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पटना कभी था देश के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल, लॉकडाउन ‘पी गया’ हवा में घुला 80 फीसद जहर

एक माह पहले जब लॉकडाउन की घोषणा की गई थी तो पटना की हवा में धूलकण की मात्रा भरी थी। लेकिन पिछले एक माह में वातावरण में व्यापक बदलाव हुआ है।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Wed, 22 Apr 2020 09:27 AM (IST)Updated: Wed, 22 Apr 2020 01:04 PM (IST)
पटना कभी था देश के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल, लॉकडाउन ‘पी गया’ हवा में घुला 80 फीसद जहर
पटना कभी था देश के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल, लॉकडाउन ‘पी गया’ हवा में घुला 80 फीसद जहर

नीरज कुमार, पटना। लॉकडाउन कोरोना संक्रमण से ही नहीं बचा रहा, बल्कि पर्यावरण के लिए संजीवनी साबित हो रहा। एक माह पहले जब लॉकडाउन की घोषणा की गई थी, तो बिहार की राजधानी पटना की हवा में धूलकण की मात्रा भरी थी। वाहनों के शोर से लोग परेशान थे। गंगा में गिरने वाला गंदा पानी जलीय जीवों के लिए जानलेवा साबित हो रहा था, लेकिन पिछले एक माह में वातावरण में व्यापक बदलाव हुआ है।

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हवा हो गई एकदम साफ

एक माह पहले 21 मार्च को राजधानी के वातावरण में सूक्ष्म धूलकण की मात्र 77.05 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर रिकार्ड किया गया था। वहीं 22 मार्च को राजधानी के वातावरण में 55.26 माइक्रो ग्राम प्रति घनमीटर रहा। अब 19 अप्रैल को राजधानी के वातावरण में सूक्ष्म धूलकण का मात्र 38.27 माइक्रो ग्राम प्रति घनमीटर रिकार्ड किया गया। वहीं 20 अप्रैल को राजधानी के वातावरण में सूक्ष्म धूलकण की मात्र गिरकर 17.74 माइक्रो ग्राम प्रति घनमीटर पर आ गया। बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नवीन कुमार का कहना है कि किसी भी स्वच्छ हवा में मानव को सांस लेने के लिए सूक्ष्म धूलकण की मात्र 60 माइक्रो ग्राम प्रति घनमीटर से कम होनी चाहिए।

ध्वनि प्रदूषण में भी कमी के संकेत

शांत वातावरण में ध्वनि की तीव्रता 60 डेसीबल से कम होनी चाहिए। राजधानी के वातावरण में वाहनों और कल-कारखानों का शोर थमने से ध्वनि प्रदूषण में भी भारी कमी आई है। राजधानी में लगभग 5 लाख वाहनों के रफ्तार थमने से लोगों को बड़ी राहत मिली है।

गंगा भी हुई स्वच्छ

बिहार प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के वैज्ञानिकों का कहना है कि कल-कारखानों के बंद होने से उससे निकलने वाले गंदे पानी की मात्र में काफी कमी आई है। उसका असर गंगा की स्वच्छता पर पड़ा है। पर्षद के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नवीन कुमार का कहना है कि गंगा के पानी में फीकल कॉलीफार्म की मात्र 500 पीएमएन 100 एमएल में कम होना चाहिए। पानी की स्वच्छता के कारण नदी में मछलियों एवं अन्य जलीय जीवों की चहलकदमी काफी बढ़ गई है। स्थिति यह है कि गंगा के पानी से नीचे का तल साफ-साफ दिखने लगा है।

तारीख सूक्ष्म धूलकण प्रति घनमीटर

21 मार्च 77.05 माइक्रोग्राम

22 मार्च 55.26 माइक्रोग्राम

19 अप्रैल 38.27 माइक्रोग्राम

20 अप्रैल 17.39 माइक्रोग्राम

21 अप्रैल 16.89 माइक्रोग्राम


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