डीएनए से लेकर बहती हवा सा था वो... तक, समय के साथ कैसे बदलते रहे नीतीश और भाजपा के रिश्ते
Bihar Politics बिहार में नई सरकार बनने वाली है। नीतीश कुमार ने एक बार फिर महागठबंधन से गांठ जोड़ ली है। ऐसे में नीतीश और भाजपा के रिश्ते कैसे समय के साथ बदलते रहे यह बात जानिए इनसाइड स्टोरी में
पटना, राज्य ब्यूरो। Bihar Politics: बिहार में भाजपा और नीतीश कुमार लंबे समय तक एक दूसरे के पूरक रहे। लेकिन, नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के प्रादुर्भाव के साथ ही नीतीश पुराने संबंध को लेकर सहज नहीं रह पाए। 1996 के लोकसभा चुनाव के समय भाजपा और समता पार्टी में दोस्ती हुई। अटल बिहारी वाजपेयी की पहली 13 दिन की सरकार में नीतीश मंत्री बने। उस दिन से 2010 के विधानसभा चुनाव तक बहुत कुछ बदला। समता पार्टी का जनता दल में विलय हुआ। जदयू बना। संबंध में बदलाव नहीं हुआ। 2010 में यह तय हो गया कि भाजपा में अटल-आडवाणी-जोशी का दौर समाप्त हो रहा है। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा के नए खेवनहार होंगे।
विज्ञापन से नाराज नीतीश ने रद कर दिया था भोज
जून 2010 में नरेंद्र मोदी पटना आए थे। उस दिन स्थानीय अखबारों में गुजरात के एक कारोबारी के सौजन्य से एक विज्ञापन छपा। उसमें मोदी और नीतीश एकसाथ नजर आ रहे थे। विज्ञापन में कुसहा त्रासदी के समय गुजरात सरकार की ओर से दी गई मदद का जिक्र था। नीतीश ने इसका बहुत बुरा माना। भाजपा नेताओं के सम्मान में आयोजित भोज को रद कर दिया गया। गुजरात सरकार की मदद को ड्राफ्ट के जरिए वापस कर दिया गया। नरेंद्र मोदी उभर रहे थे। भाजपा की इच्छा थी कि 2010 के विधानसभा चुनाव में मोदी भी प्रचार करें। नीतीश ने मना कर दिया। कहा-हमारे पास एक मोदी (सुशील कुमार मोदी) हैं। दूसरे मोदी की क्या जरूरत है। मोदी प्रचार में नहीं आए। भाजपा और जदयू ने जीत का कीर्तिमान स्थापित कर दिया। 243 में 216 सीटें एनडीए को मिली थी।
मोदी के पीएम चेहरा बनते ही तोड़ा संबंध
जून 13 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के लिए प्रस्तावित किए जा चुके थे। नीतीश ने भाजपा से नाता तोड़ लिया। 2014 के लोकसभा और 2015 के विधानसभा चुनाव में मोदी और नीतीश एक दूसरे पर हमलावर थे। उसी समय नरेंद्र मोदी ने नीतीश कुमार के डीएनए पर सवाल उठाया था। उसके खिलाफ जदयू ने शब्द वापसी अभियान चलाया था। 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार एक पैरोडी खूब सुनाते थे-बहती हवा सा था वो, गुजरात से आया था वो, कालाधन लाने वाला था वो, कहां गया उसे ढूंढ़ो। 2015 के बाद हालांकि, 2017 में जदयू की भाजपा में वापसी के साथ दोनों के रिश्ते में सुधार हुआ। 14 अक्टूबर 2017 को एक समारोह में नीतीश ने पटना विवि को केंद्रीय विवि बनाने की मांग की थी। समारोह में मौजूद प्रधानमंत्री ने कोई आश्वासन नहीं दिया। केंद्रीय मंत्रिमंडल में संख्या के अनुपात में जदयू की भागीदारी नहीं मिलने से भी नीतीश को पीड़ा हुआ। संबंध का अंत मुख्यमंत्री ने इस भाव के साथ किया कि भाजपा उनके खिलाफ साजिश रच रही थी।