PM के आह्वान पर देश के लिए पेश की मिसाल, 56 दिन ठहरे पर 33KM दूर धाम नहीं गए जैन साधु
जैन धर्म के संत आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर महाराज और उनके शिष्यों की टोली ने कोरोना काल में मिसाल पेश की है।
प्रशांत सिंह, नालंदा। जैन धर्म के संत आचार्य श्री 108 विशुद्ध सागर महाराज और उनके शिष्यों की टोली ने कोरोना काल में आत्मसंयम और धैर्य का बड़ा आदर्श पेश किया है। वे लॉकडाउन के पहले वैशाली से पैदल ही जैन तीर्थंकरों की कई कल्याणक स्थली व तीर्थ स्थल के लिए निकले थे। पीएम नरेंद्र मोदी के जनता कर्फ्यू के आह्वान के दिन 23 मार्च को राष्ट्र संत 24 पिच्छी साधुओं, 16 ब्रह्मचारी व 40 श्रावक व सेवकों के साथ नालंदा के चंडी से पैदल गुजर रहे थे। उसी दिन उन्होंने यात्रा रोक दी।
समाज के हित को माना पहला धर्म, नहीं बढ़ाया कदम
दिगम्बर साधुओं की यह टोली 56 दिन चंडी के मैरेज हाल वैदिक गार्डन में ठहरी है। यहां से महज 33 किमी दूर अपने सबसे बड़े धाम भगवान महावीर की निर्वाण भूमि पावापुरी जाना था, लेकिन देश व समाज हित को पहला धर्म मान आगे नहीं बढ़े। लॉकडाउन की हर एडवाइजरी का पालन किया। चौथे लॉकडाउन में प्रशासन की अनुमति मिली तो पूर्व निर्धारित यात्रा पूरी करने की बजाए सोमवार की शाम वापस वैशाली के लिए कूच कर गए। इस पदयात्रा को भी राष्ट्र संत ने गोपनीय रखा है, ताकि जगह-जगह भक्तों का जमावड़ा न लगे। चंडी से वैशाली तक 98 किमी की पद यात्रा पांच दिनों में तय की जाएगी।
तीर्थंकरों की कई कल्याणक स्थली की करनी थी यात्रा
बताया गया कि इस संत ससंघ को अप्रैल माह में ही झारखंड के गिरिडीह स्थित पारसनाथ पहाड़ पर सम्मेद शिखर पहुंचना था। जहां कई तरह के धार्मिक कार्यक्रम होने तय थे। इस बीच संतों को जैन तीर्थंकरों की कई कल्याणक स्थली व तीर्थ स्थलों की यात्रा करनी थी।
स्वाध्याय, लेखन व आत्मसाधना में गुजारे 56 दिन
चंडी में 56 दिनों के प्रवास के दौरान जैन संत आचार्य विशुद्ध सागर महाराज अपने शिष्यों को निरंतर धर्म शिक्षा-उपदेश प्रदान कर रहे थे। पूरा साधु संघ स्वाध्याय, प्रतिक्रमण, लेखन व आत्मसाधना में लीन रहकर भगवान की आराधना करता था।