आरटीआइ से सूचना मांगने वाले 206 लोगों पर भ्रष्ट अधिकारियों ने किए झूठे मुकदमे
बिहार में अधिकारियों ने आरटीआइ कार्यकर्ताओं पर रंगदारी मांगने धमकी देने एससी-एसटी उत्पीडऩ करने एवं अपहरण का प्रयास जैसे केस दर्ज कराए हैं। पीडि़तों ने राज्य सूचना आयोग से लेकर गृह विभाग में अर्जियां देकर न्याय की गुहार लगाई है।
पटना, दीनानाथ साहनी। बिहार में सूचना का अधिकार कानून (RTI) के तहत सूचना मांगने वालों को झूठे मुकदमों में फंसाने के मामले सामने आ रहे हैं। भ्रष्ट अधिकारियों की वजह से 206 आरटीआइ कार्यकर्ता मुकदमेबाजी में उलझ गए हैं। ऐसे पीडि़तों ने राज्य सूचना आयोग से लेकर गृह विभाग में अर्जियां देकर न्याय की गुहार लगाई है। ज्यादातर केस रंगदारी मांगने, धमकी देने, छेड़खानी तथा एससी-एसटी उत्पीडऩ करने एवं अपहरण का प्रयास जैसे हैं। यह जानकारी आरटीआइ के तहत गृह विभाग से मिली है।
सूचना मांगने पर अफसर धमकाते
सरकार भी मानती है कि लोकहित की योजनाओं में बरती गई अनियमितताओं को दबाने-छिपाने वाले अधिकारी या कर्मचारी सूचना मांगने वालों के खिलाफ हमलावर रुख अखितियार करते हैं। ऐसे लोग आरटीआइ कार्यकर्ताओं के खिलाफ फर्जी केस करने से भी पीछे नहीं हटते हैं। दिलचस्प यह कि अगर महिला पदाधिकारी है तो वह छेडख़ानी का मामला दर्ज कराती है। अगर अनुसूचित जाति के पदाधिकारी है तो एससी/एसटी एक्ट के तहत मामले दर्ज कराते हैं। वहीं अगर आप अपराधियों के खिलाफ कोई मुकदमा कराने जाएंगे तो मामला दर्ज नहीं होगा। लेकिन, आरटीआई कार्यकर्ताओं के खिलाफ पुलिस में फौरन मामले दर्ज कर लिए जाते हैं। दरअसल, अफसरों की बंदिशों से बिहार में लोक सूचना का अधिकार कानून मजाक बनकर रह गया है। आरटीआइ के तहत सूचना मांगने पर अफसर धमकाते भी हैं। ज्यादातर मामलों में सूचना मांगने संबंधी अर्जियों पर अफसर दिलचस्पी नहीं लेते हैं, टाल-मटोल करते हैं। इससे भी बात नहीं बनती है तब आवेदकों से ऑफिस में सादे कागज पर हस्ताक्षर करने को कहते हैं। यदि कोई आवेदक ज्यादा दबाव बनाकर सूचना लेता है तो उस पर झूठे केस दर्ज करा देते हैं ताकि डर से कोई सूचना मांगने नहीं आए।
54 अफसरों के विरुद्ध आर्थिक दंड
बिहार राज्य सूचना आयोग के एक उच्च अधिकारी का कहना है कि झूठे मुकदमे में फंसाने वालों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। आयोग ने उन 54 अफसरों के विरुद्ध आर्थिक दंड भी लगाया है जिन्होंने सूचना देने के बदले आरटीआइ कार्यकर्ताओं को प्रताडि़त करने का काम किया है। आयोग ने संबंधित विभागों से भी यह कहा है कि शिकायतों से जुड़े पूरे मामले की जांच, झूठे मुकदमे वापस लेने और दोषी पदाधिकारियों के विरुद्ध आवश्यक कार्रवाई सुनिश्चित होना चाहिए।
सूचना मांगने पर धमकाते हैं अफसर
कई पुरस्कारों से सम्मानित जाने-माने आरटीआइ कार्यकर्ता शिव प्रकाश राय कहते हैं-मेरे जैसे आरटीआइ कार्यकर्ता को मुकदमा का दंश झेलना पड़ रहा है। यह सिर्फ सूचना मांगने के चलते हुआ। बक्सर एसपी दफ्तर से जिला पुलिस में व्याप्त वित्तीय अनियमितता की जानकारी मांगी थी। इस पर रंगदारी मांगने का झूठा केस उन पर दर्ज कर दिया गया। सच्चाई यह है इन बातों की जब जांच हुई तो सारे मामले झूठे पाए गए।
शिकायतों की जांच के नाम खानापूर्ति
मिली जानकारी के मुताबिक 2010 में सरकार ने आरटीआई कार्यकर्ताओं की शिकायतों के निपटारे के लिए गृह सचिव और पुलिस महानिदेशक की अगुवाई में एक समिति का गठन किया था। इसे जिम्मेदारी दी गई है कि वह आरटीआई कार्यकर्ताओं के उत्पीडऩ से संबंधित शिकायतों पर तत्काल कार्रवाई करे, लेकिन हुआ उल्टा। कार्यकर्ता जब उस समिति में शिकायत करते हैं तो जांच उन्हीं अफसरों के पास भेज दी जाती है जिनके खिलाफ शिकायत है।
मामलों की सूची
पटना जिले में 13, पश्चिम चंपारण में 17, पूर्वी चंपारण में 13, भागलपुर में 12, खगडिय़ा में 12, बेगूसराय में 12, दरभंगा में 4, मुजफ्फरपुर में 12, भागलपुर में 10, गोपालगंज में 9, मुंगेर में 7, समस्तीपुर में 5, रोहतास 8, भोजपुर में 8, औरंगाबाद में 8, मधुबनी में 7, बक्सर में 4, नालंदा में 4, गया में 4, नवादा में 4, औरंगाबाद में 6, मधेपुरा में 5, सारण में 5, सीवान में 5, पूर्णिया में 3, अररिया में 3, सुपौल में 2, जमुई में 2 तथा शेखपुरा में 2।