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जिन्ना से गांधी और बोस से मोदी तक, पटना के इस मैदान से जुड़ी हैं कई सियासी यादें

पटना का गांधी मैदान जितना विशाल है अपने अंदर उतना ही इतिहास समेटे हुए है। यहां मोहम्मद अली जिन्ना से लेकर महात्मा गांधी तक के कदम पड़े हैं।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Sat, 20 Apr 2019 02:52 PM (IST)Updated: Sat, 20 Apr 2019 05:16 PM (IST)
जिन्ना से गांधी और बोस से मोदी तक, पटना के इस मैदान से जुड़ी हैं कई सियासी यादें
जिन्ना से गांधी और बोस से मोदी तक, पटना के इस मैदान से जुड़ी हैं कई सियासी यादें

कुमार रजत, पटना। गांधी मैदान भारतीय राजनीति का अखाड़ा है। आजादी की लड़ाई का गवाह है। संपूर्ण क्रांति की हुंकार है। बदलाव का पहिया है। सियासत की वह सीढ़ी है, जिसपर चढऩे वाला सूरज की तरह चमका और जो उतरा वह स्याह रात की तरह अंधेरे में गुम हो गया। लोकसभा चुनाव की सरगर्मी के बीच गाथा पटना के इसी ऐतिहासिक गांधी मैदान की।

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गांवों में एक बूढ़ा बरगद होता है, जो दादा-परदादा के जमाने की कहानियां समेटे होता है। जो पूरे गांव का सुख-दुख जानता है। गांधी मैदान पटना शहर का वही बूढ़ा बरगद है, जिसके पास किस्से-कहानियों का भंडार है। जिसने पटना को बनते-बिगड़ते-संवरते देखा है। जिसने भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद देखी है तो लोकतंत्र पर छाये संकट के बादल भी। आप कह सकते हैं कि सियासत से गांधी मैदान का रिश्ता सबसे करीबी रहा है।

गांधी मैदान का पुराना नाम बांकीपुर लॉन था। ब्रिटिश हुकूमत में यह अंग्रेजों का रेसकोर्स था यानी घुड़दौड़ की जगह। लकड़ी की मोटी दीवारों से घिरे बांकीपुर लॉन में भारतीयों के प्रवेश की मनाही थी। बाद में इसी बांकीपुर लॉन ने आजादी की ऐसी अलख जलाई कि अंग्रेज सत्ता की रेस से बाहर हो गए। आजादी के दौर में मोहम्मद अली जिन्ना से लेकर सुभाष चंद्र बोस तक ने यहां से अंग्रेजों के खिलाफ आवाज बुलंद की। आजादी मिलने के बाद जब दंगे भड़के तो इसी मैदान से महात्मा गांधी ने अमन का संदेश दिया।

भारतीय लोकतंत्र पर जब इमरजेंसी का दाग लगा तो जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में गांधी मैदान से ही पूरे देश में संपूर्ण क्रांति का संदेश गया। 90 के दौर में जब जातीय संघर्ष और राजनीति अपने चरम पर आई तो भी गांधी मैदान ही उसका केंद्र बिंदु बना। वर्ष 1990 में वीपी सिंह ने एकजुटता रैली की तो 1994 में कुर्मी चेतना रैली से नीतीश कुमार को एक जाति विशेष के नेता के रूप में बड़ी पहचान मिली।

जब गांधी मैदान में गूंजा-जात-पात तोड़ दो, तिलक-दहेज छोड़ दो

पांच जून, 1974 का दिन भारतीय राजनीति के ऐतिहासिक तारीखों में एक है। लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने इसी दिन गांधी मैदान में लाखों की भीड़ के बीच पहली बार 'संपूर्ण क्रांति' का नारा दिया था। जेपी के शब्दों में- 'संपूर्ण क्रांति से मेरा तात्पर्य समाज के सबसे अधिक दबे-कुचले व्यक्ति को सत्ता के शिखर पर देखना है।Ó

 जेपी की इस हुंकार ने पूरे भारत में नया जोश भर दिया। मैदान में उपस्थित लाखों लोगों ने जात-पात, तिलक, दहेज और भेद-भाव छोडऩे का संकल्प लिया था। नारा गूंजा था-

'जात-पात तोड़ दो, तिलक-दहेज छोड़ दो।

समाज के प्रवाह को नयी दिशा में मोड़ दो।

कब-कब आए दिग्गज

1938 : मोहम्मद अली जिन्ना ने मुस्लिम लीग की सभा को किया संबोधित

1939 : सुभाष चंद्र बोस ने फॉरवर्ड ब्लॉक की सभा को किया संबोधित

1948 : आजादी के बाद भड़के दंगों को शांत कराने आए गांधी जी ने प्रार्थना सभाएं कीं

1967 : कांग्रेस के खिलाफ राम मनोहर लोहिया ने चुनावी रैली को किया संबोधित

1974 : इमरजेंसी के दौर में जयप्रकाश नारायण ने भरी संपूर्ण क्रांति की हुंकार

1990 : लालकृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा के दौरान गांधी मैदान में भी दिया भाषण

1990 : पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने कांग्रेस के खिलाफ की एकजुटता रैली

देश को मिली पहली गैर-कांग्रेसी सरकार

देश को पहली गैर कांग्रेसी सरकार देने में गांधी मैदान का बड़ा योगदान रहा। यही से उठी संपूर्ण क्रांति की चिंगारी ने पूरे देश में कांग्रेस के खिलाफ ऐसी मशाल जलाई कि कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई। चुनाव के बाद पहली बार देश में गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। आज बिहार के दिग्गज नेता नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, सुशील कुमार मोदी, रविशंकर प्रसाद, रामविलास पासवान आदि उस समय संपूर्ण क्रांति में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने वाली छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का हिस्सा थे।

और फिर आया लालू की रैली का दौर

यूं तो गांधी मैदान में कई ऐतिहासिक और बड़ी रैलियां हुईं मगर लालू प्रसाद की रैलियों को लेकर चर्चा सबसे ज्यादा हुई। पिछड़ों के बड़े नेता के तौर पर उभरे लालू प्रसाद ने गांधी मैदान में 1994 से 2004 के बीच कई रोचक नामों वाली रैलियां कीं और खूब भीड़ जुटाई। 1995 की गरीब रैली कर पिछड़ों और गरीबों के धु्रवीकरण की बड़ी कोशिश की। 1996 में गरीब रैला कर संकेत दिया कि पिछली रैली से भी ज्यादा भीड़ और लोग उनके साथ हैं। 1997 में एक और रैली की और इस बार नाम दिया-महागरीब रैला। ये रैलियां उस दौर में हुईं जब बिहार में लालू प्रसाद अपने राजनीतिक कॅरियर के चरमोत्कर्ष पर थे। इन रैलियों में आई भीड़ ने मानक का रूप ले लिया। आज भी होने वाली रैली में भीड़ की तुलना लालू प्रसाद की इन रैलियों से की जाती है। इसके अलावा लालू प्रसाद के आह्वान पर 2003 में आयोजित लाठी रैली भी खूब चर्चा में रही। इस रैली में आने वाले लोग खासतौर पर अपने साथ लाठी लेकर शामिल हुए थे।

मोदी की हुंकार रैली और बम ब्लास्ट

भाजपा ने 27 अक्टूबर 2013 को गांधी मैदान में हुंकार रैली बुलाई। इसे 2014 के लोकसभा चुनाव संग्राम का शंखनाद माना गया। खुद भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी रैली ने रैली को संबोधित किया। भीड़ भी खूब जुटी मगर इस रैली को इन सबसे ज्यादा बम ब्लास्ट के लिए याद रखा गया। रैली स्थल पर पांच सिलसिलेवार धमाके हुए जिसमें छह लोग मारे गए जबकि 80 से अधिक घायल हुए।

ऐसे नाम पड़ा गांधी मैदान

अंग्रेजों के जमाने में मूल शहर पटना सिटी का इलाका था। आज के पटना को उस समय बांकीपुर कहा जाता था। बांकीपुर की सीमा आज के गांधी मैदान से ही शुरू होती थी। ऐसे में इस मैदान को बांकीपुर लॉन कहा जाने लगा। आजादी तक इसका यही नाम रहा। आजादी के बाद जब बिहार-बंगाल में दंगे भड़के तो महात्मा गांधी दंगों की आग शांत कराने पटना आए। गांधी मैदान के समीप (वर्तमान एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट परिसर) में ही वे रुके। यहां से हर दिन वे गांधी मैदान में लोगों से मिलते और प्रार्थना सभा करते। वर्ष 1948 में बापू के निधन के बाद उनकी स्मृति में बांकीपुर लॉन का नाम बदलकर गांधी मैदान रख दिया गया।

प्रसिद्ध राजनीतिक रैलियां

वर्ष     रैली       

1994 कुर्मी चेतना रैली     

1995 गरीब रैली     

1996 गरीब रैला    

1997 महागरीब रैला 

2003 लाठी रैला    

2007 चेतावनी रैली  

2012 परिवर्तन रैली 

2012 अधिकार रैली

2013 हुंकार रैली   

2015 स्वाभिमान रैली 

2017 भाजपा भगाओ-देश बचाओ रैली

2018 संकल्प रैली


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