बिहार में प्रति 100 में चार लोग हेपेटाइटिस-बी से संक्रमित, बचने के लिए करें ये उपाय
जॉन्डिस एक खतरनाक बीमारी है, जिससे मनुष्य का लिवर फेल होने से लेकर जान तक जा सकती है। शुद्ध भोजन व पेयजल के सेवन से हम जॉन्डिस से दूर रह सकते हैं।
पटना [जेएनएन]। जॉन्डिस (पीलिया) एक ऐसी बीमारी है जो खून में पित्त (बिलीरूबिन) की अधिकता से होती है। एक शोध में यह सामने आया है कि बिहार के प्रति सौ लोगों में चार लोग हेपेटाइटिस-बी के विषाणु से संक्रमित है, जो जॉन्डिस जैसे रोग के खतरे को बढ़ाता है। शुद्ध भोजन व पेयजल के सेवन से हम जॉन्डिस से दूर रह सकते हैं।
जॉन्डिस एक खतरनाक बीमारी है, जिससे मनुष्य का लिवर फेल होने से लेकर जान तक जा सकती है। जॉन्डिस को पहले पांडुरोग के नाम से भी जाना जाता था। खून में बिलीरूबिन की अधिकता से आंख का सफेद भाग और त्वचा का रंग पीला हो जाता है। इसके साथ पेशाब का रंग गहरा पीला हो जाता है। ज्यादा गंभीर पीलिया में नाखून, तलवा व हथेली भी पीली हो जाती है।
खून में बिलीरूबिन की मात्रा 1.5 एमजी से कम होती है, इससे अधिक मात्रा बढऩे पर पीलिया के लक्षण प्रकट होते हैं। सही अर्थ में पीलिया एक रोग नहीं बल्कि कई रोगों का लक्षण है। यकृत की थैली, पित्त की नली, अग्नाशय व रक्त कोशिका के कई रोगों में भी पीलिया के लक्षण प्रकट होते हैं। यह रोग सभी आयु के लोगों में हो सकता है। गर्मी व बारिश के समय इसकी ज्यादा संभावना रहती है।
जॉन्डिस के लक्षण
- आंख के सफेद भाग, त्वचा, पेशाब, नाखून, तलवा व हथेली का पीला पड़ जाना।
- भूख न लगना।
- उल्टी और मितली आना।
- पेट में दर्द होना।
- शरीर में खुजलाहट होना।
- खाने का कोई स्वाद नहीं लगना।
- कम काम में भी थकावट आ जाना।
- दांत से खून निकलना।
- ठंड के साथ बुखार आना।
- बेहोशी, शरीर में सूजन व खून की उल्टी होना रोग के गंभीर होने का लक्षण है।
जॉन्डिस के कारण
भारत और बिहार में पीलिया ज्यादातर हेपेटाइटिस के विषाणु के संक्रमण से होता है। हेपेटाइटिस-'ए', 'बी', 'सी' व 'ई' इसके प्रमुख विषाणु हैं। निरंतर शराब के सेवन से भी पीलिया हो सकता है। पित्त की थैली और उसके मार्ग में पथरी, संकुचन या कैंसर होने से भी पीलिया का लक्षण प्रकट होता है। लिवर सिरोसिस का रोग पीलिया का प्रमुख कारण है। कई बार अग्नाशय और छोटी आंत के कैंसर से पीलिया हो सकता है। रक्त कोशिका के टूटने की बीमारी और गिलवर्ट सिंड्रोम पीलिया के अन्य मुख्य कारण हैं। बिहार में पित्त की थैली के कैंसर से पीलिया काफी लोगों में होता है।
नियंत्रण नहीं होने पर लिवर हो सकता है खराब
हेपेटाइटिस 'ए' व 'ई' के संक्रमण से होने वाला जॉन्डिस ज्यादातर एक से डेढ़ महीने में ठीक हो जाता है। हेपेटाइटिस-'बी' व 'सी' और शराब का सेवन करने वाले रोगी का उपचार निर्धारित समय पर हो जाने से पीलिया पर नियंत्रण पाया जा सकता है। एक से दस फीसद रोगी में पीलिया पर नियंत्रण नहीं पाया जा सकता। इसमें लिवर फेल्योर की स्थिति उत्पन्न होती है, जो जानलेवा तक हो सकती है। कई बार मरीज को लिवर प्रत्यारोपण की जरूरत पड़ती है। पित्त के प्रवाह में रुकावट जैसे पथरी, कैंसर या संकुचन का इंडोस्कोपिक (ईआरसीपी) अथवा शल्य विधि से इलाज किया जा सकता है, इसलिए पीलिया से ग्रसित रोगी को तुरंत चिकित्सक से परामर्श करना जरूरी है।
प्रदूषित भोजन और पानी बीमारी का बड़ा कारण
हेपेटाइटिस-'ए' एवं 'ई' परस्पर एक-दूसरे से फैलने वाली संक्रमित बीमारी है। यह शौच से दूषित भोज्य पदार्थ या जल से फैलती है। खुले में रखकर बिकने वाली भोजन सामग्री से परहेज आवश्यक है। पीने का पानी साफ, ताजा और फिल्टर्ड होना चाहिए। हेपेटाइटिस-'बी' एवं 'सी' विषाणु के संक्रमण, संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन संबंध से, संक्रमित सुई के पुन: इस्तेमाल या संक्रमित मां के गर्भावस्था के दौरान संक्रमण के माध्यम से शिशु में होता है। हेपेटाइटिस-'ए' एवं 'बी' का बचाव टीकाकरण से संभव है।
प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन करना फायदेमंद
पीलिया के रोगी को खान-पान से संबंधित कई बातों का ध्यान रखना जरूरी है। ऐसे रोगी को प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन का ज्यादा सेवन करना चाहिए। चावल, दाल, दलिया, खिचड़ी, छांछ, पपीता, उबला आलू, शकरकंद, चीकू, फलों का रस, सब्जी व ताजी दही का सेवन करना लाभकारी है, लेकिन मांस-मछली, पूड़ी जैसे ज्यादा वसायुक्त भोजन के सेवन से परहेज करना चाहिए।
(डॉ. आशीष कुमार झा, सहायक प्राध्यापक, गैस्ट्रोलॉजी, आइजीआइएमएस से बातचीत पर अाधारित)