पटना लिटरेचर फेस्टिवलः साहित्य में बाजारवाद हावी होने से बज्जिका को नुकसान
पटना लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे दिन मगही, अंगिका, बज्जिका-कविताएं कुछ कहती हैं विषय पर चर्चा के दौरान बिहार की लोकभाषाओं पर विद्वानों ने विचार रखे।
गौरव कुमार, पटना : पटना लिटरेचर फेस्टिवल के तीसरे दिन मगही, अंगिका, बज्जिका-कविताएं कुछ कहती हैं विषय पर बिहार की लोकभाषाओं पर विद्वानों ने विस्तार से चर्चा की। मगही भाषा के इतिहास पर बोलते हुए उदयशंकर शर्मा ने कहा कि यह दुखद है कि आज लोक भाषाओं को न सरकार पूछ रही है और न समाज। बज्जिका भाषा पर प्रकाश डालते हुए आचार्य चंद्र किशोर पराशर ने कहा कि बिहार में पांच लोकभाषाएं हैं जिनमें बज्जिका भी शामिल है।
कहा कि बज्जिका की शुरुआत 15वीं शताब्दी में हुई थी और आज बज्जिका में कई काव्यों और साहित्यों की रचना हो चुकी है लेकिन, साहित्य क्षेत्र में बाजारवाद के हावी होने के कारण बज्जिका काफी पीछे रह गई। आचार्य चंद्र किशोर पराशर ने- तेजाब सावन में बरसइय हमरा गांव में, चंादनी में तरवा जरइय हमरा गांव में कविता का पाठ किया तो सभागार तालियों से गूंज उठा।
आरक्षण समाज के लिए विभाजनकारी
आचार्य ने कौरव और पांडव का उदाहरण देकर आरक्षण को समाज के लिए विभाजनकारी बताया। वहीं, अंगिका पर प्रकाश डालते हुए डॉ. लखन लाल सिंह आरोही ने कहा कि अंगिका बिहार-झारखंड के लगभग 19 जिलों में बोली जाती है। भागलपुर विवि में अठारह वर्षों से इस विषय में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कराई जा रही है। लेकिन इस भाषा के लिए यूजीसी नेट की परीक्षा नहीं होती जिससे इसे पढऩे वाले छात्र प्रोफेसर नहीं बन सकते। यह स्थिति काफी दुखद है। तीनों भाषा विद्वानों ने अपने संबोधन में इन लोक भाषाओं की दुर्दशा के लिए सरकार और समाज को जिम्मेदार ठहराया।