लोकगीत हैं बिहारियों की पहचान
पटना म्यूजियम में आयोजित 'सहोदरा' कार्यक्रम में पद्मश्री डॉ. शारदा सिन्हा को किया गया सम्मानित।
पटना म्यूजियम में आयोजित 'सहोदरा' कार्यक्रम में पद्मश्री डॉ. शारदा सिन्हा को किया गया सम्मानित
विद्यापति के गानों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है। आज के लोकगीतों में विद्यापति के गानों के अंश हैं। ये बातें रविवार को पटना म्यूजियम में मैथिली साहित्य संस्थान एवं बिहार पुराविद् परिषद की ओर से आयोजित 'सहोदरा' कार्यक्रम में पद्मश्री डॉ. शारदा सिन्हा ने अपने संगीत जीवन की शुरुआत को याद करते हुए कहीं। कार्यक्रम के दौरान संस्था की तरफ से पद्मश्री डॉ. शारदा सिन्हा को शॉल और प्रतीक चिह्न देकर सम्मानित किया है।
विदेशों में है लोकगीत की पूछ
डॉ. शारदा सिन्हा ने कहा कि भोजपुरी, मैथिली, अंगिका या कोई भी लोक भाषा हो सभी की जड़ एक है। पद्मश्री शारदा सिन्हा ने अपने संगीत जीवन की शुरुआत को याद करते हुए कहा, जब मैं पहली बार मैथिली भाषा में जय-जय भैरवी गाने की रिकॉर्डिग करने के लिए पहुंची तो एक कॉम्पोजर ने गाना रिकॉर्ड करने से मना कर दिया। उनका कहना था कि ये भाषा बहुत मुश्किल है और समझ के परे भी। तब मैंने उन्हें समझाया कि जिस प्रकार लोग धार्मिक किताबें पढ़ते हैं उसी प्रकार बिहार के लोग लोकगीत सुनकर ही बड़े होते हैं। सिन्हा ने बताया कि मैंने जिद करके जय जय भैरवी गाने की रिकॉडिंग की। आज इस गाने को सुनने वाले देश-विदेश में हैं।
लोकगीतों से फैलाई जागरूकता
कार्यक्रम की शुरुआत में डॉ. शारदा सिन्हा ने खुद के गाए हुए कई लोकगीत गाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। शारदा ने कहा कि मैंने लोकगीत अपने घर से ही सीखा। बताया कि मुझे ऐसा माहौल मिला की मैंने घर में ही काफी कुछ जाना। शारदा सिन्हा ने कहा कि लोकगीत सिर्फ शादी विवाह के लिए नहीं बना है। चुनाव के समय लोगों को जागरूक करने के लिए भी है। उनकों अधिकार दिलाने के लिए हैं।
लोगों को जोड़ने के लिए कार्यक्रम की हो सराहना
कार्यक्रम के दौरान ऊषा किरण खान ने कहा कि लोकगीत और लोकभाषा हमेशा लोगों को एक दूसरे से जोड़ती है। इस तरह के कार्यक्रम लोकभाषा को बढ़ावा देने के लिए आयोजित किए जाते हैं, जो की सराहनी पहल है। लोकगीतों में कवि विद्यापति के गाने हों या फिर भिखारी ठाकुर के लिखे हुए गीत, ये सब से हमें एक दूसरे से जोड़ते हैं। कार्यक्रम के दौरान पद्मश्री डॉ. शारदा सिन्हा और ऊषा किरण खान ने मुंशी रघुनंदन दास की रचनावली पर आधारित पुस्तक का विमोचन किया। पुस्तक का संपादन भैरव लाल दास ने किया है। इस मौके पर डॉ. चित्ररंजन प्रसाद, भैरव लाल दास, प्रेमलता मिश्र, विवेकानन्द झा, किशोर चौधरी, डॉ. वीणा कर्ण, विजय प्रकाश के साथ कई साहित्यकार और रंगमंच के कलाकार मौजूद थे।