Exit Poll से सब हैं परेशान, बिहार में इन खास 11 लोगों की अटकी हैं सांसें, जानिए क्यों..
लोकसभा चुनाव के नतीजे आने में अब कुछ ही घंटे शेष हैं। नतीजे से पहले आए एग्जिट पोल ने सबकी नींद उड़ा दी है तो बिहार में कुछ खास नेताओं की सांसें अटकी हुई हैं। जानिए...
पटना [अरुण अशेष]। राज्य का यह पहला लोकसभा चुनाव है, जिसमें सभी दलों ने मेहमानों का स्वागत कम या अधिक सुविधा शुल्क लेकर किया। इनकी संख्या किसी दल में कम तो किसी दल में अधिक है। अपवाद में कोई दल नहीं है। एनडीए और महागठबंधन के ऐसे उम्मीदवारों की संख्या दर्जन भर है।
वैसे प्रमाण तो नहीं है। फिर भी अवधारणा यही है कि इन्होंने धन लेकर टिकट हासिल किया। इसके चलते क्षेत्र में इनकी पहचान संपन्न उम्मीदवार की बन गई थी। इस छवि का खामियाजा चुनाव प्रचार के दौरान क्षेत्र भुगतना पड़ा। चुनाव प्रबंधन में अधिक खर्च करना हुआ। इस मनुहार के साथ कि ऊपर में दिए हैं तो नीचे भी दिल खोल कर खर्च कीजिए।
गांधी की कर्मभूमि चंपारण में इस श्रेणी के दो उम्मीदवारों की शिनाख्त जनता के स्तर पर की गई थी। दोनों एक ही दल के हैं। दोनों तबीयत से चुनाव लड़े। किसी भी स्तर पर कोई कमी नजर नहीं आई।
मतदान के दिन बूथ से वोटों का जो हिसाब बताया गया, वह अधिक मार्जिन से जीत का इशारा कर रहा है। मगर, एक्जिट पोल ने दोनों सीटों को विरोधियों के खाते में डाल दिया है। पूर्वी चंपारण के बगल की सीट के एक उम्मीदवार का हाल अधिक बुरा है। कड़ी प्रतिस्पर्धा के आधार पर अंतिम समय में इन्हें टिकट लेने में कामयाबी मिली।
जिस दल के उम्मीदवार हैं, उसके नेताओं के विरोध का भी सामना करना पड़ा। बदमाशों ने उड़ा दिया कि पेट्रो डॉलर वाले हैं। सो, जनता के स्तर पर भी तेल निकालने की भरपूर कोशिश हुई। एक्जिट पोल से पहले ही इस क्षेत्र का रिजल्ट निकल गया था। टिकट देने वाली पार्टी ने भी इस क्षेत्र को बट्टा खाता में डाल दिया है। जगत जननी मां सीता की जन्म भूमि में तो कमाल का सीन बना।
एक डाक्टर साहब टिकट लेकर गए। शोर मचा कि खरीद कर लाए हैं। अगले दिन से ही लोगों ने उम्मीदवार को कहना शुरू कर दिया-गुलाबी रंग वाला इधर भी खिसकाइए। जीत पक्की समझिए। डाक्टर साहब इतने आजिज हो गए कि नामांकन करने से पहले ही टिकट वापस कर दिया। यह सब इतना आनन-फानन में हुआ कि पार्टी को दूसरे दल से उम्मीदवार का आयात करना पड़ा। अच्छी बात यह रही कि ये वाले उम्मीदवार भी संपन्न हैं।
मिथिला की एक सीट के लिए कई उम्मीदवारों की चर्चा हुई। विषय यह था कि अमुक उम्मीदवार ने बोली लगा दी है। खैर, जिस उम्मीदवार का नाम तय हुआ, उनसे क्षेत्र के लोगों ने तत्काल लाभ की अपेक्षा की। बेचारे राजनीति के क्षेत्र के नए खिलाड़ी थे। टिकट में जितना खर्च हुआ हो, क्षेत्र में उनकी मुट्ठी बंधी रही।
एक्जिट पोल से ये निराश नहीं हैं। क्योंकि गठबंधन के एक बागी उम्मीदवार ने ही इनकी जीत की संभावना पर ताला जड़ दिया है। फिर भी तनाव तो है-जितना चला गया, वह वापस नहीं आएगा। राजनीति के जिस रूप से इनका पाला पड़ा था, शायद चुनाव की पहली और अंतिम पारी ही होगी।
बज्जिकांचल में दो उम्मीदवार इस श्रेणी के थे। इनमें से एक का बैकग्राउंड राजनीतिक है। दूसरे अचानक टपक पड़े। खर्च ठीकठाक हुआ। इनमें से एक के बारे में सभी एक्जिट पोल जीत का इशारा कर रहे हैं। दूसरे के बारे में उनकी पार्टी जीत का दावा कर रही है।
सारण के एक संसदीय क्षेत्र के मुकाबले के दोनों उम्मीदवार आयातित थे। राजनीति दोनों का पूर्णकालिक पेशा नहीं है। चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद ही टिकट के लिए प्रयास किया। कामयाबी मिल गई। इन दोनों को जीत का भरोसा है। लेकिन, हारने वाले को भारी क्षति की आशंका परेशान कर रही है।
मगध और शाहाबाद में महागठबंधन ने दो उम्मीदवारों का आयात किया था। एक को धन नहीं खर्च करना पड़ा था। दूसरे को भुगतान करना पड़ा। इनमें से एक को एक्जिट पोल के नकारात्मक रूझान के बावजूद जीत का भरोसा है। दूसरे की हालत अच्छी नहीं बताई जा रही है।
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