज से यह शहर बहुत तेजी से विकास करता चला गया। साल दर साल शहर से दूर जा रहीं गंगा मैया
गंगा की धारा अब धीरे-धीरे शहर से दूर हो रही है। एक शोध के मुताबिक गंगा हर वर्ष शहर से 0.14 किलोमीटर दूर जा रही हैं। गर्मी के दिनों में कई घाटों के सामने 4 किलोमीटर तक दूर तक चली जाती हैं। इसके पीछे दीघा से लेकर राजापुर तक अवैध और अनियंत्रित निर्माण भी एक वजह है। ठंड का मौसम बीतते-बीतते गंगा शहर से काफी दूर चली जाती हैं। दीघा में गंगा का पटना से साथ छूटता है तो फिर जाकर गांधी घाट, एनआइटी के पास ही दोबारा मिलन होता है। साल दर साल ये फासला बढ़ रहा है। हालांकि बरसात में आई बाढ़ गंगा को हर साल शहर से मिला देती है। गंगा मैया से शहर के रिश्ते को ताजा करती है बरसात
बरसात शुरू होते ही गंगा मैया में जलस्तर बढ़ा है। इसी के साथ वह शहर के सभी पुराने घाटों पर फिर से पहुंचने लगी हैं। इससे शहर के सूने पड़े गंगा घाट एक बार फिर जीवंत होने लगे हैं। जलस्तर बढ़ने के साथ फिलहाल कलेक्ट्रेट घाट के आसपास तक गंगा की धारा बहने लगी है। धीरे-धीरे गंगा बाकी घाटों के करीब भी आती जाएंगी। शहर के लोगों को अलग-अलग घाटों पर गंगा के दीदार का ये मौका अगले दो-तीन माह तक मिलेगा। रिवर फ्रंट से दिखेगा गंगा का दिलकश नजारा
नमामि गंगा परियोजना के तहत विकसित होने वाले गंगा रिवर फ्रंट में बुडको ने 20 घाटों को शामिल किया है। इस परियोजना का अधिकतर काम पूरा हो चुका है। इसके तहत घाटों पर पक्की सीढि़यां आकर्षक पेंटिंग और लाइटिंग के साथ पर्यटकों के बैठने, टहलने के लिए इंतजाम किया गया है। योजना के तहत वहीं कलेक्ट्रेट घाट से रानी घाट तक रिवर फ्रंट को आकर्षक लुक दिया गया है। रौशन घाट से राजा घाट तक भी काम पूरा हो चुका है। इन घाटों पर बैठकर गंगा के दीदार का मौका पटनावासियों को अगले कुछ महीनों तक मिल सकता है।