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बिहार की ये महिलाएं बनीं मिसाल और इस तरह बजा दिया गरीबी का 'बैंड', जानिए

महादलित समुदाय की महिलाओं ने जब बैंड बजाने की ठानी तो लोगों ने मजाक उड़ाया। आज आंखों में आत्मविश्वास और बुलंद इरादे के साथ जब ये महिलाएं बैंड बजाती हैं तो लोग देखते रह जाते हैं।

By Kajal KumariEdited By: Published: Wed, 24 Jan 2018 06:52 PM (IST)Updated: Fri, 26 Jan 2018 07:48 AM (IST)
बिहार की ये महिलाएं बनीं मिसाल और इस तरह बजा दिया गरीबी का 'बैंड', जानिए
बिहार की ये महिलाएं बनीं मिसाल और इस तरह बजा दिया गरीबी का 'बैंड', जानिए

पटना [काजल]। आंखों में आत्मविश्वास की चमक, चेहरे पर मासूम-सी हंसी और इरादे चट्टान की तरह बुलंद, पीठ पर ड्रम लादे और हाथों में ड्रम को बजाने वाले दो डंडे लिए साड़ी पहनकर तैयार इन महिलाओं ने गरीबी और परेशानी का एेसा बैंड बजाया कि देखने वाले देखते रह गए। जी हां, हम बात कर रहे हैं पटना से कुछ दूरी पर स्थित ढिबरा गांव की, जहां बिहार की पहली महिला बैंड की जिसका नाम है-सरगम महिला बैंड।

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ढिबरा गांव, जहां सुविधाओं का अभाव है और आज भी पूरा गांव खेती पर ही निर्भर है। उसी गांव में कभी पति की मार और गरीबी का दंश झेलने वाली दस महिलाएं आज अात्मनिर्भर हैं। लेकिन उनके बदलाव का सफर इतना आसान नहीं था। इन महिलाओं की कहानी आपके दिल को झकझोर कर रख देगी।

घर की चारदीवारी और गांव की दहलीज को लांघकर उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि पटना के चाणक्य और मौर्या होटल जैसी जगहों के बाद वे दिल्ली जैसे बड़े शहर के बड़े-बड़े होटल और कार्यक्रमों का हिस्सा बन सकेंगी। लेकिन आज उन्होंने ये कमाल कर दिखाया है और अब उनके बैंड की डिमांड कई राज्यों में हो रही है।

इस दस महिलाओं की कहानी लगभग एक जैसी है। महादलित समुदाय की इन महिलाओं के पति खेती-मजदूरी करते हैं। ये बताती हैं कि जब शादी करके घर में आईं तो घर में पैसे की तंगी थी और किसी तरह दोनों वक्त की रोटी का जुगाड़ हो पाता था। फिर बच्चे हो गए तो जिम्मेदारी बढ़ गई तो इन्होंने भी खेत में काम करना शुरू किया।

दूसरों के खेत में मजदूरी करतीं और महिला होने की वजह से पैसे कम मिलते थे। ऊंची जाति के लोगों के बच्चों को तैयार होकर स्कूल जाते देखतीं तो इनका भी मन होता था कि हमारे बच्चे भी स्कूल जाते। लेकिन इनके अरमान तब मिट जाते जब खाने के लिए रोटी का जुगाड़ करना पड़ता।

एक दिन ढिबरा गांव में पद्मश्री से सम्मानित सुधा वर्गीज आईं और महिलाओं से मिलीं। महिलाओं की आर्थिक स्थिति देखकर उन्होंने उनसे कुछ काम करने को कहा। उन्होंने बताया कि महिलाएं अब बहुत कुछ कर रही हैं, तुम सब भी कुछ एेसा करो जिससे तुम्हारे घर की हालत सुधरे।

इस ग्रुप की टीम लीडर सविता देवी ने बताया कि हमने दीदी से पूछा कि दीदी हम क्या करें? तो दीदी ने बताया गरीबी का बैंड बजा दो। ये सुनकर हम सब हंस पड़ीं। लेकिन दीदी ने पूछा-बैंड बजा सकोगी। तो हम सबने एक-दूसरे को देखा कि ये दीदी क्या कह रही हैं। ये तो मर्दों का काम है। लेकिन दीदी ने कहा तुम्हें बैंड बजाना है और तुम बजाओगी।

दीदी की बात को जब हमनेे अपने घर में बताया तो हम सबके घर में हंगामा मच गया। पूरे गांव में बात फैल गई कि ये लोग बैंड बजाएंगी। हमारा हौसला भी टूट गया लेकिन जब सुधा दीदी ने आदित्य गुंजन भैया को हमारे पास भेजा कि वो हमें ट्रेनिंग देंगे तो हमने भी ठान लिया कि अब हम सीख कर ही रहेंगी। दीदी का सपना पूरा करेेंगी। 

ग्रुप की एक सदस्य लालती देवी ने बताया कि जब आदित्य गुंजन भैया सिखाने आए तो उन्होंने कहा कि जो काम पुरुष कर सकते आप क्यों नहीं? फिर उन्होंने सिखाना शुरू किया। हम भी घर का सारा काम निपटाने के बाद दो घंटे बैंड बजाना सीखते थे।

इस तरह कड़ी मेहनत के बाद हम सबने बैंड बजाना सीख लिया। हम पंद्रह महिलाओं ने सीखना शुरू किया था लेकिन हममें से पांच महिलाओं ने हार मान ली लेकिन हम दस लोगों ने हार नहीं मानी और इस तरह हमारा सरगम बैंड तैयार हो गया।

अनिता देवी शर्माती हुई बताती हैं कि जब पहली बार ड्रम लेकर घर में बजाने ले गई तो पति ने पिटाई की और कहा कि इज्जत को नीलाम करने पर क्यों तुली है। ढोल नगारा बजाना तेरा काम नहीं। चुपचाप इसे दे आ जिसके पास से लेकर आई है। लेकिन मैंने इसकी परवाह नहीं की और आज वही मेरे प्रोग्राम में जाने को लेकर ज्यादा दबाव डालते हैं कि जा तुझे देर हो जाएगी। घर मेैं संभाल लूंगा।

छठिया देवी ने बताया कि पहले तो गांव के लोग मजाक उड़ाते थे कि लो आ गई बैंड पार्टी। अब ये लोग घर से बाहर निकलेंगी, बाहर जाएंगी। इस तरह की तमाम तरह की बातें होतीं लेकिन आज वही लोग जब हम अपने पैरों पर खड़ी हो गई हैं तो हमारी इज्जत करते हैं। आज सरकारी आयोजनों के साथ विशेष कार्यक्रमों में हमारे बैंड की मांग होती है तो बहुत खुशी होती है। 

चित्ररेखा देवी ने बताया कि हमने कभी शहर का रास्ता नहीं देखा था और आज हम फाइव स्टार होटल में जब बैंड बजाने जाती हैं, तो लोग देखते ही रह जाते हैं। आज ढिबरा गांव की हर जगह चर्चा हो रही है। हमें एक प्रोग्राम के पंद्रह हजार रुपये मिलते हैं। पैसे तो जरूरी हैं ही हमारे लिए लेकिन सबसे अच्छा यह लगता है जब लोग हमारी इज्जत करते हैं, तारीफ मिलती है।

पंचम देवी ने बताया कि अब हम सब अपने बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ सभी तरह की सुविधाएं दे रही हैं। अब पति के साथ ही परिवार के लोग भी बहुत खुश हैं। दूर-दूर से लोग मिलने आते हैं हमारे बारे में जानने आते हैं तो अच्छा लगता है। हम सब सुधा दीदी की आभारी हैं कि आज उन्होंने हमें नई राह दिखाई। गांव के लोग भी अब बहुत इज्जत देते हैं।

चित्ररेखा देवी कहती हैं कि अब तो हम दिल्ली हमेशा जाते रहते हैं, बड़े-बड़े आयोजनों में हमारी डिमांड हो रही है। बिहार से बाहर भी लोग हमें पहचानते हैं, ये खुशी देता है। ये पूछने पर कि जब कार्यक्रम में नहीं जातीं तो क्या करती हैं? उन्होंने बताया कि गांव में ही खेती जो हमारा मुख्य पेशा है, वो भी जारी है। लेकिन बैंड का कार्यक्रम हो तो हम आज भी बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रैक्टिस करती हैं। 

 कहा- सुधा वर्गीज ने

सुधा वर्गीज ने बताया कि ये महिलाएं पहले कहती थीं कि दीदी कैसे होगा? हम बैंड बजाएंगे तो लोग क्या कहेंगे? लेकिन इन महिलाओं की हिम्मत और आत्मविश्वास की वजह से उम्मीद से अधिक सफलता मिली है। उन्होंने बताया कि इसी से प्रेरित होकर एक और महिला बैंड पार्टी की बुनियाद पुनपुन प्रखंड में रखी जा रही है।

उन्होंने कहा कि लोग समझते हैं कि सिर्फ पुरुष ही बैंड बजा सकते हैं। लेकिन हमारी सरगम महिला बैंड पार्टी ने इस मिथक को तोड़ा है और आज इन महिलाओं ने यह साबित कर दिया है कि मुश्किल कुछ नहीं होता। इनसे प्रेरित होकर सूबे के दूसरे हिस्से की महिलाएं भी बैंड पार्टी बनाने के लिए संपर्क कर रही हैं। 

-पद्मश्री सुधी वर्गीज, समाज सेवी


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