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पटना लिटरेचर फेस्टिवलः सिसकियों में बोलता है शहर, समझ जाएं तो बन जाती है कहानी

पटना लिटरेचर फेस्टिवल के अंतिम दिन शहर भी एक कहानी कहता है विषय पर वक्ताओं ने विचार रखे साथ ही पुस्तक का विमोचन भी किया गया।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Sun, 03 Feb 2019 03:20 PM (IST)Updated: Sun, 03 Feb 2019 03:20 PM (IST)
पटना लिटरेचर फेस्टिवलः सिसकियों में बोलता है शहर, समझ जाएं तो बन जाती है कहानी
पटना लिटरेचर फेस्टिवलः सिसकियों में बोलता है शहर, समझ जाएं तो बन जाती है कहानी

पटना, जेएनएन। पटना लिटरेचर फेस्टिवल के अंतिम दिन रविवार को 'शहर भी एक कहानी कहता है' विषय पर बुद्धिजीवियों ने विचार दिए। वक्ता थे विकास कुमार झा, अवेधष प्रीत, प्रतीश गुलेरी और अरुण सिंह। वहीं मंच का संचालन चिंकी सिन्हा। ने किया। पटना के ज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम में अरुण सिंह की पुस्तक 'खोया हुआ शहर' का विमोचन किया गया।

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इस अवसर पर प्रतीश गुलेरी ने कहा कि शहर ही नहीं गांव भी कुछ कहता है। हमारा परिवेश और जहां हम पले-बढ़े हैं वो भी बहुत कुछ कहता है। 'तेरी कुड़माई...धत्त तेरी की, उसने कहा था' कहानी की एक पंक्ति माटी की पूरी महक बता जाती है। हम वहां से उत्सुक होते हैं कहानी को पढ़ने के लिए। प्रतीश ने कहा कि ये महक हमसे कुछ कहने की अपील करती है।

विकास कुमार झा ने कहा, पूरी धरती हमारी माता है, हम सब उसके बच्चे हैं। हम जिस शहर में रहते हैं सर्फ वहीं नहीं, बल्कि हर गांव हर शहर सिसकियों को बयां करता है। अगर आपने लेखक रूप में सुन लिया तो वो कहनी बन जाती है। अवधेष प्रीत ने कहा कि इतिहास किसी भी शहर राजा-महराजा और सेनापति के बारे में कुछ कहता है, पर साहित्य आम लोगों की जिंदगी को पकड़ता है। यहीं दोनों में अंतर है। जिसे समझना बहुत जरूरी है।


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