बेहतर संगीत की समझ पैदा करनी है तो फनकार नहीं सुनकार होने की जरूरत Patna News
शुक्रवार को होटल चाणक्या की सुकूनभरी शाम में डॉ. प्रवीण मुखातिब थे। इस दौरान पटना में पैदा हुए डॉ. प्रवीण ने अपनी किताब को केंद्र में रखते हुए संगीत नारी और जाति पर बातें रखीं।
अक्षय पांडेय, पटना। पटना में पैदा हुए डॉ. प्रवीण कुमार झा भले ही तीन साल से नार्वे में रहते हैं पर उनकी किताब 'कुली लाइन्स' अप्रवासी भारतीयों की दशा बयां करती है। उनकी कहानी में संगीत, नारी और जाति का जिक्र हर किसी के जीवन को छू जाता है। शुक्रवार को होटल चाणक्या की सुकूनभरी शाम में डॉ. प्रवीण मुखातिब थे। प्रभा खेतान फाउंडेशन और नवरस स्कूल ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट द्वारा और श्री सीमेंट के सहयोग से आयोजित 'कलम' कार्यक्रम की 43वीं कड़ी में उनसे बात की इतिहासकार अरुण सिंह ने। कार्यक्रम का मीडिया पार्टनर दैनिक जागरण रहा।
पढ़ा ज्यादा, लिखा कम
लेखक को पढऩा अधिक चाहिए। प्रवीण कहते हैं कि मैंने नवोदय से नार्वे तक का सफर तय किया। जितने ज्यादा लोगों से मिला उतनी समझ बढ़ी। पटना के साइंस कॉलेज से कई बेहतरीन यादें जुड़ीं। दादा का नाता संगीत से रहा, इसलिए मेरा भी जुड़ाव इस विधा से हो गया। इसके कुछ पहलू मेरी किताब में भी दिखते हैं। मेरा मानना है कि संगीत को समझने के लिए फनकार से ज्यादा सुनकार होने की जरूरत है। सुनकार का मतलब ज्यादा सुनने से है। मैंने भी ऐसी ही कोशिश की।
इतिहास का सबसे बड़ा पलायन गिरमिटियों ने किया
डॉ. प्रवीण बताते हैं कि जब वे नार्वे गए तब पलायन का दर्द समझ आया। गिरमिटिया के बारे में लोग कम ही जानते थे। इतिहास में सबसे बड़ा पलायन यही रहा, मगर इसे भुला दिया गया। थोड़ी सी बेहतरी के लिए इन्होंने पलायन किया और अपनी अनचाही दुनिया बसा ली। इतना कुछ करने के बावजूद उन्हें इंसाफ नहीं मिला। वे अपने अतीत को दुखद मानते हैं।
बिहार की धरोहरों ने विदेशों में दिलाई पहचान
एक रोचक किस्सा ये है कि मॉरीशस का एक इलाका ऐसा भी है, जहां सभी लोग आरा के हैं। डॉ. प्रवीण कहते हैं कि मॉरीशस बिहार से ज्यादा नजदीक रहा। वहां हमारी ताकत अधिक रही। उदाहरण बहुत से हैं। राजनीतिक दृष्टि से भी हम भारत के अलावा कई ऐसे देश हैं जहां मजबूत हैं।
संगीत के क्षेत्र में बिहार मजबूत
डॉ. प्रवीण कहते हैं कि संगीत के क्षेत्र में जो स्थान बिहार का है वो किसी अन्य राज्य का नहीं। दो बड़े ध्रुपद घराने बेतिया और दरभंगा हमारे राज्य से ही रहे। पटना सिटी, मुजफ्फरपुर, गया और आरा जैसे कई उदाहरण हैं, जहां की संगीत परंपरा का इल्म इस विधा के जानकारों की रग-रग में बसा है। अमजद अली खान तो कहा भी करते थे कि जो मजा पटना में प्रस्तुति देने में आता है वो और कहीं नहीं।
जातिवाद अब भी है हावी
भारत ही नहीं विदेशों में भी जातिवाद है। डॉ. प्रवीण ने मॉरीशस का उदाहरण देते हुए कहा कि एक फ्रेंच मैगजीन ने जातिवाद बढऩे का लेख छापा तो वहां के लोगों ने मैगजीन को जलाकर अपना विरोध जताया। इसके बाद भी कुछ लोगों ने अपने को अलग-अलग वर्गों में बांट लिया है, जबकि युवाओं का झुकाव इस ओर कम है।
नारी मुक्ति का वाहक रहा पलायन
डॉ. प्रवीण कहते हैं कि कई ऐसे उदाहरण हैं जिसमें पलायन नारी मुक्ति का वाहक बना। नारी का दशा बदली है। जो अपना देश छोड़ कर गईं उनपर ज्यादती के कई सारे उदाहरण हैं पर इसके बावजूद भी उन्हें कई चीजों की आजादी थी। कार्यक्रम के दौरान पद्मश्री ऊषा किरण खां, अवनीता प्रधान, डॉ. अजीत प्रधान, त्रिपुरारी शरण, रत्नेश्वर, डॉ. प्रियेंदु सुमन, अनीश अंकुर, जयप्रकाश, मंगला रानी, डॉ. अर्चना त्रिपाठी मौजूद थीं।