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एफसीआइ ने पकड़ी चोरी, सौ के बदले 90 किलो दिए जा रहे थे अनाज

कम अनाज देने का सिलसिला एफसीआइ गोदाम से ही शुरू हो जाता है। केंद्र और राज्य सरकार को चोरी की रिपोर्ट दी जाएगी। साढ़े आठ करोड़ लोग सस्‍ते योजना के दायरे में हैं। मधुबनी दरभंगा और समस्तीपुर में शिकायतें मिली हैं।

By Sumita JaiswalEdited By: Published: Thu, 04 Feb 2021 01:45 PM (IST)Updated: Thu, 04 Feb 2021 01:45 PM (IST)
एफसीआइ ने पकड़ी चोरी, सौ के बदले 90 किलो दिए जा रहे थे अनाज
उपभोक्‍ताओं ने कम अनाज मिलने की शिकायत की थी, सांकेतिक तस्‍वीर ।

पटना, राज्य ब्यूरो। राज्य खाद्य आयोग (State Food Corporation) के अध्यक्ष ने हाल में तीन जिलों का दौरा किया। एफसीआइ (Food Corporation of India) के गोदाम से लेकर डीलर तक गए। हर जगह कम वजन की शिकायत मिली। आयोग ने पाया कि कम अनाज देने का सिलसिला एफसीआइ के गोदाम से ही शुरू हो जाता है। उपभोक्ता तक पहुंचते-पहुंचते यह शिकायत और बढ़ जाती है। आयोग की जांच रिपोर्ट केंद्र और राज्य सरकार के पास जरूरी कार्रवाई की मांग के साथ भेजी जा रही है। राज्य में एक करोड़ 68 लाख परिवार सस्ती अनाज योजना के दायरे में हैं। इनके जरिए आठ करोड़ 56 लाख लोगों को महीने में पांच किलो अनाज (तीन किलो चावल-दो किलो गेहूं) दिया जाता है।

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फटे बोरे से भी बर्बादी

आयोग के अध्यक्ष विद्यानंद विकल ने हाल ही में दरभंगा, मधुबनी और समस्तीपुर जिलों का दौरा किया। वे मधुबनी जिले के जयनगर स्थित एफसीआइ के रैक प्वाइंट पर गए। देखा कि अनाज के बोरे जर्जर हालत में हैं। मालगाड़ी से उतार कर ट्रक पर लोड करने के दौरान अनाज गिर रहे थे। उन्होंने पूछताछ की तो बताया गया कि फटे बोरे की शिकायत लंबे समय से की जा रही है। कोई निदान नहीं निकल पाया है। मालगाड़ी से अनाज पहले एफसीआइ के गोदाम में जाता है। वहां से वह राज्य सरकार के गोदाम में आता है। यहां से डीलरों की दुकान तक पहुंचाया जाता है। फटे बोरा के कारण प्रति क्विंटल कम से कम पांच किलो अनाज की बर्बादी होती है।

उपभोक्ताओं ने की शिकायत

अध्यक्ष ने डीलरों और उपभोक्ताओं से भी मुलाकात की। इन दोनों ने शिकायत की कि उन्हें कम अनाज की आपूर्ति की जाती है। डीलरों का कहना था कि उन्हें खुद कम अनाज मिलता है तो उपभोक्ताओं को पक्की तौल में अनाज कहां से दें। डीलरों और उपभोक्ताओं के बीच इस मुद्दे पर समझदारी बन गई कि वे चार किलो अनाज को पांच किलो मानकर ले लेते हैं।

20 प्रतिशत अनाज का हिसाब नहीं

आयोग ने पाया कि उस अनाज का कोई हिसाब नहीं है, जो उपभोक्ताओं की संख्या के हिसाब से आवंटित होता है। लेकिन, किसी वजह से उपभोक्ता उसे उठा नहीं पाते हैं। मोटे अनुमान के अनुसार यह कुल आवंटन का 20 प्रतिशत हिस्सा हो सकता है। आयोग अपने पत्र में इस मुद्दे का भी उठा रहा है।


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